वाच्य विचार

वाच्य-विचार 
                       व्याकरण के अंतर्गत हम अब तक क्रमवार अध्ययन करते आये हैं। जैसे वर्ण से वाक्य तक। वर्ण + व्यञ्जन से अक्षर, अक्षरों के मेल से शब्द, शब्दों के मेल से वाक्य बनते हैं। जब हम वाक्य निर्माण करते हैं तो उसमें संज्ञा,सर्वनाम,क्रिया, कर्म व विशेषण आदि कई शब्दों का समावेश होता हैं। तत्पश्चात वाक्य को दो भागों में विभाजित किया जाता हैं एक उद्देश्य, दूसरा विधेय। उद्देश्य वह जिसके विषय में कहा जाता हैं। विधेय वह जो उद्देश्य के विषय में कहा जाता हैं। वाक्य में उद्देश्य प्रमुख होता हैं। परन्तु विधेय में क्रिया अनिवार्य होती हैं। और वाक्य में क्रिया का विधान किसके लिए हैं वहीँ हम अब वाच्य - विचार के अंतर्गत पढ़ेंगे। 
 वाच्य -  
             वाच्य अर्थात कहना। वाच्य का शाब्दिक अर्थ होता हैं बोलने का विषय। अर्थात क्रिया का निर्माण जिस विषय के लिए हुआ हैं, जैसे कर्ता, कर्म, या भाव के लिए तो वहीँ वाच्य कहलाएगा। 
वाच्य की परिभाषा - 
                वाच्य अर्थात कहने का विषय। क्रिया के जिस रूप से यह जाना जाए कि क्रिया द्वारा किये गए विधान / प्रयोजन का विषय कर्ता हैं,कर्म हैं या भाव हैं तो वह वाच्य कहलाता हैं। 

इसी आधार पर वाच्य के तीन प्रकार के होते हैं -
(१)    कर्तृवाच्य 
(२)    कर्मवाच्य 
(३)    भाववाच्य 
                                                                    वाच्य 
                                                                        ↓
                    ↓-------------------------------------↓------------------------------------↓
              कर्तृवाच्य                                     कर्मवाच्य                                    भाववाच्य 

( १ )   कर्तृवाच्य-
                         जिन वाक्यों में क्रिया का सीधा सम्बन्ध कर्ता से होता हैं। तथा क्रिया का लिंग, वचन करता के अनुसार निर्धारित होता हैं वे वाक्य कर्तृवाच्य होते हैं।
जैसे -   अमृता गुब्बारा फुलाती हैं।
 इस वाक्य में अमृता लड़की हैं इसीलिए क्रिया " फुलाना " को भी "फुलाती " स्त्रीलिंग के अनुसार लिखा गया। अर्थात यहाँ पर स्पष्ट होता हैं कि कर्तृवाच्य में क्रिया कर्ता के अनुसार लिखी जाती हैं।            

अन्य उदाहरण -   
                    प्रतिभा रंगोली बनाती हैं।
                    पवन पतंग उडाता हैं।
                    लोग उधर जाते हैं।
                    बन्दर कूदते हैं।
                    शिक्षिका पत्र लिखती हैं
इन सभी उदाहरणों में आप देखेंगे कि क्रिया कर्ता के अनुसार प्रयुक्त की गयी हैं। जैसे प्रतिभा (स्त्रीलिंग) के साथ क्रिया बनाती हैं। पवन (पुल्लिंग) के साथ उडाता हैं। लोग (बहुवचन) के साथ जाते हैं इत्यादि। तो इसी तरह से जब वाक्य में क्रिया का रूप लिंग व वचन के अनुसार प्रयुक्त किया जाता हैं तो वहां कर्तृवाच्य होते हैं।

२ )  कर्मवाच्य -
                             जिन वाक्यों में क्रिया का सीधा सम्बन्ध कर्म से होता हैं तथा क्रिया का निर्धारण कर्म के अनुसार होता हैं वे वाक्य कर्मवाच्य कहलाते हैं।
जैसे - रोहन द्वारा लस्सी बनायीं गयी।
इस वाक्य में आपने देखा कि रोहन एक लड़का हैं। जबकि वाक्य में क्रिया " बनायी " का प्रयोग हुआ हैं क्योंकि यहाँ क्रिया का प्रयोग कर्म अर्थात लस्सी के अनुसार हुआ हैं, लस्सी स्त्रीलिंग के अंतर्गत आती हैं इसीलिए वाक्य में क्रिया बनायीं गयी का प्रयोग हुआ हैं। अर्थात वाक्य में क्रिया का रूप कर्म के अनुसार लिखा गया हैं इसीलिए यहाँ कर्मवाच्य हैं।

अन्य उदाहरण - 
                      माँ द्वारा कपड़े धोए जाते हैं ।
                      निशा द्वारा गाना गाया।
                      प्रफुल्लित द्वारा मिठाई खायी गयी।
                      उदित द्वारा पतंग उड़ाई जा रही हैं।
                      महिला पायलट द्वारा हवाई जहाज उडाया जाता हैं।
उपरोक्त उदाहरणों में प्रत्येक वाक्य में क्रिया कर्म के अनुसार ही निर्धारित की गयी है।  जैसे पहले  वाक्य में कपडे (बहुवचन) के साथ क्रिया "जाते" लिखा  गया है जबकि माँ शब्द से "एकवचन" का बोध होता है। उसी प्रकार "गाना" के साथ "गाया" लिखा गया है जबकि निशा शब्द स्त्रीलिंग है। तीसरे वाक्य में प्रफुल्लित लड़का है, लेकिन वाक्य में क्रिया "खायी गयी" कर्म मिठाई, (स्त्रीलिंग) के अनुरूप लिखा गया है। अगले वाक्य में भी कर्म पतंग (स्त्रीलिंग) के अनुसार ही क्रिया "उड़ाई जा रही है" का प्रयोग किया गया है। अगले वाक्य में भी कर्म के अनुसार ही क्रिया दर्शायी गयी है। प्रत्येक उदाहरण से स्पष्ट होता हैं कि जिन वाक्यों में कर्म के अनुरूप क्रिया का परिवर्तित रूप निश्चित होता है, वह कर्म वाच्य कहलाता है।   
(३) भाववाच्य -
                                  जिन वाक्यों में क्रिया का सम्बन्ध कर्ता व कर्म से ना होकर वाक्य में प्रदर्शित भाव से होता हैं, तो वहां भाववाच्य होता हैं। क्रिया के उस रूपांतर को भाववाच्य कहते हैं जिससे वाक्य में भाव की प्रधानता होती हैं। 
जैसे - दादी माँ से बैठकर उठा नहीं जाता।
इस वाक्य से स्पष्ट होता हैं कि दादी माँ कमजोर हैं और वह उठने - बैठने में असमर्थ हैं। और वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का रूप इसी भाव को प्रकट करता हैं।
अन्य उदाहरण -                                                                                                                                                                 बच्चों से चुप नहीं बैठा जा सकता।
                     मुझसे सुबह दौड़ा नहीं जाता।
                     शिल्पा शुद्ध हिंदी पढ़ सकती हैं।
                     रानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा कभी नहीं भुलाई जा सकती।
                     मिष्ठी तीखा खाना नहीं खा सकती हैं।
उपरोक्त प्रत्येक उदाहरण में किसी न किसी प्रकार का भाव दृष्टव्य होता हैं। और उसी के अनुसार क्रिया के परिवर्तित रूप निर्धारित किया जाता हैं। अर्थात जब वाक्य में भाव की प्रधानता होती हैं और और भावानुसार ही क्रिया प्रयुक्त की जाती हैं तो वहां भाववाच्य होता हैं।

वाच्य परिवर्तन   
       
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना 

१ -  कर्तृवाच्य-   माली पौधे लगाता हैं।
      कर्मवाच्य-   माली द्वारा पौधे लगाए जाते हैं।
२ -  कर्तृवाच्य -  माँ ने पूजा - अर्चना की।
      कर्मवाच्य -  माँ द्वारा पूजा - अर्चना की गयी।
३ -  कर्तृवाच्य -  दादी लड्डू बनाएगी।
      कर्मवाच्य -  दादी द्वारा लड्डू बनाये जाएंगे हैं।
४ - कर्तृवाच्य -   सरिता ने एक पत्र लिखा।
     कर्म वाच्य -  सरिता द्वारा एक पत्र लिखा गया।
५ - कर्तृवाच्य -   राम ने रावण को मारा।
     कर्मवाच्य -   राम द्वारा रावण को मारा गया।

कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य बनाना   
                                                                                                     
१ - कर्मवाच्य - निलेश द्वारा चाय पी जा रही  है।
     कर्तृवाच्य -  निलेश चाय पी रहा है।
२ - कर्मवाच्य - मोहित द्वारा मैच जीता जाएगा।
     कर्तृवाच्य -  मोहित मैच जीत जाएगा ।
३ - कर्मवाच्य - उसके द्वारा पौधे सींचे जाते है।
     कर्तृवाच्य -  वह पौधे सींचता है।
४ - कर्मवाच्य - अध्यापक द्वारा निबंध लिखाए गए।
     कर्तृवाच्य - अध्यापक ने निबंध लिखाए।
५ - कर्मवाच्य - लोगों द्वारा मेला देखा जाता है।
     कर्तृवाच्य - लोग मेला देखने जाते है।

कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना 
                       
१ - कर्तृवाच्य - शनि फुटबॉल नहीं खेलता है।
     भाववाच्य - शनि से फुटबॉल नहीं खेला जाता।
२ - कर्तृवाच्य - नानी मीठा नहीं खाती।
     भाववाच्य - नानी से मीठा नहीं खाया जाता।
३ - कर्तृवाच्य -  छात्रा ने कविता पढ़ी।
     भाववाच्य - छात्र को कविता पढ़नी पड़ी।
४ - कर्तृवाच्य -  चलो अब तुम खाना खा लो।
     भाववाच्य - चलो तुम्हें अब खाना खा लाना चाहिए।
५ - कर्तृत्वाच्य - मृदुल कसरत नहीं करता।
     भाववाच्य -  मृदुल कसरत नहीं कर सकता।

भाववाच्य से कर्तृवाच्य बनाना  

१-  भाववाच्य -  बच्चा अभी नहीं बोल सकता हैं।
     कर्तृवाच्य -   बच्चा अभी नहीं बोलता हैं। 
२- भाववाच्य -   वह अब नहीं खेल सकेगी।
     कर्तृवाच्य -   वह अब नहीं खेलेंगी।
३- भाववाच्य -   गर्वित को कविता वाचन करना पड़ेगा। 
     कर्तृवाच्य -   गर्वित कविता वाचन करेंगा।
४- भाववाच्य -   सौम्या नृत्य नहीं कर पाती हैं। 
   कर्तृवाच्य -  सौम्या नृत्य नहीं करती।               
५- भाववाच्य -   शिक्षिका सामाजिक अध्ययन विषय पढ़ा सकती हैं। 
   कर्तृवाच्य -    शिक्षिका सामाजिक अध्ययन विषय पढ़ाती हैं। 

वाच्य - विचार के अंतर्गत हमने पढ़ा कि वाच्य किसे कहते हैं ? वाच्य का शाब्दिक अर्थ होता हैं कहना या  विषय, अर्थात वाक्य में क्या कहा गया हैं या वाक्य का भाव क्या हैं ? वाच्य के तीन प्रकार - कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य, भाववाच्य। कर्तृवाच्य में कर्ता के अनुरूप क्रिया परिवर्तित होती हैं, तो कर्मवाच्य में कर्म के अनुसार क्रिया निर्धारित की जाती हैं, उसी प्रकार से भाववाच्य में भाव की प्रधानता होती हैं और क्रिया वाक्य के भाव को प्रदर्शित करती हैं। इसके पश्चात् हमने वाच्य रूपांतरण करना सीखा। वाच्य रूपांतरण में कर्ता, कर्म व भाव के अनुसार क्रिया परिवर्तित करते हुए वाक्य रूपांतरण भी किया। तथा वाक्यों को अलग - अलग समय पर आधारित लिखा। हमने किन समय का अध्ययन किया या अब करेंगे वो हम अब अगले भाग "काल" के अंतर्गत पढ़ेंगे।                  

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