मैं नन्हा -सा प्यारा फूल ,
सबके मन को भाता हूँ।
घर -आँगन और वन -उपवन को ,
खुशबू से अपनी महकाता हूँ।
नन्हें बच्चों मुझे ना तोड़ना ,
मैं भी हूँ तुम जैसा ही प्यारा।
तुम हो अपनी माँ के लाडले ,
मैं उपवन का राज -दुलारा।
जो तुम मुझको तोड़ फेंकोगें ,
मैं मन ही मन में रोऊँगा।
मैं मन ही मन में रोऊँगा।
किसी ना किसी के पैरों तले ,
मैं कुचल -कुचल मर जाऊँगा।
क्यों ना मैं डाली में ही खिलकर ,
अपनी खुशबू से जग -महकाऊँ।
मैं कुचल -कुचल मर जाऊँगा।
क्यों ना मैं डाली में ही खिलकर ,
अपनी खुशबू से जग -महकाऊँ।
जो तुम मेरे दोस्त बनो तो ,
मैं भी सबका दोस्त बन जाऊँ।
मैं भी सबका दोस्त बन जाऊँ।
0 Comments