मैं नन्हा फूल




नन्हा फूल, बाल कविता

                       
   मैं नन्हा -सा प्यारा  फूल ,
  सबके मन को भाता हूँ। 
  घर -आँगन और  वन -उपवन को ,
  खुशबू से अपनी महकाता हूँ।  
  नन्हें बच्चों मुझे ना तोड़ना ,
  मैं भी हूँ तुम जैसा ही प्यारा। 
  तुम हो अपनी माँ के लाडले ,
 मैं उपवन का राज -दुलारा। 
जो तुम मुझको तोड़ फेंकोगें ,
मैं मन ही मन में रोऊँगा। 
किसी ना किसी के पैरों तले ,
मैं कुचल -कुचल मर जाऊँगा। 
क्यों ना मैं डाली में ही खिलकर ,
अपनी खुशबू से जग -महकाऊँ। 
जो तुम मेरे दोस्त बनो तो , 
मैं भी सबका दोस्त बन जाऊँ। 

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