जीवन परिचय
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी का जन्म 15 सितंबर 1927 को "उत्तर प्रदेश" के "बस्ती" जिले में हुआ था। इनके पिता जी का नाम विश्वेश्वर दयाल था। सर्वेश्वर दयाल जी की आरंभिक शिक्षा - दीक्षा जिला बस्ती "उत्तर प्रदेश" में हुई। वह बचपन से ही विद्रोही प्रकृति के थे।उनके इसी व्यवहार के कारण जब भी नवीं कक्षा में पढ़ते थे। तो उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को "एंग्लो संस्कृत हाईस्कूल" बस्ती के प्रधानाचार्य ने शरण दी। और इसी विद्यालय से सर्वेश्वर दयाल जी ने हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1943 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। जीवन के कई उतार - चढ़ाव के पश्चात् वे उच्च शिक्षा हेतु प्रयाग आ गए। तथा प्रयाग विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।
सन् 1949 का वर्ष सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी के लिए मर्मान्तक पीड़ा प्रदान करने वाला रहा। इस वर्ष उन्होंने अपनी माताजी को खोया। इस घोर दुख व अति विषम परिस्थितियों को सहते हुए वह 4 माह अपने पिता के साथ बस्ती में ही रहे। और यहीं से उन्होंने प्रख्यात उर्दू शायर ताराशंकर "नाशाद" के साथ परिमल की स्थापना की। आजीविका के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अध्यापन और संपादन दोनों कार्य किए। पहले अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। और बाद में उन्होंने आकाशवाणी प्रयाग में भी नौकरी की। तथा "ऑल इंडिया रेडियो" के सहायक संपादक रहे। तत्पश्चात उन्होंने दिनमान पत्रिका का संपादन का कार्यभार भी संभाला। सक्सेना जी द्वारा शुरू किया गया "चरचे और चरखे" बहुत लोकप्रिय हुआ। और बाद में उन्होंने "बाल पत्रिका" का संपादन कार्य भी संभाला। और अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक वे इसी कार्य को संभालते रहे। और आखिरकार वह समय आ आया, जब सन् 1983 में उन्होंने यह संसार त्याग दिया। अर्थात् सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी का निधन हो गया।
उपलब्धियाँ - 1983 में सक्सेना जी को अपने कविता संग्रह "खूँटियों पर टंगे लोग" के लिए "साहित्य अकादमी" पुरस्कार मिला।
रचनाएं - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी के साहित्य सर्जन में कविता के अतिरिक्त कहानी, नाटक और बाल साहित्य भी शामिल हैं।
जैसे -
काव्य - संग्रह -
काठ की घण्टियाँ,
बाँस का पुल,
एक सूनी नाव,
गर्म हवाएँ,
कुआनो नदी,
कविताएँ -1,
कविताएँ-2,
जंगल का दर्द,
खूँटियों पर टंगे लोग।
उपन्यास -
उड़े हुए रंग,
सोया हुआ जल
पागल कुत्तों का मसीहा।
कहानी संकलन-
अंधेरे पर अंधेरा।
नाटक -
बकरी।
बाल साहित्य-
भौं -भौं- खों- खों,
लाख की नाक,
बतूता का जूता
महंगू की टाई आदि।
यात्रा वृतांत -
कुछ रंग कुछ गंध,
काव्यगत विशेषताएं - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी कोमल भावों, श्रृंगार, प्रकृतिक सौंदर्य तथा प्रकृति प्रेम के कवि थे। उनके काव्य में कल्पनाओं की उड़ान तथा उत्कृष्ट कल्पनाओं का सचित्र वर्णन देखने को मिलता है। ग्रामीण परिवेश का वर्णन ग्रामीण सादगी तथा साथ ही नगरीय जीवन की चहल-पहल भी देखने को मिलती है।
भाषा शैली - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की भाषा शैली में चित्रात्मकता तथा स्पष्टता के दर्शन होते हैं। और चित्रात्मकता तथा स्पष्टता ही उनकी भाषा शैली की दो प्रमुख विशेषताएं हैं। उनका विषयानुरूप दृश्य चित्र उपस्थित करने के लिए शब्द सौंदर्य अनूठा है। भाषा की संक्षिप्ता तथा कल्पना का दृश्य पाठकों के समक्ष सचित्र प्रस्तुत करने में कवि का कोई सानी नहीं है। उनके काव्य का एक-एक भाव, एक-एक शब्द सार्थक होता है। अपनी कल्पनानुसार शब्द चयन करने तथा अपनी कल्पनाओं को सजीव करने में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसा कवि अन्यत्र दुर्लभ है। उनके काव्य में उपमा, रूपक, मानवीयकरण अलंकारों का कुशल प्रयोग होता है।
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