सांसें जो छटपटा रही थी इस देह पिंजर में,
वहीं अब धड़कनों की साज पर गुनगुनाना चाहती हैं।
तमाम आकांक्षाओं के बंधन तोड़ कर,
जिंदगी आज उन्मुक्त होना चाहती है।
जिन सपनों को देखने में गुजर गई उम्र यूं ही,
वही सपने अब जिंदगी सच करना चाहती है।
एक नई भोर का इंतजार है इस रात को,
ये अंधेरों की गहराइयों से मुक्त होना चाहती है।
कई ख्वाहिशें घुट रही थी मुझ में ही कहीं,
उन्हें जिंदगी देकर मन तृप्त होना चाहता है।
पा तो लूं तुझे पाकर तेरे प्रेम की पराकाष्ठा को पर,
तेरी चाहत में ये दिल अतृप्त रहना चाहता है।
हर रंज - ओ - गम को मिटा अपने अंतर्मन का,
हर तकलीफ से हृदय रिक्त होना चाहता है।
भर आयी जो खुशी से आंखें मेरी,
खुशी के आसुओं से हृदय सिक्त होना चाहता है।
अंतस में एक अजीब सा शोर सुनाई दे रहा है।
मन प्रकृति के अंक में कुछ पल शांत रहना चाहता है।
अपनों के बीच कुछ बैचेन सी हूं मैं,
इस भीड़ से दूर मन एकांत रहना चाहता है।
बहुत खूबसूरत मुखौटे हैं चेहरों पर आज।
मैं हर चेहरे से रू - ब - रू होना चाहती हूं।
सुन मुखौटे को; कि ये तलाश बेकार हैं,
मैं ना चाह कर भी हू - ब - हू होना चाहती हूं।
वक्त कभी सुने दो पल तो मैं,
वक्त से शिकायत करना चाहती हूं।
तू ठहर या मुझे साथ ले चल,
मैं किस्मत से बगावत करना चाहती हूं।
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