कुछ अनकहे अनसुने शब्द (भाग - 1)

                      ( भाग - 1 )

एक गोरा - चिट्टा, ऊंचे कद का और आकर्षक व्यक्तित्व का लड़का था। जिसका नाम "प्रभात" था। प्रभात स्वभाव से बड़ा ही हँसमुख, जिंदादिल और विनम्र था। प्रभात का जन्म, लालन - पालन, शिक्षा, शहर में हुई थी। प्रभात वनस्पति विज्ञान का विद्यार्थी था। वह वनस्पति विज्ञान से शोध कर रहा था। और अमूल्य वनस्पतियों की खोज और उन पर रिसर्च करने के लिए वह समय-समय पर पहाड़ों पर जाया करता था। 
                    ऐसे ही एक बार वह कुछ नई वनस्पतियों की तलाश में एक बहुत ही सुन्दर पहाड़ी क्षेत्र पर जाता है। वहां उसका कुछ लम्बे समय के लिए जाना होता हैं। वहां ठहरने के लिए उसने पहले से ही किसी अतिथि गृह में व्यवस्था की होती हैं। एक दिन प्रभात अपना सामान लेकर निकलता है। और एक पूरा दिन सफर करने के बाद वह अपनी मंजिल, उस गांव में पहुंचता है, जहां के अतिथि गृह में उसे ठहरना होता है। 
              गांव पहुंच कर वह निर्णय करता है कि वह अतिथि गृह तक गांव के बीच से होता हुआ पैदल चलकर ही जाएगा। क्योंकि वह दिनभर के सफर में गाड़ी में बैठे बैठे थक जाता है। अब प्रभात अपना बैग उठाकर चल पड़ता है। लेकिन ये क्या प्रभात को तो अतिथि गृह का रास्ता भी नहीं पता, अब वह मन ही मन सोचता है।( मैंने ये क्या किया? मुझे तो अतिथि गृह का रास्ता भी नहीं पता कि वह कहां है? कितनी दूर है? अगर वो बहुत दूर हुआ तो,ना जाने कितना दूर पैदल चलना पड़ेगा? बिना सोचे समझे गाड़ी छोड़ रहा है, नहीं, वह जैसे ही पीछे मुड़कर देखता है तब तक गाड़ी बहुत दूर जा चुकी होती हैं।)अनायास ही उसके मुंह से निकलता है,ये क्या गाड़ी तो चली गई, अब क्या करूं? वह अकेले ही बड़बड़ाता है,गाड़ी वाला तो जाएगा ही ना, मैंने ही तो उसे जाने को कहा था। प्रभात ये क्या तूने, अब चल बेटा पैदल और ढूंढ अपना रैन बसेरा, हे भगवान! अब मदद कर देना कि अंधेरा होने से पहले यहां गांव में से कोई सज्जन मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचा दे बस, (वह अकेले में बड़बड़ाता हुआ आगे बढ़ता है।)
                      वो देखता हैं कि आगे कुछ लड़कियां सड़क पर टहल रही हैं। वह उनके पास जाता है,क्योंकि लड़कियां हंसते - बोलते हुए आगे को जा रही होती हैं,तो वह उन्हें पीछे से आवाज देता हैं, 
प्रभात - Hi girls, 
(उसकी आवाज सुनकर सभी लड़कियां रुक जाती हैं। और पीछे मुड़कर देखती हैं) तभी प्रभात क्या देखता हैं,एक बहुत सुंदर लड़की, बड़ी - बड़ी आंखें, लंबे काले, घुंघराले बाल, सादगी पूर्ण चेहरा, मानो जो देखे वहीं ठहर जाएं।प्रभात की आंखें कुछ पल उस पर थम सी जाती हैं। 
 (तभी उनमें से एक लड़की कहती हैं,)

एक सहेली - क्या है ? क्यों आवाज दी हमें ? 
(प्रभात उस आवाज को सुनकर क्षणिक आकर्षण से बाहर आता है। और उसी सुंदर लड़की से पूछता है।)

प्रभात - वो क्या है कि मैं इस गांव में आज ही आया हूं, आज क्या बस अभी आया हूं। और ये आपका गांव मेरे लिए बिल्कुल नया हैं। मुझे अतिथि गृह जाना हैं क्या आप मुझे वहां का रास्ता बता देंगी प्लीज। वो क्या हैं ना, मैंने जल्दबाजी में अपनी गाड़ी छोड़ दी और मुझे पता भी नहीं कि अतिथि गृह कितना दूर हैं। और अब तो रात भी होने वाली हैं, और किसी से पूछने की सोच ही रहा था कि सबसे पहले आप सब ही दिखीं, तो इसलिए आपको आवाज दी।
( तभी उनमें से एक लड़की आगे आती हैं और उसे अतिथि गृह का पता बताती हुई कहती हैं।)

एक सहेली - घबराओ मत ज्यादा दूर नहीं है, हम तुम्हारे साथ सोनू को भेज देते हैं, सोनू मेरा भाई है।वो आपको वहां तक ले जाएगा।अगर आप अतिथि गृह के मेहमान हो तो आपके ठहराने की व्यवस्था जरूर मुखिया चाचा ने ही की होंगी।तो सोनू आपको उनसे भी मिला देगा।
(वह वहीं पास में खेल रहे अपने भाई को बुलाती है, और कहती हैं)

सहेली - सोनू ये हमारे गांव के मेहमान हैं इन्हें अच्छे से मुखिया चाचा से मिलवा दे और बाद में अतिथि गृह तक भी पहुंचा देना, ठीक है।
 
सोनू - ठीक हैं। चलिए।

प्रभात - आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद।
( ये कहते हुए प्रभात और सोनू बातें करते हुए अतिथि गृह की ओर चल पड़ते हैं। सोनू प्रभात को मुखिया के पास ले जाता हैं।)

सोनू - चाचा जी, देखिए आपसे मिलने कौन आए हैं। ये हैं प्रभात, शहर से आए हैं।वनस्पति विज्ञान के शोधकर्ता। यहां अतिथि गृह में ठहरने वाले हैं।आपसे मिलवाना जरूरी था, तो आपके पास लाया।

मुखिया जी - अरे बेटा सोनू थोड़ा रुक भाई, क्या अविराम बोले ही जा रहा हैं। मैं इन्हें जनता हूं,मैंने ही इनके रुकने की व्यवस्था अतिथि गृह में करवाई है। अंदर आइए; बैठिए। अब बताइए यहां तक पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई।

प्रभात - नमस्कार। जी नहीं, सफर भी अच्छा रहा। यहां पहुंच कर कुछ लड़कियों से अतिथि गृह का पता पूछा तो उन्होंने इन्हें मेरे साथ भेज कर मेरी मदद की। सच में आपका गांव बहुत अच्छा है।

मुखिया जी - अरे अभी - अभी तो आप आए हैं।अभी आपने हमारा गांव देखा ही कहां हैं। लीजिए; जलपान कीजिए, आपके रहने - खाने की पूरी व्यवस्था अतिथि गृह में कर दी गई हैं।आपको कोई समस्या नहीं होंगी। आज आप यहीं खाना खाकर जाइए।

प्रभात - नहीं - नहीं, सुबह से सफर में हूं। बहुत थक गया हूं। पहले नहाऊंगा फिर ताजगी आएगी और फिर ही खाना खा पाऊंगा। कृपया अब आप मुझे अतिथि गृह दिखा दीजिए। 

मुखिया जी - ठीक हैं। अभी आप आराम करें, कल सुबह मिलते हैं और बाकी की बातें करते हैं।
सोनू बेटा अब यहां तक आ ही गए हो तो इन्हें अतिथि गृह दिखाकर गोपी से भी मिलवा देना। प्रभात गोपी खाना बनाता है।वहीं तुम्हारे लिए खाना बनाएगा। 

प्रभात - जी धन्यवाद मुखिया जी, तो फिर सुबह मिलते हैं।

( और फिर वे दोनों वहां से चले जाते और अतिथि गृह पहुंचते हैं। वहां अतिथि गृह दिखने के बाद और गोपी से मिलाकर सोनू अपने घर को वापस चला जाता हैं। )


 

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