( भाग - 2 )
( अगली सुबह गोपी कमरे में आता है। और कमरे के पर्दे खोलता हैं। कमरे के पर्दे खोलते हुए कहता है। )
गोपी - उठिए प्रभात बाबू नव प्रभात हो गई हैं। गोपी का शुभ प्रभात स्वीकार करें।
और अब जल्दी से उठकर तैयार हो जाइए। तब तक मैं आपके लिए चाय बनाकर लाता हूं। और चाय के बाद हमें मुखिया जी के यहाॅं भी जाना हैं। आज मुखिया जी ने आपको घर पर नाश्ते के लिए बुलाया है।
( प्रभात की आंखों पर सूर्य की किरणें पड़ती है। वह आंखें खोलकर फिर पलकें बंद करता हुआ करवट बदल कर किसी ख्याल में खो सा जाता है।)
( पल भर को प्रभात मन ही मन मुस्कुराते हुए सोचता हैं )
प्रभात - कल मुझे क्या हो गया था ? क्यों मैं उस खूबसूरत लड़की के चेहरे पर पल भर को खो सा गया था। क्यों मेरी आंखें उसकी आंखों पर इस तरह ठहर सी गई थी। क्या हो गया था मुझे। तभी वह उस ख्याल से बाहर आता हैं और अपने दोनों हाथों से अपने गालों को थपथपाते हुए कहता है। प्रभात क्या हो गया तुझे, कल की बात छोड़ तू तो आज भी सुबह - सुबह सबसे पहले उसी के बारे सोच रहा है। ये क्या हो रहा है मेरे साथ। मैं यहाॅं क्या काम से आया हूॅं और क्या सोच रहा हूॅं ये। नींद से जाग प्रभात नींद से जाग।
( इसके बाद वह जल्दी से उठकर नहाकर बाहर आंगन में जाता हैं। बाहर का दृश्य देख कर उसका मन खुश हो जाता हैं।)
सामने पहाड़ों के बीच से उगता हुआ सूरज, हरियाली पर सूर्य की किरणों के स्पर्श से चमकती ओंस की बूॅंदें, चारों ओर फुलवारी में खिलते रंग - बिरंगे फूल, धुले - धुले से सुंदर ऊॅंचे पहाड़, सुबह - सुबह चिड़ियों की मधुर चहचाहट, ऊपर स्वच्छंद चिर नीला आकाश, और नीले आकाश में उड़ान भरते भिन्न - भिन्न प्रकार व भिन्न - भिन्न रंग के पक्षी, प्रकृति के कण - कण में बहती मंद - मंद शीतल पवन, कहीं दूर मंदिर से आती घंटियों की आवाज और शंख ध्वनि। यह सब प्राकृतिक सौन्दर्य प्रभात के हृदय की गहराइयों में बस जाता हैं।
प्रभात - गोपी जी, ओ गोपी जी।
गोपी - ( प्रभात के हाथ में चाय का प्याला पकड़ाते हुए ) जी सर कहिए, और ये गरम - गरम चाय का स्वाद लीजिए।
प्रभात - गोपी जी यार आपका गाॅंव तो बहुत सुंदर है।
गोपी - सर जी अभी तो आपने सिर्फ गाॅंव की सुबह के दर्शन किए हैं। जब पूरा गांव देखेंगे तो कहेंगे कि इस की गाॅंव की तो हर पहर कितनी खूबसूरत हैं। फिलहाल अभी आपको मुखिया जी के यहां नाश्ते पर भी जाना है, इसलिए जल्दी चलिए।
( थोड़ी देर में ही दोनों मुखिया जी के घर पहुंच जाते हैं। )
मुखिया जी - आइए प्रभात, आपका स्वागत है। कैसे हैं आप।व्यवस्था पसंद तो आयी आपको।हमसे कहीं कोई कमी तो नहीं रह गई आपके आतिथ्य में। और गोपी बेटा अच्छे से ख्याल तो रख रहे हो ना प्रभात का।
गोपी - अब ये तो मुखिया जी आप इन्हीं से पूछ लीजिएगा। वैसे भी मुझे बहुत सारे काम हैं, मुझे जाने की अनुमति दो।
प्रभात - ( मुस्कुराते हुए) शुभ प्रभात मुखिया जी, व्यवस्था बहुत ही अच्छी हैं, और यहां का मौसम भी बहुत सुहावना हैं। और रही गोपी की बात वो सच में मेरा बहुत ख्याल रख रहा है। और इन सब के लिए आपका जितना आभार व्यक्त करें कम ही हैं।
मुखिया जी - अरे ऐसा कुछ नहीं है। बातें तो होती ही रहेंगी, आइए सबसे पहले नाश्ता करते हैं।
प्रभात - जी। ( नाश्ता करते हुए प्रभात को बच्चों के मधुर स्वर में सरस्वती वंदना सुनाई देती हैं । तो वह मुखिया जी से पूछता हैं।) यहाॅं पास में ही कोई विद्यालय हैं क्या। सरस्वती वंदना की आवाज आ रही हैं।
मुखिया जी - अरे नहीं। विद्यालय तो अवश्य हैं। पर यह जो सरस्वती वंदना की आवाज आपको सुनाई दे रही हैं। यह हमारे शास्त्री जी के घर से आ रही हैं। शास्त्री जी पहले विद्यालय में संगीत के अध्यापक थे। अब वे गाॅंव के बच्चों को घर पर ही संगीत की शिक्षा देते हैं। शास्त्री जी को संगीत से बहुत प्यार है। वे माॅं सरस्वती के भक्त हैं। सभी बच्चे प्रातः काल में सबसे पहले शास्त्री जी के घर पर माता सरस्वती की वंदना करते हैं। तत्पश्चात् विद्यालय जाते हैं। शास्त्री जी का घर मानों एक मंदिर हैं। चलिए एक काम करते हैं प्रभात, आज आपको शास्त्री जी से भी मिलवाते हैं। आइए उन्हीं के घर चलते हैं।
प्रभात - जी जरूर मुखिया जी, मैं भी अपने कार्य की शुरुआत करने से पहले माता सरस्वती के चरणों की वंदना करना चाहूॅंगा।
( प्रभात, मुखिया जी के साथ शास्त्री जी के घर पहुॅंचता है। )
मुखिया जी - शास्त्री जी,( आवाज देते हैं। )
शास्त्री जी - आइए - आइए मुखिया जी, विराजिए।
मुखिया जी - इनसे मिलिए ये हैं प्रभात, कल ही आए हैं, और अतिथि गृह में ठहरे हुए हैं। ये शहर से यहां अमूल्य वनस्पतियों पर शोध करने के लिए आए हैं। सुबह आपकी सरस्वती वंदना से प्रभावित हुए तो मैंने कहा चलिए आपको अभी मिलवा देते हैं।
प्रभात - नमस्कार शास्त्री जी, मैंने सोचा क्यों ना माता सरस्वती के श्री चरणों में प्रणाम कर अपना कार्य शुरू करूॅं तो आपसे मिलने की जिज्ञासा हुई।
शास्त्री जी - ये बहुत ही अच्छा विचार है।आइए भीतर चलकर माता सरस्वती के दर्शन करते हैं।
प्रभात - जी जरूर, ( जैसे ही प्रभात मुखिया जी और शास्त्री जी के साथ अंदर जाता है, तो वहाॅं उसे वहीं लड़की दिखाई देती हैं। सामने आसान में बैठी,काले,घने,घुॅंघराले,खुले लंबे बाल,हाथों में सितार, मुख पर अनुपम सादगी,गोरा, श्वेत कमल के समान खिलता रंग, और नीले रंग का दुपट्टा ओढ़े। उस देखते ही प्रभात के मन में कुछ पंक्तियाॅं अंकित होती हैं।)
" श्वेत कमल समान मुख पर,
यूॅं नीला आंचल लहराया है।
मानो श्यामल घन के बीच,
नील गगन में चाॅंद निकल आया है।"
( इतने में शास्त्री जी आवाज देते हैं )
शास्त्री जी - प्रभात बेटा कहाॅं खो गए। आइए
प्रभात - जी कहीं नहीं, एक अजब सी सादगी महसूस कर रहा हूॅं यहाॅं। चलिए ना माता रानी के चरणों में शीश नमन करें।
( तभी इसी बीच वह उठकर सबको नमस्कार कहती हैं, और वहाॅं से चली जाती हैं। प्रभात मन ही मन सोचता हैं, अजीब लड़की है। इशारों में ही नमस्ते कहकर चली गई। मुॅंह से कुछ कहा भी नहीं।)
शास्त्री जी - आप बैठिए मैं आपके लिए जलपान कि व्यवस्था करता हूॅं।
प्रभात - जी नहीं शास्त्री जी, अभी मुखिया जी के यहाॅं से नाश्ता करके आए हैं। मुझे आपका घर और बगीचा बहुत पसंद आया। क्या आपके बगीचे में घूम सकता हूं।
शास्त्री जी - जी जरूर,
( प्रभात बगीचे की ओर जाता हैं तभी.......)
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