कवि देव का जीवन परिचय

हिन्दी के ब्रज भाषा काव्य के अंतर्गत देव को महाकवि का गौरव प्राप्त है। देव का आविर्भाव हिन्दी के रीतिकाल में हुआ था। कवि देव को  रीतिकालीन कवियों में सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था। प्रतिभा में देव बिहारी, भूषण और मतिराम आदि समकालीन कवियों के समान ही सिद्ध माने जाते हैं।

 जीवन परिचय 
              कवि देव का जन्म सन् 1673 ई० में इटावा (उत्तर प्रदेश) के घौसरिया ब्राह्मण कुल में हुआ था। रीतिकालीन कवियों के समय में अधिकांश कवि राजाश्रय हुआ करते थे। देव भी अपने जीवन काल में अनेक राजाओं के आश्रय में रहे। और अपने आश्रयदाताओं के लिए इन्होंने अनेक रचनाएं की। इनकी रचना "अष्टयाम" औरंगजेब के पुत्र आजमशाह  के कहने पर लिखी गई। जिसके लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। संभवतः भावविलास भी देव ने आजमशाह के कहने पर लिखी थी।देव अपने स्वछन्द स्वभाव के कारण बहुत दिनों तक किसी एक राजा के आश्रय में नहीं रहे। इसी कारण उन्होंने आजम शाह के आश्रय में रहना भी स्वीकार नहीं किया। देव के दूसरे आश्रयदाता दाददीपति राजा सीताराम के भतीजे भवानी दत्त वैश्य थे। यह मूलतः चरखी दादरी (रेवाड़ी) के रहने वाले थे। भवानी दत्त वैश्य के आश्रय में रहकर इन्होंने "भवानी विलास" नामक ग्रंथ लिखा। भवानी दत्त वैश्य के पश्चात् देव के तीसरे आश्रयदाता कुशल सिंह थे। यह फफूँद के निवासी थे। जिनके लिए देव ने "कुशल विलास" नामक ग्रंथ लिखा। देव के वास्तविक गुण - ग्राहक आश्रयदाता राजा भोगीलाल हुए थे। जिनके लिए "रसविलास" नामक ग्रंथ की रचना की। इनके संबंध में देव ने रसविलास में लिखा भी है। कि -
"भोगी लाल भूप लख पाखर लिवैया जिन्द
लाखन खरचि रुचि आखर खरीदे हैं।"
 इसके बाद ड्योड़िया खेड़े के राव मर्दन सिंह के पुत्र राजा उद्योत सिंह वैश्य के लिए "प्रेम चंद्रिका" बनाई। सुजान सिंह के लिए "सुजान विनोद" लिखा। और इसी क्रम में देव के अंतिम आश्रयदाता पिहानी के राजा अली अकबर खाँ रहे, जिनके लिए देव ने "सुखसागर तरंग" लिखी।          
          इनके उपरांत वे लगातार अनेक प्रदेशों में घूमते रहे। यह यात्रा अनुभव पर देव ने "जाति विलास" नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में देव ने विभिन्न जातियों, प्रदेश की स्त्रियों का वर्णन किया। देव की कुछ पुस्तकें वैराग्य पर भी आधारित है। 
              और अपने इस अनंत सफर पर चलते हुए आखिरकार 94 वर्ष की आयु में कवि देव का निधन हो गया।

रचनाएं
        कवि देव की बहुसंख्यक रचनाओं का उल्लेख किया जाता है। कुछ लोगों ने देव की रचनाओं की संख्या 72 तो कुछ लोगों के मतानुसार देव के ग्रंथों की संख्या 52 मानी जाती है। किंतु इनके मात्र 18 प्रमाणिक ग्रंथ ही प्राप्त हुए हैं। कुछ अन्य ग्रंथ भी देव के नाम से उल्लेखित हैं। परंतु जो 18 निर्विवाद रूप से स्वीकार किए गए हैं। इस प्रकार से है।
1- भाव विलास 
2- अष्टयाम
3- भवानी विलास 
4- रस विलास
5- प्रेम चंद्रिका  
6- राग रत्नाकर 
7- सुजान विनोद 
8- जगद्दर्शन पचीसी 
9- आत्मदर्शन पचीसी
10- तत्वदर्शनपचीसी
11- प्रेम पचीसी 
12- शब्द रसायन 
13- सुखसागर तरंग
14-  प्रेम तरंग 
15- कुशल विलास 
16- जाति विलास 
17- देव चरित्र 
18- देवमाया प्रपंच 
 इसके अतिरिक्त देवकृत एक संस्कृत ग्रंथ "श्रृंगार विलासिनी" नाम से भरतपुर में प्रकाशित हुआ था। इस ग्रंथ का मुख्य वर्ण्य विशेष श्रृंगार और नायिका भेद है।

 काव्यगत विशेषताएं
 देव का वर्ण्य विषय प्रेम और श्रृंगार रहा। प्रेम और श्रृंगार के विषय में देव की धारणा उच्च रही। देव का प्रिय रस श्रृंगार रस हैं।  श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का श्रेष्ठ चित्रण देव के काव्य में देखने को मिलता है। प्रकृति की 
सुकुमारता, सरसता, रमणीयता, माधुर्य तथा प्रकृति के उद्दीपन रूप का सजीव व सफल चित्रण देव की कविताओं में हुआ है। जैसा कि देव रीतिकालीन काव्य धारा के कवि थे। जहां एक ओर देव के काव्य में मनुष्य की संपूर्ण चेतना- साधना, मुक्ति और भोग इन तीनों तत्वों का समन्वय मिलता है। वहीं दूसरी और वैराग्य की भावना भी दृष्टिगत होती है। जहां देव की भक्तिपरक रचनाओं से ज्ञात होता है। कि वे निर्गुण ब्रह्म को मानते थे। वहीं दूसरी ओर उन्होंने सगुण का भी विवेचन किया है। देव के काव्य में व्यापक और गहन अनुभव मिलता है। भावों का सजीव और मर्मस्पर्शी वर्णन देव की विशेषता रही है।

 भाषा शैली 
              देव की भाषा शुद्ध ब्रज भाषा है। जिसमें प्रवाह, मिठास और चित्रात्मकता है। शब्दों का प्रयोग भावनानुसार देव की प्रमुख विशेषता रही है। देव ने  कवित्व, दोहा,छप्पय और सवैया छंदों  में काव्य रचना की है। देव की शब्दावली संगीतमय, प्रवाहयुक्त व लयमय है। देव का शब्दचयन अपने आप में अद्भुत है। नायिका सौंदर्य, प्रकृति चित्रण, चरित्र चित्रण में देव को अप्रतिम सफलता प्राप्त हुई है। देव की भाषा  कवित्वशक्ति और मौलिकता दोनों को साथ लेकर चलती है। भाषा में रसाद्रता, सरलता बहुत कम पायी जाती है। उनके काव्य में अनुप्रासात्मकता अधिक होने के कारण कभी-कभी पद बोझिल होने लगते हैं। तुकान्त और अनुप्रास के लिए देव शब्दों को तोड़ - मरोड़ कर लिखने में अधिक बल देते हैं। किंतु देव के जैसा अर्थ सौष्ठव और नवोन्मेष अन्यत्र कम ही देखने को मिलता है। देव ने अपनी काव्य रचना में सरस, परिष्कृत, परिमार्जित भाषा शैली का प्रयोग किया है। इनके काव्य की अभिव्यक्ति अधिकांशतः कवित्त और सवैया छन्दों में हुई है।

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