चंद्रकांत देवताले देश की 24 भाषाओं में विशेष साहित्यिक योगदान के लिए प्रख्यात साहित्यकारों में से हैं।
जीवन परिचय-
चंद्रकांत देवताले जी का जन्म 7 नवंबर 1936 को मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के जौलखेड़ा नामक गांव में हुआ था। चंद्रकांत देवताले जी की प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा - दीक्षा इंदौर में हुई। इसके बाद सन् 1960 ई० में इन्होंने स्नातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की तथा सागर के हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से पी एच डी की उपाधि प्राप्त की।
चंद्रकांत देवताले जी इंदौर के ही एक कॉलेज में शिक्षक रहे। तथा वहीं से सेवानिवृत्त होकर उन्होंने लेखन कार्य किया। उनकी कविताओं का विषय विशेषकर औरतों और बच्चों का संसार तथा मनुष्य के सुख - दुख रहे। चंद्रकांत देवताले जी ने विशेषतः साठोत्तरी काव्य धारा के समर्थ कवि के रूप में ख्याति प्राप्त की।
और मात्र 81 वर्ष की आयु में ही हिंदी के प्रख्यात एवं वरिष्ठ कवि चंद्रकांत देवताले जी का 14 अगस्त 2017 को निधन हो गया। कहा जाता हैं, कि वह पिछले एक माह से अस्वस्थ थे।
रचनाएं -
देवताले जी की प्रमुख कृतियां है।
हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हंस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ, भूखंड तप रहा है, हर चीज आग में बताई गई थी, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि।
उपलब्धियाँ-
चंद्रकांत देवताले जी को मुक्तिबोध फेलोशिप, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शासन का शिखर सम्मान, सृजन भारतीय सम्मान,और कविता समय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें कई पुरस्कार मिले थे। लेकिन उनका अंतिम पुरस्कार 2012 का साहित्य अकादमी था। जो देवताले जी को उनके कविता संग्रह "पत्थर फेंक रहा हूं" के लिए दिया गया था।
काव्यगत विशेषताएं-
देवताले जी की रचनाओं का मुख्य विषय जूता पॉलिश करते एक लड़के से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति तक रहा। दुनिया के सबसे गरीब आदमी से लेकर बुद्ध के देश में बुश पर कविताएं लिखा करते थे। चंद्रकांत देवताले जी की कविताएं अधिकांश गांवों, कस्बों, निम्न- मध्यमवर्गीय परिवेश पर ही आधारित होती थी। उनके काव्य में सामाजिक व्यवस्था के प्रति क्रोध स्पष्ट दिखाई देता है। देवताले जी के काव्य में व्याप्त कटाक्ष और व्यंग्य मानव जीवन की विडंबना तथा सामाजिक व्यवस्था की विषमता के विरुद्ध उनकी आवाज को स्पष्ट करता है। उनका काव्य मानव जीवन, मानवीय संवेदना, सामाजिक कुरूपताओं, बाल श्रम, शोषण आदि के विरुद्ध उनके दृष्टिकोण की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। देवताले जी वंचितों की महागाथा के कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में दलितों, आदिवासियों, शोषितों को जगह दी। उनका काव्य कौशल न्याय के पक्षधर होने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग जैसी आधुनिक चुनौतियों पर भी दिखता है। चंद्रकांत देवताले जी सद्भावना व मानवीय प्रेम के कवि थे।
भाषा शैली -
बैतूल में हिंदी और मराठी बोली जाती थी। इसलिए चंद्रकांत देवताले जी का इन दोनों भाषाओं में समानता अधिकार था। उनकी भाषा जनसामान्य की भाषा थी। वह अपनी बात को कविता के माध्यम से सीधे ढंग से कहते थे। उनके काव्य की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता व स्पष्टता के दर्शन होते हैं। उनकी भाषा आडंबर रहित थी। गद्यात्मकता उनके काव्य रचना की प्रमुख विशेषता थी। वे अपनी बातों को अपने भावों को सीधे और सरल ढंग से ज्यों का त्यों काव्य रूप में लिखने में कुशल थे। उनकी भाषा शैली में निजता थी। अपने भावों को शब्दों पर बल देकर उनके गहरे अर्थ व्यक्त करना उनकी भाषा शैली के प्रमुख विशेषता थी।

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