रामनरेश त्रिपाठी जी का जीवन परिचय


रामनरेश त्रिपाठी 
द्विवेदी युग के महान कवि रामनरेश त्रिपाठी जी ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी अनेक अमूल्य, अतुलनीय रचनाओं से अविस्मरणीय योगदान दिया है। रामनरेश त्रिपाठी का व्यक्तित्व व कृतित्व अत्यंत प्रेरणादायी था।

  जीवन परिचय 
                 रामनरेश त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ( कुशभवनपुर) जिले के ग्राम कोइरीपुर में 4 मार्च 1889 ईसवीं में एक कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता जी का नाम पंडित रामदत्त त्रिपाठी था। पंडित रामदत्त त्रिपाठी जी धार्मिक व सदाचार परायण ब्राह्मण थे। तथा साथ ही वे भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर  कार्यरत थे। रामनरेश त्रिपाठी जी को व्यवहार में धर्मनिष्ठा, कर्तव्य परायणता, राष्ट्रभक्ति, निर्भीकता, दृढ़ता और आत्मविश्वास जैसे गुण उनके पिता से मिली थे। रामनरेश त्रिपाठी जी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी विद्यालय में पूर्ण हुई। तत्पश्चात् कनिष्ठ कक्षा उत्तीर्ण कर वे हाई स्कूल करने हेतु जिला जौनपुर चले गए। किंतु किन्हीं बाधाओं के कारण वे हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी न कर सके, और मात्र 18 वर्ष की आयु में ही राम त्रिपाठी जी के जी की अपने पिता के साथ अनबन हो गयी और वे कोलकाता चले गए। परंतु वहां संक्रामक रोग हो जाने की वजह से अधिक समय तक नहीं रहे और स्वास्थ्य सुधार के लिए त्रिपाठी जी कोलकाता से जयपुर राज्य के सीकर ठिकाना स्थित फतेहपुर ग्राम में एक सेठ राम बल्लभ नेवरिया के पास चले गए। यह त्रिपाठी जी के जीवन की विडंबना ही थी। जो इतने गंभीर संक्रामक रोग के कारण मरणासन्न स्थिति में भी वह अपने घर परिवार में ना जाकर किसी अनजान स्थान राजपूताना के एक अपरिचित  परिवार में चले गए। लेकिन वहां की स्वास्थ्यवर्धक जलवायु में रहकर वे जल्द ही रोगमुक्त हो गए। रोगमुक्त होने के पश्चात् त्रिपाठी जी ने सेठ राम वल्लभ के पुत्रों की शिक्षा - दीक्षा की जिम्मेदारी का निर्वहन बड़ी ही कुशलता पूर्वक किया।  इसी बीच रामनरेश त्रिपाठी जी पर माता सरस्वती की असीम कृपा हुई। और उन्होंने "हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए" जैसी अतुलनीय रचना की। त्रिपाठी जी की लेखन में रुचि प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के दौरान ही उत्पन्न हुई थी। लेकिन प्रार्थना के रूप में उनकी यह रचना उनकी अविस्मरणीय रचना है। जो कि आज भी अनेक विद्यालय में प्रार्थना के रूप में गाई जाती है। यहीं फतेहपुर से ही त्रिपाठी जी ने साहित्य साधना शुरू की। इस साहित्य यात्रा में त्रिपाठी जी ने अनेक छोटे-बड़े बाल उपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और हिंदी में महाभारत भी लिखा था। रामनरेश त्रिपाठी जी ने हिंदी व संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन किया था। त्रिपाठी जी के जीवन पर तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरित मानस का प्रभाव गहरा पढ़ा था।
 बेढब बनारसी जी ने उनके बारे में भी था-
तुम तोप और मैं लाठी,
तुम रामचरितमानस निर्मल, 
मैं रामनरेश त्रिपाठी।
सन् 1915 में पंडित राम नरेश त्रिपाठी जी अपने अर्जित ज्ञान और जीवन के समस्त अनुभवों को पूंजी रूप में साथ लेकर प्रयाग चले गए। और प्रयाग को ही त्रिपाठी जी ने अपना कर्मस्थल, अपना कर्मक्षेत्र बनाया। वहां उन्होंने प्रकाशन का कार्य भी किया। त्रिपाठी जी ने सदैव नियमबद्ध होकर साहित्य सेवा की। उन्होंने गद्य व पद्य का कोई कोना नहीं छोड़ा। वे एक मार्गदर्शी साहित्यकार और उत्कृष्ट कवि थे। सन् 1920 में उन्होंने हिंदी के प्रथम एवं सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय खंडकाव्य "पथिक" की रचना की। त्रिपाठी जी ने इस खंड काव्य की रचना 21 दिनों की थी। इसके अतिरिक्त भी उनके दो प्रसिद्ध मौलिक खंडकाव्य है मिलन व स्वप्न। तथा "स्वपनों के चित्र" उनका पहला कहानी संग्रह है। कहानी लेखन व काव्य लेखन के साथ ही उन्होंने संपादन और प्रकाशन का कार्य किया। तथा "कविता कौमुदी" के सात विशाल एवं अनुपम संग्रह - ग्रंथों का संपादन और प्रकाशन कार्य किया। त्रिपाठी जी मात्र एक कवि ही नहीं थे। वे कर्मवीर भी थे।  त्रिपाठी जी एक गांधीवादी, सच्चे देशभक्त और अडिग राष्ट्रीय सेवक थे। उनके जीवन पर गांधी जी का गहरा प्रभाव था। गांधी जी के निर्देशानुसार ही वे "हिंदी साहित्य सम्मेलन" के प्रचार मंत्री के रूप में हिंदी जगत के दूत बनकर दक्षिण भारत गए। स्वाधीनता संग्राम और किसान आंदोलनों में भाग लेकर वह जेल भी गए।
             रामनरेश त्रिपाठी जी को अपने जीवन काल में कभी कोई सम्मान नहीं मिला। लेकिन जो गौरवप्रद लोक सम्मान व अक्षुण्ण यश त्रिपाठी जी ने कमाया था। वह साहित्य जगत में उनके योगदान को हमेशा याद रखेगा।
                  और अंत में इसी साहित्य सफर में अपना अविस्मरणीय योगदान देते हुए 16 जनवरी 1962 को पंडित रामनरेश त्रिपाठी जी ने अंतिम सांस लेते हुए इस संसार का त्याग कर दिया।

 पंडित त्रिपाठी जी के निधन के पश्चात् साहित्य जगत में उनके योगदान को जीवंत रखने के लिए उनके गृह जनपद "सुल्तानपुर" जिले में "पंडित राम नरेश त्रिपाठी नामक एक सभागार" स्थापित किया गया है। जहां उनकी स्मृतियों को जीवंत रखा जाता है‌। 

 कृतियां 
रामनरेश त्रिपाठी जी ने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, साहित्य, जीवन परिचय,मुक्तक काव्य, बाल साहित्य लोकगीत आदि सभी विधाओं में रचना की है। लेकिन उनकी चार काव्य - कृतियां मुख्य रूप से उल्लेखनीय है। कि इस प्रकार से हैं-
मिलन 
पथिक 
मानसी
स्वपन
इसके अतिरिक्त उनके अन्य रचना इस प्रकार से है-
खंडकाव्य-
 पथिक, मिलन, स्वप्न यह तीनों प्रबंध खंडकाव्य है। यह तीनों खंड काव्य की विषय वस्तु पौराणिक एवं ऐतिहासिक है। जो देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत है।

 मुक्तक काव्य  - मानसी 
"मानसी"प्रेरणात्मक कविताओं का संग्रह है। इसमें मानव समाज को प्रेरणा देने वाली कविताएं संग्रहित है। इस मुक्तक काव्य के लिए त्रिपाठी जी को हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार भी मिला।  मारवाड़ी 
मनोरंजन 
आर्य संगीत 
शतक 
कविता 
क्या होम रूल लोगे। 

 नाटक 
प्रेमलोक
जयन्त 
कन्या का तपोवन 
अजनबी 
पैसा परमेश्वर 
वफाती चाचा 
बा और बापू 

उपन्यास 
लक्ष्मी 
वीरांगना 
सुभद्रा और लक्ष्मी 
मारवाड़ी और पिशाचिनी 
वीरबाला 

बाल साहित्य 
बुद्धि विनोद 
फूलरानी 
गुपचुप कहानी 
बाल कथा कहानी 
आकाश की बातें 

जीवन चरित्र 
अशोक 
महात्मा बुद्ध 

लोकगीत 
ग्राम्य गीत
 त्रिपाठी जी द्वारा रचित "ग्राम्य गीत" कई लोक गीतों का संकलन है। जिसमें उन्होंने ग्रामीण परिवेश को, ग्रामीण परंपरा, ग्रामीण रहन-सहन व संस्कृति को सजीव  किया है।

कहानी संग्रह 
तरकस
आंखों देखी कहानियां 
स्वपनों के चित्र 
नखशिख
उन बच्चों का क्या हुआ? 

व्यंग्य 
दिमागी ऐय्याशी 

अनुवाद  
इतना तो जानो 
(अटलु तो जाग्जो - गुजराती से) 
कौन जागता है (गुजराती नाटक

त्रिपाठी जी ने गांव-गांव घूम-घूम कर रात - दिन अथक परिश्रम कर सोहर और विवाह के गीतों को चुन-चुन कर लगभग 16 वर्षों में "कविता - कौमुदी" नामक एक संकलन तैयार किया। जिसके छह भागों को उन्होंने सन् 1917 से 1933 तक प्रकाशित भी किया। संपादन के क्षेत्र में उन्होंने "कविता कौमुदी" और "शिवा बावनी" का संपादन कार्य किया है।

 साहित्य योगदान 
पंडित राम नरेश त्रिपाठी जी एक कुशल साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी, सच्चे देशभक्त तथा देश सेवी थे। त्रिपाठी जी के काव्य में देश प्रेम की भावना, राष्ट्र भावना, समाज सेवा, मानव सेवा तथा प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति स्पष्ट भाव देखने को मिलते हैं। जहां त्रिपाठी जी ने एक ओर जनमानस के हृदय में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत की। वहीं दूसरी ओर वे अपनी रचनाओं के माध्यम से पाठकों का ध्यान प्राकृतिक सुषमा की ओर भी आकर्षित किया करते थे। उन्होंने कल्पना लोक की सैर करते हुए उच्च कोटि के नाटक, कहानी, उपन्यास आदि की रचना कर पाठकों को लेखन की रसानुभूति करायी हैं। वहीं त्रिपाठी जी ने व्यंग्य व देशभक्ति से परिपूर्ण रचनाएं कर जन-जन को देश सेवा की ओर उन्मुख किया। वे हिंदी साहित्य के सच्चे सेवक थे। त्रिपाठी जी ने कई अमूल्य रचनाएं लिखकर हिंदी साहित्य की धरोहर में वृद्धि की है।

काव्यगत विशेषताएं
रामनरेश त्रिपाठी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। देशभक्ति, ग्रामीण परिवेश, राष्ट्र चेतना, त्याग, बलिदान, माधुर्य, प्राकृतिक सौंदर्य व मानवता आदि त्रिपाठी जी के मुख्य वर्ण्य विषय रहे हैं। वे सदैव रचनात्मक विचारधारा के पोषक कवि रहे। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से मानव जीवन के प्रत्येक कोने कोने को स्पर्श किया है। त्रिपाठी जी एक आदर्शवादी कवि थे। वह अपनी आदर्शवादी रचनाओं के माध्यम से सदैव जनमानस के प्रेरणास्रोत रहे। इनकी रचनाएं पाठकों के हृदय में अमिट छाप छोड़ती हैं। त्रिपाठी जी जनसामान्य के कवि थे। उन्होंने अपने लेखन में जनसामान्य के वास्तविक जीवन से लेकर कल्पना लोक तक का यथार्थ चित्रण किया है।

भाषागत विशेषताएं 
खड़ी बोली कवियों में रामनरेश त्रिपाठी जी का प्रमुख स्थान था। त्रिपाठी जी के काव्य की भाषा सरल, सहज, शुद्ध व खड़ी बोली है। खड़ी बोली के अतिरिक्त त्रिपाठी जी उर्दू, अंग्रेजी, गुजराती व संस्कृत भाषा में भी विद्वान थे।  काव्य सृजन में भावों की स्पष्ट अभिव्यक्ति हेतु वे उर्दू व संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग बड़ी कुशलता पूर्वक किया करते थे। 
          त्रिपाठी जी ने मुख्य रूप से वर्णनात्मक वह उपदेशात्मक शैली का प्रयोग किया है। इन्होंने श्रृंगार, शांत व करुण रस का प्रयोग किया है। त्रिपाठी जी के काव्य में अनुप्रास, रूपक, उपमा व उत्प्रेक्षा आदि अलंकार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
            उनकी रचनाओं में छायावाद के दर्शन होते हैं। त्रिपाठी जी रचित काव्य में प्रकृति का मानवीकरण देखने को मिलता है। वे भावानुकूल भाषा का प्रयोग बड़ी ही कुशलता पूर्वक करते थे।
 
 त्रिपाठी जी स्वछन्दतावादी प्रतिष्ठित कवि थे।  यह कहने पर अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हिंदी कविता में स्वच्छंदतावाद के जन्मदाता "श्रीधर पाठक" की काव्य धारा को आगे बढ़ाने वाले "पंडित राम नरेश त्रिपाठी जी" ही थे।

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