प्रथम भाग में हमने वर्ण - विचार पढ़ा कि वर्ण क्या हैं ? अक्षर क्या हैं ? अब इस भाग में हम पढ़ेंगे कि शब्द क्या हैं ? जैसा कि अब तक हमने पढ़ा की वर्ण सबसे छोटी अविभाज्य इकाई हैं जिसके अधिक टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं। और स्वर मुँह निकलने वाली स्वतंत्र ध्वनि हैं। तथा वर्ण और स्वरों को मिलाकर अक्षर बनते हैं। ठीक इसी प्रकार से अक्षरों के योग से शब्द बनते हैं। और इसमें अब हम हिंदी भाषा के शब्द- सौष्ठव का सविस्तार अध्धयन करेंगे।
किसी भी भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्द उस भाषा का शब्द भंडार कहलाते हैं उसी प्रकार से हिंदी भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्द भी हिंदी भाषा का शब्द भंडार कहलाते हैं। हिंदी भाषा का शब्द भंडार अति विस्तृत हैं। और समय के साथ - साथ यह निरन्तर बढ़ता ही रहता हैं। जैसे - जैसे अन्य संस्कृतियों के लोग सम्पर्क में आते हैं तो आपस में उनकी भाषाओँ का भी आदान - प्रदान होता हैं और सामान्यतः मानव की सीखने की प्रवृति के कारण हम अन्य संस्कृतियों की भाषाओं के शब्दों को सहजता से अपना लेते हैं। और अपने दैनिक व्यवहार में प्रयोग करने लगते हैं। हमारी हिंदी भाषा में विदेशी शब्दों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में सुनने को मिलता हैं। प्रारम्भिक हिंदी भाषा में भी अरबी, फ़ारसी, उर्दू, व अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग हमें यदा - कदा देखने को मिलता हैं। हिंदी भाषा में भारतीय भाषाओँ के अतिरिक्त अन्य विदेशी भाषाओँ ने भी हिंदी को समृद्ध बनाने में यथासंभव योगदान दिया हैं। हिन्दी की प्रवृति सदैव ही समन्वयशील रही हैं, तभी तो विदेशी भाषाओँ के शब्दों को भी ये अपने अनुसार सरलता से स्वीकार कर लेती हैं।
माना हिंदी भाषा में अन्य भाषाओँ के शब्दों का मिश्रण मिलता हैं परन्तु इस बात से कभी इन्कार नहीं किया जा सकता हैं कि हिंदी भाषा में सबसे अधिक संस्कृत भाषा के शब्दों का समावेश हैं। क्योंकि संस्कृत भाषा हिंदी भाषा की सबसे प्राचीनतम स्रोत हैं। तथा संस्कृत के कई शब्द आज भी हिंदी भाषा में ज्यौं के त्यौं प्रयोग किये जाते हैं।
शब्द की परिभाषा -
दो या दो से अधिक अक्षरों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं।
जैसे - दि + न + क + र = दिनकर
यहाँ पर दिनकर शब्द चार अक्षरों से मिलकर बना हैं।
शब्द एक से अधिक ऐसे अक्षरों का योग हैं जिसका कोई अर्थ भी बनता हो। जिन अक्षरों के योग से बने शब्द का कोई भी अर्थ नहीं होता हैं उसे हम शब्द नहीं कह सकते हैं।
शब्द के प्रकार -
सामान्यतः शब्द मात्रा दो प्रकार के ही होते हैं।
१ - सार्थक शब्द २ - निरर्थक शब्द
सार्थक शब्द परिभाषा -
जिन शब्दों का अपना एक निश्चित अर्थ होता हैं ,वे सार्थक शब्द कहलाते हैं।
जैसे - पर्वत , यमुना , घर , सड़क ,चेहरा आदि।
निरर्थक शब्द की परिभाषा -
जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता हैं, वे निरर्थक शब्द कहलाते हैं। ये शब्द सामान्यतः आमतौर पर बोलचाल की भाषा में सार्थक शब्दों के साथ मिलकर बोले जाते हैं। जैसे - रोटी - सोटी, हल्ला - गुल्ला, पानी - वानी, सोना - वोना, सच्ची - मुच्ची, परसों - नरसों आदि।
उपरोक्त दिए गए उदाहरणों में प्रथम शब्द रोटी, हल्ला, पानी, सोना, सच्ची, परसों आदि तो निश्चित रूप से सार्थक शब्द हैं। और सार्थक शब्द के साथ दिया गया जैसे - सोटी, गुल्ला, वानी, वोना, मुच्ची, नरसों आदि निरर्थक शब्द हैं। कई भाषा - भाषिक लोग निरर्थक शब्दों को सार्थक शब्दों के साथ उच्चारित करने के आदि होते हैं।
ऊपर हमने शब्द के दो प्रकार सार्थक व निरर्थक पढ़े। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता हैं कि निरर्थक शब्द जिनका कोई अर्थ नहीं होता हैं वे व्याकरण के नियमों का पालन नहीं करते हैं और साथ ही अर्थहीन होने के कारण इनका अस्तित्व यहीं समाप्त हो जाता हैं। ये निरर्थक शब्द व्याकरण के अध्धयन में आगे नहीं बढ़ते हैं।
इससे पहले हमने पढ़ा कि शब्द दो प्रकार होते हैं। सार्थक शब्द व निरर्थक शब्द। निरर्थक शब्द तो यहीं छूट जाते हैं। आगे हम सार्थक शब्दों के प्रकार पढ़ेंगे। जो इस प्रकार से हैं।
शब्द
↓
↓-----------------------------------------------------------↓
सार्थक शब्द निरर्थक शब्द
↓
↓
↓ --------------------------------------------------------------------------------------------------------↓
↓ ↓ ↓ ↓
बनावट के आधार पर उत्पत्ति के आधार पर अर्थ के आधार पर रूपान्तर के आधार पर
↓ ↓ ↓ ↓
↓---------↓-----------↓ ↓--------↓--------↓--------↓ ↓---------↓------------↓ ↓
रूढ़ि यौगिक योग-रूढ़ि तत्सम तद्भव देशज विदेशी वाचक लाक्षणिक व्यञ्जक ↓
↓
↓------------------------↓
विकारी अविकारी
↓-----------↓-----------↓---------↓ ↓
संज्ञा सर्वनाम विशेषण क्रिया ↓
↓---------------------↓-----------------↓-------------------------↓
क्रिया - विशेषण सम्बन्धबोधक समुच्चयबोधक विस्मयादिबोधक
सार्थक शब्दों मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं। जो निम्नलिखित हैं -----
(१-) बनावट/ रचना के आधार पर शब्दों के प्रकार -
सार्थक शब्द के अंतर्गत सर्वप्रथम वे शब्द आते हैं ,जो कि अपनी बनावट से व्याकरण में जाने जाते हैं। इससे पहले हमने ज्ञात किया कि अक्षरों के योग से शब्द बनते हैं। पर हिंदी व्याकरण में कई शब्द ऐसे भी हैं जो कि दो शब्दों के योग से एक नए शब्द का निर्माण करते हैं। और साथ ही कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं जो कि अपनी बनावट के कारण एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।
बनावट के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं ---
१ - रूढ़ि शब्द
२ - यौगिक शब्द
३ - योग - रूढ़ि शब्द
१ - रूढ़ि शब्द -
रूढ़ि शब्द सामान्य शब्दों के अंतर्गत आते हैं। वे शब्द जो सामान्यतः अक्षरों के योग से ही बनते हैं तथा एक साधारण अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।
जैसे - कण,
सेब,
आम,
पल ,
हाथ आदि।
रूढ़ि शब्दों को यदि अलग - अलग कर दिया जाये तो इनका कोई अर्थ नहीं निकलता हैं।
२ - यौगिक शब्द -
जब दो शब्दों को मिलाकर एक नए शब्द का निर्माण किया जाता हैं , तो वह नवनिर्मित शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं।
जैसे - रसोईघर = रसोई + घर
चिड़ियाघर = चिड़िया + घर
नवजीवन = नव + जीवन
छात्रावास = छात्रा + वास
राजस्थान = राज + स्थान
यौगिक शब्दों की विशेषता हैं कि यदि इन शब्दों को दो अलग - अलग शब्दों में विभाजित कर दिया जाता हैं तो भी ये अपना एक भिन्न अर्थ में प्रयुक्त होते हैं ।
जैसे - रसोईघर = रसोई ( पाकशाला ) घर ( गृह )
नवजीवन = नव ( नया ) जीवन ( जिन्दगी )
छात्रावास = छात्रा ( विद्यार्थी ) वास ( आवास )
राजस्थान = राज ( रहस्य ) स्थान ( जगह )
३ - योग - रूढ़ि शब्द -
जब कोई शब्द दो शब्दों या शब्दांशों के योग से बनता हैं तथा साथ ही अपने एक विशेष अर्थ में भी प्रयुक्त होता हैं, तो वह शब्द योग रूढ़ शब्द कहलाते हैं।
जैसे - जलज = जल + ज = जल में उत्पन्न - अर्थात कमल
नीलकंठ = नील + कंठ = नीला हैं कंठ जिसका -अर्थात शिवजी
चक्रधर = चक्र + धर = चक्र धारण करने वाला - अर्थात श्रीकृष्ण
हलधर = हल + धर = विष धारण करने वाला - अर्थात शिवजी
चक्रपाणि = चक्र + पाणि = जिसके हाथ में चक्र हो - अर्थात श्रीकृष्ण
उपरोक्त दिए गए प्रत्येक उदाहरण में आप देखे कि योग रूढ़ि शब्दों का जो भी अर्थ - विश्लेषण किया गया हैं उनको एक विशेष अर्थ में लिया जाता हैं। जिन नामों को सुनकर हमारे मन - मष्तिक में विशेष छवि उभरकर सामने आती हैं। जैसे नीलकंठ और हलधर शिवजी को कहा जाता हैं। चक्रधर और चक्रपाणि श्रीकृष्ण को कहा जाता हैं ,तथा जलज कमल का पर्यायवाची हैं।
( २ -) उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के प्रकार -
सर्वविदित हैं कि हिंदी भाषा का शब्द भंडार अति विस्तृत हैं। हिंदी भाषा में विभिन्न भाषाओं के शब्द भी मिलते हैं। हिंदी भाषा की मिश्रित शब्दावली के जो मुख्य स्रोत हैं, उन्हें हिंदी भाषा में मिश्रित भाषा की उत्पत्ति कहा जाता हैं। उत्पत्ति के आधार पर व्याकरण में शब्दों का वर्गीकरण इस प्रकार से किया गया हैं।
उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के चार प्रकार हैं -----
१ - तत्सम शब्द
२ - तद्भव शब्द
३ - देशज शब्द
४ - विदेशी शब्द
१ - तत्सम शब्द -
तत्सम शब्द दो संस्कृत शब्दों तत् और सम से मिलकर बना हैं। तत् का संस्कृत में अर्थ होता हैं उसके, और सम का अर्थ होता हैं समान। और इस तरह से तत् + सम = तत्सम शब्द का शाब्दिक अर्थ होता हैं उसके समान। वे शब्द जो संस्कृत से हिंदी में ज्यौं के त्यौं प्रयोग में लायें गए हैं, तत्सम शब्द कहलाते हैं। तत्सम शब्दों को संस्कृत से हिंदी में उनके मूल रूप में स्वीकार किया गया हैं तथा वे अपने संस्कृत स्वरुप में ही आज भी प्रचलन में हैं। हिंदी भाषा में संस्कृत शब्द सबसे अधिक मात्रा में मिलते हैं।
जैसे -- अग्नि
क्षेत्र
हस्त
पुष्प
कुष्ठ इत्यादि।
२ - तद्भव शब्द -
तद्भव शब्द तद् और भव दो शब्दों के योग से बना हैं,जिसमें तद् शब्द का अर्थ उससे और भव शब्द अर्थ होता हैं उत्पत्ति, अतः तद्भव शब्द का शाब्दिक अर्थ होता हैं उससे उत्पन्न। वे शब्द जो संस्कृत से आये हैं परन्तु हिंदी में आने के पश्चात् उनके मूल रूप में कुछ परिवर्तन आया हैं तद्भव शब्द कहलाते हैं।
तद्भव - तत्सम
जैसे - आधा - अर्द्ध
अक्षि - आँख
उष्ट्र - ऊँट
पुच्छ - पूँछ
कर्पूर - कपूर इत्यादि।
३ - देशज शब्द -
हिंदी भाषा में हिंदी व संस्कृत भाषा के अलावा कई ऐसे शब्द हैं जो सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयोग तो किये जाते हैं, परन्तु वे किस भाषा के शब्द हैं, वह हमें स्पष्ट ज्ञात नहीं होता हैं,ऐसे शब्द ही देशज शब्द कहलाते हैं।
जैसे - इज्जत
पैसा
दफ्तर
नतीजा
पेंसिल इत्यादि।
४ - विदेशी शब्द -
वे शब्द जो किसी भी अन्य देश की भाषा के हिंदी भाषा में ज्यौं के त्यौं प्रयुक्त किये जाते हैं विदेशी शब्द कहलाते हैं।
जैसे - ऑफिस
टेलीफोन
रेलवे
इंजीनियर
स्कूल इत्यादि।
( ३ -) अर्थ के आधार पर शब्दों के प्रकार -
सभी जानते हैं कि प्रत्येक शब्द का एक अर्थ होता हैं। जिसे हम शब्द का शाब्दिक अर्थ, मूल अर्थ या शब्द का मुख्यार्थ कहते हैं। कई बार एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ भी निकलते हैं और ऐसा भी होता हैं कि शब्द का अर्थ कुछ होता हैं, और हमारा उच्चारण या सम्प्रेषण उसका अर्थ बदल देता हैं। हिंदी व्याकरण में विभिन्न प्रकार के शब्द हैं कोई शब्दार्थ प्रकट करता हैं। तो कोई शब्द एक के साथ अनेक अर्थ प्रकट करता हैं, तो कई शब्द ऐसे हैं जो अलग - अलग होते हुए भी एक ही अर्थ के लिए प्रयुक्त होते हैं , और इसी को ध्यान में रखते हुए अर्थ के आधार पर शब्दों के प्रकार निम्नलिखित हैं ---
अर्थ के आधार पर शब्द मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं -
१- वाचक ( अभिधा )
२- लाक्षणिक ( लक्षणा )
३- व्यञ्जक ( व्यञ्जना )
१- वाचक ( अभिधा ) -
वे शब्द जिनका अर्थ सरलतापूर्वक ग्रहण किया जाता हैं तथा जिन्हें पढ़कर उनके मुख्यार्थ का बोध होता हैं उन्हें वाचक शब्द कहते हैं।
जैसे - सरकार, राधा, आगरा, ताजमहल आदि।
२- लाक्षणिक ( लक्षणा ) -
वे शब्द जिनका प्रयोग उनके सीधे अर्थ अर्थात शाब्दिक अर्थ से न लेकर किसी अन्य प्रयोजन से या व्यंग्य की तरह किसी दूसरे अर्थ में लिया जाता हैं , या शब्द को उसके मुख्य अर्थ में ना लेकर उसके विपरीत अर्थ वाले शब्द को व्यंग्यात्मक शैली में प्रयोग किया जाता हैं , वे शब्द लाक्षणिक शब्द कहलाते हैं।
जैसे - किसी मूढ़ बुद्धि वाले इंसान को महा ज्ञानी कहकर सम्बोधित करना। मूढ़ बुद्धि को बुद्धिहीन न कहकर महा ज्ञानी कहना यहाँ पर व्यंग्य करना हैं , न कि तारीफ करना।
उद्दण्ड प्रवृति वाले बालक को बन्दर कह देना, वास्तव में वो बन्दर तो नहीं हैं, क्योंकि बन्दर भी उद्दण्ड प्रवृति के ही होते हैं। इसलिए समान प्रवृति का होने के कारण ऐसा कहा जाता हैं।
३- व्यञ्जक ( व्यञ्जना ) -
वे शब्द जिनका न तो शब्दार्थ प्रयोग होता हैं न ही लाक्षणिक शब्द की भांति प्रयोग किया जाता हैं। जिनका प्रयोग संकेतार्थ किया जाता हैं अर्थात किसी भी बात को कहा तो सीधे शब्दों में ही जाता हैं, परन्तु अर्थ सांकेतिक होता हैं , उन्हें व्यञ्जक शब्द कहते हैं। व्यञ्जक शब्दों को हम दो लोगों के मध्य की सांकेतिक - व्यक्तिगत - भाषा भी कह सकते हैं ,जो किसी अन्य से रहस्य रखी जाती हैं।
जैसे - दो बच्चे आपस में बात करते हैं कि पापा टी वी पर समाचार देखना कब छोड़ेंगे,इसका मतलब है कि उन्हें टी वी पर कार्टून देखना हैं।
एक चोर कहता हैं कि रात को ठीक ग्यारह बजे इस मोहल्ले में सभी घरों के लोग सो जाते हैं, अर्थात वह दूसरे चोर से कहना चाहता है कि ग्यारह बजे का समय चोरी के लिए सही हैं।
उपरोक्त अर्थ के आधार पर शब्दों के मुख्यतः तीन प्रकारों का वर्णन किया गया हैं। लेकिन जब हम इन तीनो प्रकारों का अध्धयन करते हैं तो हमें पता चलता हैं कि शब्दों को किस - किस प्रकार से प्रयोग किया जाता हैं।
किसी भी शब्द का एक मुख्यार्थ होता हैं जिसे हम एकार्थी शब्द भी कह सकते हैं। दूसरा वे शब्द जिन्हे हम मुख्य शब्द के विपरीत अर्थ वाले शब्द को लक्ष्यार्थ प्रयोग करते हैं , जिन्हें हम विपरीतार्थक शब्द भी कह सकते हैं। तीसरा हमने पढ़ा कि किसी शब्द को सांकेतिक भाषा के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता हैं। जैसा कि व्यञ्जना शब्द के अंतर्गत किया जाता हैं। और कई बार एक शब्द के स्थान पर अन्य समान अर्थ वाले शब्दों का भी प्रयोग किया जाता हैं। इसी विस्तृत अध्धयन के माध्यम से हमें ज्ञात होता हैं , कि अर्थ के आधार शब्दों के अन्य भेद इस प्रकार से हैं ----
अर्थ के आधार पर शब्दों के अन्य प्रकार --
१ - एकार्थी शब्द
२ - अनेकार्थी शब्द
३ - समानार्थी या पर्यायवाची शब्द
੪ - श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द
५ - विलोम या विपरीतार्थक शब्द
१ - एकार्थी शब्द -
वे शब्द जिनका एक ही अर्थ होता हैं, जिसे शब्द का मुख्यार्थ या शब्दार्थ कहा जाता हैं, एकार्थी शब्द कहलाते हैं। एकार्थी शब्दों के अंतर्गत व्यक्ति विशेष शब्द (व्यक्तिवाचक ) जाति विशेष शब्द ( जातिवाचक ) और स्थान विशेष शब्द ( स्थानवाचक ) ही आते हैं।
जैसे - दिल्ली, राधा, तुलसीदास, आगरा, गाँधी जी आदि।
२ - अनेकार्थी शब्द -
वे शब्द जिनके एक से अधिक अर्थ होते हैं, अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। ये शब्द सन्दर्भ के अनुसार अपना अर्थ प्रस्तुत करते हैं। अर्थात जिस विषय से सम्बंधित बात कही जा रही हैं उसी विषयानुसार शब्द के अनेक अर्थों में से एक अर्थ का अनुमान लगाया जाता हैं।
जैसे - गुरु - शिक्षक, भारी, बड़ा, दो मात्राओं वाला वर्ण।
जलज - पंकज, शंख, मोती, मछली।
वर्ण - जाति, रंग , अक्षर।
कर - हाथ, किरण, हाथी की सूंड, टैक्स, क्रिया का आज्ञार्थक रूप करना।
तीर - किनारा, बाण।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट हैं कि एक ही शब्द के कई अलग - अलग अर्थ होते हैं। जिन्हें विभिन्न स्थानों पर विषयानुसार प्रयुक्त किया जाता हैं।
३ - समानार्थी या पर्यायवाची शब्द -
वे शब्द जो अलग - अलग होते हुए भी एक समान अर्थ रखते हैं, या वे भिन्न - भिन्न शब्द जो एक ही अर्थ के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं। पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं। पर्यायवाची शब्दों को समानार्थी शब्द भी कहा जाता हैं।
जैसे - अमृत - सुधा, पीयूष, सोम, अमिय।
गंगा - भागीरथी, मन्दाकिनी,सुरसरि, देवनदी, जाह्नवी।
चन्द्रमा - चन्द्र, इंदु, विधु, शशि, राकेश।
उन्नति - उत्थान, विकास, प्रगति, उत्कर्ष, अभ्युदय।
घर - गृह, सदन, भवन, आलय, निवास,निकेतन।
ऊपर दिए गए उदाहरणों में से हमें ज्ञात होता हैं कि है प्रत्येक पंक्ति में दृष्टव्य भिन्न - भिन्न शब्द एक ही अर्थ के लिए प्रयोग किये गए हैं।
੪ - श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द -
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता हैं, श्रुति = सुनने में, सम = समान, भिन्नार्थक = भिन्न अर्थ वाले, अर्थात सुनने में समान परन्तु भिन्न अर्थ रखने वाले शब्द। वे शब्द जो सुनने में तो समान होते हैं परन्तु उनके अर्थ भिन्न - भिन्न होते हैं, श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं।
जैसे - अवधि - निश्चित समय। बात - बातचीत।
अवधी - अवध की भाषा। वात - वायु।
निर्झर - झरना। निर्जर - देवता।
दिन - दिवस। दीन - गरीब।
उपरोक्त दिए गए उदाहरणों में देखा जा सकता हैं कि दो समान शब्दों का उच्चारण तो समान होता हैं परन्तु दोनों के अर्थ में पर्याप्त भिन्नता होती हैं।
५ - विलोम या विपरीतार्थक शब्द -
वे शब्द जो किसी न किसी शब्द का विपरीत अर्थ प्रस्तुत करते हैं। विलोम या विपरीतार्थक शब्द कहलाते हैं।
जैसे - आकर्षण - विकर्षण।
ऋजु - वक्र।
उपयोग - अनुपयोग।
प्रधान - गौण।
नख - शिख।
ऊपर दृष्टव्य हैं कि दूसरी पंक्ति के शब्द प्रथम पंक्ति के शब्दों का विपरीत अर्थ प्रकट करते हैं।
( ४ -) रूपान्तर के आधार पर शब्द के प्रकार -
जब हम कई शब्दों को मिलाकर एक वाक्य की रचना करते हैं, तो उस वाक्य रचना में कई प्रकार के शब्दों का समावेश होता हैं। और प्रत्येक शब्द आपस में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। यदि हम मुख्य शब्दों को ही लेकर वाक्य रचना करना चाहे तो वाक्य कैसा बनेगा, जैसे -- चिकित्सक अस्पताल मरीज इलाज करता हैं। इस वाक्य से पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हो पा रही हैं। इसलिए पूर्ण भावाभिव्यक्ति के लिए हमें इस वाक्य में कुछ अन्य शब्द भी जोड़ने होंगे। जैसे - चिकित्सक अस्पताल में मरीजों का इलाज करते हैं। हमने इस वाक्य में "में " और "का " शब्द को जोड़ा हैं तथा साथ ही "मरीज" व "करता " शब्द को एकवचन से बहुवचन "मरीजों" व "करते " में परिवर्तित किया हैं। तत्पश्चात वाक्य का पूर्ण भाव प्रकट होता हैं। इसे वाक्य का रूपान्तरण कहते हैं। इस प्रकार से कई बार शब्दों के मूल रूप के प्रयोग से तो कई बार शब्दों के परिवर्तित रूप के प्रयोग से वाक्य की रचना की जाती हैं। हिंदी शब्द भण्डार में कई ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग करने से वाक्य के अन्य शब्द प्रभावित व परिवर्तित होते हैं, और कई शब्द ऐसे हैं जिनके प्रयोग से वाक्य और वाक्य के भाव में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं। इसी आधार शब्दों को दो भागों में विभाजित किया गया हैं।
रूपान्तर के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं --
१ - विकारी शब्द
२ - अविकारी शब्द
(१ -) विकारी शब्द -
वे शब्द जो लिंग, ,वचन, और कारक के कारण परिवर्तित होते हैं, विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे - हम, तुम, वह, लड़का आदि।
प्रयोगानुसार विकारी शब्दों के मुख्यतः चार भेद होते हैं --
१ - संज्ञा
२ - सर्वनाम
३ - विशेषण
४ - क्रिया
१ - संज्ञा -
संज्ञा अर्थात नाम। किसी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी, स्थान, जाति व भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे - राधा ( व्यक्ति ),किताब ( वस्तु ), दिल्ली (स्थान ), पशु ( जाति ), मुस्कुराना (भाव ) आदि।
संज्ञा के मुख्यतः भेद होते हैं।
१ - व्यक्तिवाचक संज्ञा
२ - जातिवाचक संज्ञा
३ - भाववाचक संज्ञा
संज्ञा
↓
↓------------------------------------------------ ↓----------------------------------------------↓
↓ ↓ ↓
व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा भाववाचक संज्ञा
१ - व्यक्तिवाचक संज्ञा -
वे शब्द जिनसे किसी एक ही व्यक्ति, वस्तु आदि का बोध होता हैं, व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाते हैं। जैसे - कबीर, मथुरा, यमुना, सविता आदि।
२ - जातिवाचक संज्ञा -
वे शब्द जिनसे किसी प्राणी व वस्तु समस्त जाति का बोध होता हैं, जातिवाचक संज्ञा कहलाते हैं। जैसे - पशु, पक्षी, मनुष्य, पर्वत इत्यादि।
३ - भाववाचक संज्ञा -
वे शब्द जिनसे किसी व्यक्ति या प्राणी के भाव, स्वभाव, दशा, मनोदशा का बोध होता हैं, भाववाचक संज्ञा कहलाती हैं। जैसे - बचपना, हर्ष, गरीबी, मुस्कराहट आदि।
२ - सर्वनाम -
वाक्य में एक से अधिक बार संज्ञा का प्रयोग ना करते हुए, वे शब्द जो संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किये जाते हैं, सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे - वह, तुम, हम, यह, तुम्हें, उनका इत्यादि।
उदाहरण --
* वह एक अच्छा लड़का हैं।
* तुम कल मेरे घर आना।
* मीरा मेरी बहन हैं वह बहुत अच्छा नृत्य करती हैं।
* तुम्हें टीचर जी ने बुलाया हैं।
सर्वनाम मुख्य रूप से छह प्रकार के होते हैं --
१ - पुरुषवाचक सर्वनाम
२ - निश्चयवाचक सर्वनाम
३ - अनिश्चयवाचक सर्वनाम
४ - सम्बन्धवाचक सर्वनाम
५ - प्रश्नवाचक सर्वनाम
६ - निजवाचक सर्वनाम
सर्वनाम
↓
↓--------------------↓----------------↓----------------------↓---------------------↓-------------------↓
↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓
पुरुषवाचक निश्चयवाचक अनिश्चयवाचक सम्बन्धवाचक प्रश्नवाचक निजवाचक
सर्वनाम सर्वनाम सर्वनाम सर्वनाम सर्वनाम सर्वनाम
↓
↓
↓------------↓-----------↓
↓ ↓ ↓
उत्तम मध्यम अन्य
पुरुष पुरुष पुरुष
१ - पुरुषवाचक सर्वनाम -
जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग किसी प्रकार के पुरुष अर्थात बात कहने वाले, सुनने वाले, जिसके बारे में बात कही जा रही हो, के लिए किया जाता हैं, पुरुष वाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे - मैं, तुम, वह।
पुरुष तीन प्रकार के होते हैं --
१ - उत्तम पुरुष
२ - मध्यम पुरुष
३ - अन्य पुरुष
१ - उत्तम पुरुष -
उत्तम पुरुष बात कहने वाले को कहते हैं। जैसे - मैं, हम।
२ - मध्यम पुरुष -
जिससे बात कही जा रही हैं, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे - तू, तुम, आप।
३ - अन्य पुरुष -
जिस किसी से सम्बन्धित बात कही गयी हैं, उसे अन्य पुरुष कहते हैं। जैसे - वह, वे।
२ - निश्चयवाचक सर्वनाम -
वे सर्वनाम शब्द जो किसी वस्तु के निश्चित रूप से होने का बोध कराते हैं, निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे - यह, वह।
उदाहरण
* यह किताब हैं।
* वह पुस्तकालय हैं।
३ - अनिश्चयवाचक सर्वनाम -
जिन सर्वनाम शब्दों से किसी वस्तु के निश्चित रूप से बोध नहीं होता हैं, वे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे - किसी, कुछ, कहीं, कौन।
उदाहरण -
* किसी से भी पूँछ लो।
* पानी में कुछ गिरा हैं।
* वहाँ कौन हैं ?
* कहीं से भी लाओ।
४ - सम्बन्धवाचक सर्वनाम -
जो सर्वनाम शब्द वाक्य में प्रस्तुत शब्दों को आपस में जोड़ते हैं, या दो वाक्यांशों का आपस में सम्बन्ध स्थापित करते हैं, वे सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे - जो, सो, जैसा, वैसा सा, जिसकी , उसकी आदि।
उदाहरण -
* जो सोवेगा, वो खोवेगा, जो जागेगा, सो पावेगा।
* जैसा कर्म करोगे, वैसा फल ही पाओगे।
* जिसकी लाठी, उसकी भैस।
५ - प्रश्नवाचक सर्वनाम -
वे सर्वनाम शब्द जिनका प्रयोग किसी वस्तु, व्यक्ति के विषय में प्रश्न पूछने के लिए किया जाता हैं, वे शब्द प्रश्नवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे -- कौन, क्या, कैसे, किसे, क्यों आदि।
उदाहरण -
* दरवाजे पर कौन हैं ?
* क्या आप चाय पियेंगे ?
* ये पतंग कैसे उड़ाई जाती हैं ?
* ये किताब किसे मिली ?
* विकास तुम कल स्कूल क्यों नहीं आये ?
६ - निजवाचक सर्वनाम -
वे सर्वनाम शब्द जिनका प्रयोग वक्ता अपने लिए करता हैं, निजवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे -- स्वयं, खुद, अपने, आप, स्वतः आदि।
उदाहरण -
* मैं अपना कार्य स्वयं करूंगा।
* निम्मी को उसका काम खुद करने दो।
* स्वयं को बदलिए समाज स्वतः बदल जायेगा।
* मैं दफ्तर अपने आप चला जाऊँगा।
३ - विशेषण -
जो शब्द हमें संज्ञा, और सर्वनाम की विशेषता बताते हैं , अर्थात संज्ञा, सर्वनाम गुण, धर्म, दोष, आकार, प्रकार, रंग इत्यादि का वर्णन करते हैं, विशेषण कहलाते हैं। जैसे - नीला, ऊँचा,मोटा, सुन्दर, उद्दण्ड, बुरा आदि।
उदाहरण
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वाक्य - विशेषण - विशेष्य
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- * उसकी पतंग नीली हैं। - नीली - पतंग
* नारियल का पेड़ ऊँचा होता हैं। - ऊँचा - नारियल
* वह लड़का मोटा हैं। - मोटा - लड़का
* जिज्ञासा बहुत सुन्दर हैं। - सुन्दर - जिज्ञासा
* सूरज बुरा लड़का हैं। - बुरा - लड़का
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विशेष्य -
जिन शब्दों की विशेषता बतायी जाती हैं, उन्हें विशेष्य कहते हैं। अर्थात संज्ञा व सर्वनाम शब्दों को व्याकरण की भाषा में विशेष्य कहते हैं।
विशेषण के भेद -
सर्वविदित हैं कि संज्ञा व सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं। विशेषण हमें संज्ञा व सर्वनाम के विषय में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। संज्ञा व सर्वनाम की विशेषताएँ विभिन्न प्रकार से वर्णित जाती हैं। इसी आधार पर विशेषण के प्रकार निश्चित किये गए हैं।
विशेषण के मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं --
* गुणवाचक विशेषण
* संख्यावाचक विशेषण
* परिमाणवाचक विशेषण
* सार्वनामिक विशेषण
विशेषण
↓
↓
↓---------------------------------↓-------------------------------------↓-------------------------------↓
↓ ↓ ↓ ↓
गुणवाचक संख्यावाचक परिमाणवाचक सार्वनामिक
विशेषण विशेषण विशेषण विशेषण
↓ ↓ ↓
↓ ↓ ↓
↓---------------------↓ ↓-----------------↓ ↓-----------------↓
↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓
निश्चित अनिश्चित निश्चित अनिश्चित मूल यौगिक
संख्यावाचक संख्यावाचक परिमाणवाचक परिमाणवाचक सार्वनामिक सार्वनामिक
विशेषण विशेषण विशेषण विशेषण विशेषण विशेषण
↓
↓
↓--------------↓--------------↓---------------↓-----------------↓-----------------↓
पूर्णांक अपूर्णांक क्रमवाचक आवृतिवाचक समूहवाचक प्रत्येक
बोधक बोधक बोधक बोधक बोधक बोधक
१ - गुणवाचक विशेषण -
जिन शब्दों से हमें संज्ञा व सर्वनाम रंग, रूप, गुण आदि विशेषताओं का बोध होता हैं, गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं। जैसे -- सरल, नटखट, सुंदर, विशाल, बुद्धिमान आदि।
* बच्चे नटखट होते हैं। नटखट - गुणवाचक विशेषण
* गमले में सुन्दर फूल खिला हैं। सुन्दर - गुणवाचक विशेषण
* सरोजिनी एक सरल स्वाभाव की लड़की हैं। सरल - गुणवाचक विशेषण
* हमारे घर के सामने एक विशाल वृक्ष हैं। विशाल - गुणवाचक विशेषण
* शुभम बहुत बुद्धिमान हैं। बुद्धिमान - गुणवाचक विशेषण
उपरोक्त उदाहरणों में नटखट, सुन्दर, सरल, विशाल, बुद्धिमान आदि गुणवाचक विशेषण हैं परन्तु गुणवाचक विशेषण में मात्र अच्छाई ही नहीं आती हैं। गुणों में बुरा, भला, ऊँचा, नीचा, हरा, पीला (रंग ), उचित, अनुचित, सच, झूठ, मोटा, पतला, नया, पुराना आदि सभी शब्द आते हैं।
२ - संख्यावाचक विशेषण -
जिन शब्दों से हमें संज्ञा व सर्वनाम की संख्या ज्ञात होती हैं, वे संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं। जैसे - दो, चार, ग्यारवीं, लाख, दस, बारह आदि।
* राहुल ने दो आम खाएं। दो - संख्यावाचक विशेषण
* मैदान में चार बच्चे खेल रहे हैं। चार - संख्यावाचक विशेषण
* रितिका ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती हैं। ग्यारहवीं - संख्यावाचक विशेषण
* अभी घड़ी में दस बजे हैं। दस - संख्यावाचक विशेषण
* एक दर्जन में बारह केले आते हैं। बारह - संख्यावाचक विशेषण
संख्यावाचक विशेषण के दो भेद होते हैं।
* निश्चित संख्यावाचक विशेषण
* अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण
१ - निश्चित संख्यावाचक विशेषण -
निश्चित संख्यावाचक विशेषण शब्द हमें संज्ञा व सर्वनाम की निश्चित संख्या का बोध कराते हैं। निश्चित संख्यावाचक विशेषण शब्द हैं -- सात, नौ, पचास, सौ आदि।
उदाहरण -
* एक रुपये में सौ पैसे होते हैं।
* एक सप्ताह में सात दिन होते हैं।
* आँगन में नौ चिड़िया दाना चुग रही हैं.
* एक पैकेट में पचास टॉफी हैं।
निश्चित संख्यावाचक विशेषण छह भेद होते हैं।
* पूर्णांक बोध - जैसे - दस, सौ, हज़ार, लाख आदि।
* अपूर्णांक बोधक - जैसे - पौना , सवा, डेढ़, ढाई आदि।
* क्रमवाचक बोधक - जैसे - पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवा आदि।
* आवृतिवाचक बोधक - जैसे - दोगुना, तिगुना, सौगुना, दसगुना आदि।
* समूहवाचक बोधक - जैसे - दसों, तीनों, सातों, चारों आदि।
* प्रत्येक बोधक - जैसे - एक -एक, प्रत्येक, हरेक आदि।
२ - अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण -
अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण में वस्तु की किसी भी निश्चित संख्या का बोध नहीं होता हैं। जैसे - थोड़ा, असंख्य, अनेक, सारे, सभी, कुछ आदि।
उदाहरण -
* फर्श पर थोड़ा पानी गिरा हैं।
* आसमान असंख्य तारे होते हैं।
* सारे बच्चे बारिश में भीग रहे हैं।
* बगीचे में अनेक तरह के फूल खिले हैं।
* सभी बच्चे सड़क पर स्कूल बस का इन्तजार कर रहे हैं।
३ - परिमाणवाचक विशेषण -
वे शब्द जिनसे किसी वस्तु की माप - तौल का बोध होता हैं, वे शब्द परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं। माप - तौल अर्थात परिमाण। जैसे - दो मीटर , इतना - सा पानी, थोड़ा - सा दूध, एक दर्जन इत्यादि।
उदाहरण -
* मुझे एक दर्जन केले चाहिए।
* सीमा ने दो लीटर दूध ख़रीदा।
* बेबी इतना - सा ही पानी पीते हैं।
* टोकरी में एक किलो सेब रखे हैं।
परिमाणवाचक विशेषण के भी दो भेद होते हैं --
* निश्चित परिमाणवाचक विशेषण
* अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण
१ - निश्चित परिमाणवाचक विशेषण -
निश्चित परिमाणवाचक विशेषण में वस्तु की माप - तौल की निश्चित संख्या का बोध होता हैं। जैसे - तीन दर्जन, पाँच मीटर, चार लीटर।
उदाहरण -
* समर से चार लीटर दूध गिर गया।
* परम बाजार से तीन दर्जन अंडे लाया हैं।
* रिद्धिमा के पास एक चॉकलेट हैं।
* पाँच गिलास शरबत लेकर आओ।
२ - अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण -
अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण में माप तौल की संख्या का स्पष्ट बोध नहीं होता हैं। जैसे - थोड़ा, बहुत, अधिक, कम, कुछ आदि।
उदाहरण -
* मेज पर कुछ किताबें रखी हैं।
* शरबत में मीठा कम हैं।
* रोहित परीक्षा में बहुत अधिक परिश्रम करता हैं।
४ - सार्वनामिक विशेषण -
जिन सर्वनाम शब्दों को वाक्य में संज्ञा से पहले विशेषण की तरह प्रयोग किया जाता हैं ,सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। अर्थात जब सर्वनाम शब्द संज्ञा के साथ; पर संज्ञा से पहले लिखा जाता हैं, परन्तु वह की संज्ञा की विशेषता प्रकट करता हैं। तब वह सर्वनाम शब्द, सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। जैसे - वह, यह, वे, ये, जो, कौन, कोई, ऐसा, आदि।
उदहारण -
* वह लड़का मेरा सहपाठी हैं।
* यह लड़की कल दौड़ में प्रतिभाग करेंगी।
* जो विद्यार्थी वृक्षारोपण करेंगे, उन्हें ईनाम दिया जायेगा।
* कौन बच्चा सबसे ऊँची पतंग उड़ाएगा।
* वे मूर्तियाँ बहुत सुन्दर सजायी गयी हैं।
सार्वनामिक विशेषण के दो भेद होते हैं।
१ - मूल सार्वनामिक विशेषण
२ - यौगिक सार्वनामिक विशेषण
१ - मूल सार्वनामिक विशेषण -
जिन सर्वनाम शब्दों को उनके मूल रूप में विशेषण की तरह प्रयुक्त किया जाता हैं, उन्हें मूल सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। जैसे -
उदहारण -
* वह लड़की रस्सी कूद रही हैं।
* कोई आदमी यह उपहार देकर गया हैं।
* कुछ छात्र मैदान में खेल रहे हैं।
* कौन बच्चा पिचकारी से खेलेगा।
उपरोक्त उदाहरणों में वह, यह, कोई, कुछ, कौन सभी मूल सर्वनाम शब्द हैं।
२ - यौगिक सार्वनामिक विशेषण -
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हैं यौगिक अर्थात जोड़कर। वे सर्वनाम शब्द जिनमें कुछ रूपान्तर कर नए सर्वनाम शब्द बनाये जाते हैं, यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं। जैसे - वह से उतना, उतनी, उतने, वैसा, वैसी, वैसे । जो से जितना, जितनी, जितने, जैसा,जैसी, जैसे । यह से इतना, इतनी, इतने, ऐसा, ऐसी, ऐसे आदि।
उदाहरण -
* ऐसी चित्रकारी पहले नहीं देखी।
* इतने पैसों में हम गाडी खरीद सकते हैं।
* जैसा खिलौना उसके पास हैं, मुझे भी वैसा ही चाहिए।
* वैसे आप हमारे घर कब आ रहे हैं।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता हैं कि विशेषण संज्ञा व सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं। तथा विशेषण कई प्रकार के होते हैं, तथा विभिन्न प्रकार से संज्ञा व सर्वनाम की विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
४ - क्रिया -
वे शब्द जिनसे हमें किसी कार्य के होने या करने का बोध होता हैं, वे क्रिया कहलाते हैं
जैसे - खेलना, दौड़ना, खाना, सोना, रोना, जागना, पढ़ना, लिखना, कूदना आदि।
उदहारण -
* बच्चा सो रहा हैं।
* माँ खाना पका रही हैं।
* बन्दर केला खा रहा हैं।
* खरगोश तेज दौड़ता हैं।* मनु दिल्ली जाएँगी।
उपरोक्त उदाहरणों में सो, पका, खा, दौड़ता, जाएँगी क्रिया शब्द हैं, और ये सभी मूल धातु हैं।
मूल धातु वह होती हैं जिससे क्रिया बनती हैं। जैसे - खा, सो, रो, लिख, पढ़, कूद, जाग, जा, मार, खिल, खेल, बोल, दौड़ इत्यादि। और क्रिया की मूल धातु में ना प्रत्यय लगाने से क्रिया बनती हैं।
जैसे - खा + ना = खाना
सो + ना = सोना
रो + ना = रोना
लिख + ना = लिखना
पढ़ + ना = पढ़ना
कूद + ना = कूदना
जाग + ना = जागना
जा + ना = जाना
मार + ना = मारना
खिल + ना = खिलना
खेल + ना = खेलना
बोल + ना = बोलना
दौड़ + ना = दौड़ना
उपरोक्त उदाहरणों को देखने से पता चलता हैं कि क्रिया की मूल धातु में ना प्रत्यय जोड़ने से धातु; क्रिया के साधारण रूप में परिवर्तित होती हैं। इसी तरह से क्रिया की मूल धातु में ता, ते या अन्य अर्थानुसार प्रत्यय जोड़ने से हमें संज्ञा, सर्वनाम के लिंग व वचन का भी बोध होता है।
जैसे --
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
साधारण क्रिया मूल धातु प्रत्यय लिंग / वचन
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
* वह फुटबॉल खेलती हैं। खेल ती स्त्रीलिंग
* बच्चे किताब पढ़ते हैं। पढ़ ते बहुवचन
* पुस्तक मेज पर पड़ी हैं। पड़ ई स्त्रीलिंग
* वह लड़का फल खाता हैं। खा ता पुल्लिंग
* मछली जल में रहती हैं। रह ती स्त्रीलिंग
* वह भोजन पकाती हैं। पक आती स्त्रीलिंग
* वह फूल तोड़ता हैं तोड़ ता पुल्लिंग / एकवचन
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सामान्य क्रिया की उत्पत्ति मूल धातु से होती हैं। जब मूल धातु को प्रत्यय के योग से नई क्रिया में रूपान्तरित किया जाता हैं तो उसे यौगिक धातु कहा जाता हैं। अतः स्पष्ट होता हैं कि दो से अधिक धातुओं या धातु में प्रत्यय जोड़ने से ही क्रिया बनती हैं।
क्रिया के भेद -
मुख्यतः क्रिया तीन प्रकार की होती हैं -
१ - सकर्मक क्रिया
२ - अकर्मक क्रिया
३ - द्विकर्मक क्रिया
क्रिया
↓
↓---------------------------------------↓-----------------------------------↓
↓ ↓ ↓
सकर्मक क्रिया अकर्मक क्रिया द्विकर्मक क्रिया
१ - सकर्मक क्रिया -
जिस क्रिया के व्यापार का फल कर्ता पर ना पड़कर सीधा कर्म पर पड़ता हैं, वह सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। सकर्मक क्रिया में कर्ता और क्रिया के साथ कर्म भी प्रमुखता होती हैं।
जैसे --
* संस्कार किताब पढ़ता हैं।
यहाँ पर "पढता हैं " क्रिया का सीधा फल "किताब" पर पड़ता हैं। इस वाक्य में कर्ता "संस्कार" हैं, कर्म "किताब " हैं, "पढता हैं" क्रिया हैं। वाक्य में कर्ता, किताब पढ़ रहा हैं यह स्पष्ट होता हैं। अतः यह सकर्मक क्रिया हैं। सकर्मक क्रिया की यह विशेषता होती हैं कि हमें ये ज्ञात होता हैं कि कर्ता क्या कार्य कर रहा हैं ये ज्ञात होता हैं।
उदाहरण -
* शिक्षक पाठ पढ़ा रहा हैं।
* घोड़ा सड़क पर दौड़ता हैं।
* मछली पानी में तैरती हैं।
* बरखा गाना गाती हैं।
* चिड़िया आसमान में उड़ती हैं।
२ - अकर्मक क्रिया -
जिस क्रिया के व्यापार का फल सीधा कर्ता पर पड़ता हैं, इसमें कर्म का लोप रहता हैं, वह अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। जैसे --
* छात्र पढ़ रहे थे।
यहाँ वाक्य में क्रिया " पढ़ रहे थे " का सीधा फल कर्ता " छात्र " पर पड़ता हैं। अतः यह अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। यहाँ वाक्य में कर्ता हैं, क्रिया हैं पर कर्म नहीं हैं। इस वाक्य में "छात्र " कर्ता हैं," पढ़ रहे थे " क्रिया हैं परन्तु यहाँ ये स्पष्ट नहीं हुआ हैं कि छात्र क्या पढ़ रहे थे। अर्थात यहाँ वाक्य में कर्म नहीं हैं। इसीलिए यह अकर्मक क्रिया हैं।
उदाहरण --
* गीता गाती हैं।
* लड़के खेलते हैं।
* सूरज निकलता हैं।
* प्रियंवदा बना रही हैं।
* राजा ने दान दिया।
उपरोक्त प्रत्येक वाक्य में कर्ता हैं, क्रिया हैं, परन्तु कर्म का लोप हैं। क्रिया कौन कर रहा हैं ये तो ज्ञात हैं, परन्तु क्या क्रिया कर रहा हैं यह ज्ञात नहीं हैं। अकर्मक का शाब्दिक अर्थ हैं कर्म के बिना। जहाँ कर्ता कार्य तो कर रहा है पर क्या कर रहा हैं ये ज्ञात नहीं होता हैं वहां अकर्मक क्रिया होती हैं।
३ - द्विकर्मक क्रिया -
द्विकर्मक क्रियाएँ पूर्णतः सकर्मक क्रियाएं होती हैं। सकर्मक क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं। कुछ सकर्मक क्रियाएं एक कर्म वाली होती हैं तो कोई दो कर्म वाली होती हैं। जो सकर्मक क्रियाएं दो कर्म वाली होती हैं वे द्विकर्मक क्रिया कहलाती है। परन्तु द्विकर्मक क्रिया में जो मुख्य कर्म होता हैं, वो कोई वस्तु या पदार्थ होता हैं। और दूसरा कर्म गौण होता हैं जो कि कोई प्राणी होता हैं। तथा क्रिया के व्यापार का फल कर्मों पर पड़ता हैं। जैसे --
* सिया ने रिया को पेंसिल दी।
उपरोक्त वाक्य में " सिया " कर्ता हैं, "रिया " और "पेंसिल " दोनों कर्म हैं, "दी " क्रिया हैं। यहाँ दी क्रिया का फल दोनों कर्म पर पड़ता हैं। जिसमें "पेंसिल" मुख्य कर्म तथा "रिया " गौण कर्म हैं। यहाँ पर पेंसिल मुख्य इसलिए हैं क्योंकि क्रिया पेंसिल को लेकर हो रही हैं।
उदहारण -
* पापा ने मुकुल को सौ रुपये दिए।
* शिक्षक ने विद्यार्थी को पुरस्कार दिया।
* माँ ने ब्राह्मण को भोजन कराया।
* जिमी ने बन्दर को केला खिलाया।
* सुबोध ने समर को अंग्रेजी पढाई।
उपरोक्त प्रत्येक वाक्य में एक क्रिया के दो कर्म हैं। जिसमें से मुख्य कर्म वस्तु तथा गौण प्राणी हैं। क्रिया के व्यापार का सीधा फल मुख्य कर्म अर्थात किसी वस्तु पर पड़ता हैं।
क्रिया मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं -- (१) सकर्मक क्रिया, (२ ) अकर्मक क्रिया, (३ ) द्विकर्मक क्रिया।
इसके अतिरिक्त व्युत्पत्ति या प्रयोग के आधार पर भी क्रिया के तीन भेद और होते हैं --
१ - रूढ़ / मूल क्रिया
२ - यौगिक क्रिया
३ - पूर्वकालिक क्रिया
व्युत्पत्ति / प्रयोग के आधार पर क्रिया के भेद
↓
↓
↓-----------------------------------------↓----------------------------------------↓
↓ ↓ ↓
रूढ़ / मूल क्रिया यौगिक क्रिया पूर्वकालिक क्रिया
↓
↓
↓----------------------↓---------------------↓-----------------------↓
प्रेरणार्थक क्रिया संयुक्त क्रिया नामधातु क्रिया अनुकरणात्मक क्रिया
(१) रूढ़ / मूल क्रिया -
जिन क्रिया शब्दों का निर्माण धातु से किया जाता हैं, अर्थात वे क्रिया जिनका निर्माण धातु में " ना " व " ता " प्रत्यय जोड़ने से होता हैं। रूढ़ या मूल क्रिया कहलाती हैं।
जैसे -- लिखना
पढ़ना
खेलना
खाना
दौड़ना
आना
जाना आदि।
(२) यौगिक क्रिया -
जिस क्रिया को अन्य शब्दों व अन्य प्रत्ययों के योग से बनाया जाता हैं, वे यौगिक क्रिया कहलाती हैं।
जैसे -- लिखवाना
पढ़वाना
सीखाना
चले जाना
खिलाना
दौड़ाना आदि।
यौगिक क्रिया की रचना कई प्रकार से की जाती हैं। जिसका उल्लेख हम आगे क्रिया के प्रकारों के माध्यम से बताएँगे।
यौगिक क्रिया के निम्नलिखित प्रकार हैं --
१ - प्रेरणार्थक क्रिया
२ - संयुक्त क्रिया
३ - नामधातु क्रिया
४ - अनुकरणात्मक क्रिया
१ - प्रेरणार्थक क्रिया -
जिस क्रिया से यह स्पष्ट होता हैं कि कर्ता स्वयं कार्य नहीं करता हैं, वह किसी दूसरे को कार्य करने को प्रेरित करता हैं। वहां प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती हैं।
जैसे -- माँ ने बेटी से खाना बनवाया।
इस वाक्य में हम देख रहे हैं कि माँ स्वयं कहना नहीं बनाती हैं, वह अपनी बेटी से खाना बनवाती हैं, अतः यहाँ "माँ " एक प्रेरक का कार्य कर रही हैं। और "बेटी" प्रेरित कर्ता हैं, कर्ता इसलिए क्योंकि वह कार्य कर रही हैं। तथा "बनवाया" प्रेरणार्थक क्रिया हैं।
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका हैं, कि प्रेरणार्थक क्रिया यौगिक क्रिया का एक भेद हैं। तो यह क्रिया भी धातु में अन्य प्रत्यय के योग से बनती हैं।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
धातु /मूल क्रिया + प्रत्यय = प्रेरणार्थक क्रिया
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
जैसे -- गिर + वाया = गिरवाया
चलना + वाना = चलवाना
कट + वाना = कटवाना
खेल + वाया = खिलवाया
कर + वाया = करवाया
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
२ - संयुक्त क्रिया -
संयुक्त क्रिया अर्थात वह क्रिया जो साथ में प्रयुक्त हो। अतः वह क्रिया जो विपरीत अर्थ वाली या किसी दूसरी क्रिया के योग से बनती हैं, वह संयुक्त क्रिया कहलाती हैं।
जैसे -- आना - जाना
खाना - पीना
लिखना - पढ़ना
आते - जाते
उदहारण
* सीमा मेरे घर में आती - जाती हैं।
* खाली समय में हम पढ़ते - लिखते रहते हैं।
* आप हमारे यहाँ आते - जाते रहना।
* उसे चटपटा खाना - पीना अच्छा लगता हैं।
इन वाक्यों में खाना - पीना, पढ़ते - लिखते, आते - जाते, आना - जाना आदि सभी संयुक्त क्रियाएं हैं। क्योंकि ये सभी क्रियाएं दो क्रियाओं के योग से बनी हैं।
३ - नामधातु क्रिया -
वे क्रियाएं जो संज्ञा व विशेषण शब्दों में अलग - अलग प्रत्यय जोड़ने से बनती हैं, नामधातु क्रियाएं कहलाती हैं।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
जैसे - संज्ञा /विशेषण नामधातु क्रिया
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बात बता/बतियाना
साठ सठियाना
लज्जा लजाना
अपना अपनाना
मुस्कान मुस्कुराना
हाथ हथियाना
धिक्कार धिक्कारना
सूखा सुखाना
दुःख दुखाना
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
४ - अनुकरणात्मक क्रिया -
किसी आवाज को या ध्वनि को अनुकरण कर जो क्रिया शब्दों की रचना की जाती हैं, वे अनुकरणात्मक क्रिया कहलाती हैं।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
जैसे -- आवाज / ध्वनि अनुकरणात्मक क्रिया
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थप - थप थपथपाना
बड़ - बड़ बड़बड़ाना
भिन - भिन भिनभिनाना
खट - खट खटखटाना
झुन - झुन झुनझुनाना
थर - थर थरथराना
लप - लप लपलपाना
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ऊपर हमने यौगिक क्रिया के चार भेद पढ़े। जिनमें हमने पढ़ा कि यौगिक क्रिया किन - किन शब्दों व प्रत्ययों के योग से बनती हैं।
(३) पूर्वकालिक क्रिया -
जिस क्रिया का पूर्ण होना किसी दूसरी क्रिया के पहले पाया जाएँ, वह पहले पूर्ण हुआ कार्य पूर्वकालिक क्रिया कहलाती हैं।
जैसे -- वह प्रतिदिन स्कूल नहाकर जाती है।
इस वाक्य में "जाने" क्रिया से पहले "नहाने "की क्रिया पूर्ण हो चुकी हैं। अतः नहाना पूर्वकालिक क्रिया कहलायेंगी।
उदाहरण -
* राधा रात में किताब पढ़कर सोती हैं।
* सुमेर दीवार पर चढ़कर नीचे कूदा।
* चिड़िया दाना चुगकर डाल पर बैठी।
* अतुल खाना खाकर ऑफिस जाता हैं।
* तनु स्वयं लिखकर कविता सुनती हैं।
उपरोक्त वाक्यों में पढ़कर, चढ़कर, चुगकर, खाकर, लिखकर आदि पूर्वकालिक क्रियाएं हैं।
अभी हमने विकारी शब्दों के भेदों के बारे में पढ़ा। अब आगे हम विकारी शब्दों का अध्धयन करेंगे।
( २ -) अविकारी शब्द -
जिन शब्दों में संज्ञा, सर्वनाम, लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता हैं, वे अविकारी शब्द कहलाते हैं।
जैसे - किन्तु,परन्तु, नित्य, कम, अधिक, बहुत, अनुकूल, आस - पास, तेज, थोड़ा आदि।
उदाहरण --
* वह लड़का बहुत तेज दौड़ रहा हैं। * वे लड़के बहुत तेज दौड़ रहे हैं। * वह लड़की बहुत तेज दौड़ रही हैं।
( एकवचन ) ( बहुवचन ) ( स्त्रीलिंग )
ऊपर दिए गए उदाहरण में " बहुत तेज " अविकारी शब्द का प्रयोग किया हैं। जिसमें पहला वाक्य "एकवचन " दूसरा वाक्य " बहुवचन " व तीसरा वाक्य " स्त्रीलिंग " के अंतर्गत लिखा गया हैं। परन्तु तीनों ही स्थिति में अविकारी शब्द ' बहुत तेज ' में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आया हैं। अविकारी शब्दों को अव्यय भी कहा जाता हैं।
अविकारी शब्द के मुख्यतः चार भेद होते हैं।
१ - क्रिया विशेषण
२ - सम्बन्धबोधक
३ - समुच्चयबोधक
४ - विस्मयादिबोधक
अविकारी शब्द / अव्यय
↓
↓
↓ ---------------------↓---------------------------↓-----------------------↓
↓ ↓ ↓ ↓
क्रिया विशेषण सम्बन्धबोधक समुच्चयबोधक विस्मयादिबोधक
↓ ↓ ↓ ↓
↓ ↓------------------↓ ↓→ संयोजक ↓→हर्षबोधक
↓ सविभक्ति निर्विभक्ति ↓→विभाजक ↓→शोकबोधक ↓ ↓→आश्चर्यबोधक ↓---------------↓---------------↓----------------↓ ↓→स्वीकारबोधक
↓ ↓ ↓ ↓ ↓→तिरस्कारबोधक
स्थानवाचक कालवाचक रीतिवाचक परिमाणवाचक ↓→सम्बोधनबोधक
क्रिया क्रिया क्रिया क्रिया
विशेषण विशेषण विशेषण विशेषण
अविकारी शब्दों के निन्मलिखित भेद होते हैं जो इस प्रकार से हैं।
( १ ) क्रिया विशेषण -
क्रिया अर्थात कार्य, विशेषण अर्थात विशेषता, इसका अर्थ होता हैं कार्य की विशेषता।
किसी कार्य के बारे में अधिक से अधिक बताने वाले शब्द, जो हमें कार्य कैसे, कब और कहाँ हुआ ये बताते हैं वे क्रिया विशेषण कहलाते हैं।
क्रिया विशेषण की परिभाषा -
वे शब्द जो हमें किसी कार्य की विशेषता बताते हैं, क्रिया विशेषण शब्द कहलाते हैं। जैसे -- धीरे - धीरे, तेज, कम, अधिक, अंदर, बाहर, ऊपर, नीचे आदि।
उदाहरण --
* सुनिधि अच्छा नृत्य करती हैं।
* दादा जी ऊँचा सुनते हैं।
* कोयल मधुर गाती हैं।
* बच्चा धीरे - धीरे चलता हैं।
* घोड़ा तेज दौड़ता हैं।
उपरोक्त उदाहरणों में अच्छा नृत्य की, ऊँचा सुनने की, मधुर गाने की, धीरे -धीरे चलने की, तेज दौड़ने की विशेषता बता रहे हैं। अतः ये सभी शब्द क्रिया विशेषण हैं। क्योंकि ये क्रियाओं की विशेषता बता रहे हैं।
क्रिया विशेषण मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं।
१ - स्थानवाचक क्रिया विशेषण
२ - कालवाचक क्रिया विशेषण
३ - रीतिवाचक क्रिया विशेषण
४ - परिमाणवाचक क्रिया विशेषण
१ - स्थानवाचक क्रिया विशेषण -
वे क्रिया विशेषण जिनसे हमें क्रिया के सम्पादित होने के स्थान का पता चलता हैं, स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहलाते हैं। जैसे - अंदर, बाहर, यहाँ, वहां, ऊपर, नीचे, आगे, पीछे इत्यादि।
उदाहरण -
१ - सुनीता बाहर खेल रही हैं।
इस वाक्य में "बाहर" शब्द से हमें सुनीता के खेलने ( क्रिया ) के स्थान का बोध होता हैं। कि वह कहाँ खेल रही हैं। अतः ये स्थानवाचक क्रियाविशेषण हैं। यह हमें क्रिया ( खेल ) की विशेषता बता रहा हैं। इस वाक्य में "सुनीता" कर्ता हैं, "खेल रही" क्रिया हैं, और "बाहर" क्रिया विशेषण हैं। क्योंकि यह हमें क्रिया के विषय में बताता हैं।
स्थानवाचक क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण
* बन्दर छत ऊपर कूद रहा हैं।
* सोनू अन्दर सो रहा हैं।
* छोटू पेड़ के पीछे छुप रहा हैं।
* मेरा बेटा वहां दौड़ रहा हैं।
* शिल्पा मेरे समीप चिल्लाया।
२ - कालवाचक क्रिया विशेषण -
जिन शब्दों से हमें क्रिया के होने के समय का पता चलता हैं। वे कालवाचक क्रिया विशेषण कहलाते हैं। जैसे - आज - कल, सुबह, शाम, दिन - भर, नित्य, प्रतिदिन, अब तक, पहले, अभी - अभी, सर्वदा, निरंतर इत्यादि।
जैसे - मैं सुबह दौड़ता हूँ।
इस वाक्य में "सुबह" दौड़ने के समय का बोध करा रहा हैं। अतः ये कालवाचक क्रिया विशेषण शब्द हैं। इस वाक्य में "मैं " कर्ता हैं, "दौड़ना" क्रिया हैं तथा "सुबह" क्रियाविशेषण हैं।
कालवाचक क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण -
* नक्ष आजकल कसरत कर रहा हैं।
* पाखी प्रतिदिन नृत्य अभ्यास करती हैं।
* चिड़ियाँ रोज सुबह चहकती हैं।
* श्याम अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता हैं।
३ - रीतिवाचक क्रिया विशेषण -
जिन क्रिया विशेषण शब्दों से किसी कार्य को करने की विधि या कार्य के करने के तरीके का पता चलता हैं। रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहलाते हैं।
जैसे - धीरे - धीरे, तेज, अच्छा, ध्यानपूर्वक, सहसा, सहज, अनायास, अचानक, ठीक, नहीं, हां, हल्के इत्यादि।
उदाहरण -
* वृद्ध जन धीरे - धीरे चलते हैं।
इस वाक्य में "धीरे - धीरे" शब्द से वृद्ध जन के चलने के तरीके का पता चलता हैं। अतः धीरे - धीरे क्रिया विशेषण शब्द हैं। जो कि हमें "चलने " क्रिया की विशेषता बता रहा हैं। और वृद्ध जन कर्ता हैं।
रीतिवाचक क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण
* घोड़ा तेज दौड़ता हैं।
* मीरा ध्यानपूर्वक कार्य करती हैं।
* बच्चा खेलते - खेलते अचानक रोने लगा।
* दादा - दादी ऊँचा सुनते हैं।
४ - परिमाणवाचक क्रिया विशेषण -
वे शब्द जिनसे किसी क्रिया की मात्रा या संख्या का बोध होता हैं वे परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहलाते हैं।
जैसे - अधिक, कम, सर्वथा, काफी, थोड़ा, बहुत, कुछ, इतना - सा, थोड़ा - सा, अति, इत्यादि।
उदाहरण -
* संध्या कम बोलती हैं।
इस वाक्य में "कम" शब्द से संध्या के बोलने की मात्रा का ज्ञान होता हैं। कि वह अधिक नहीं बोलती हैं। यहाँ पर "संध्या " कर्ता हैं। "बोलना " क्रिया हैं। तथा " कम " परिमाणवाचक क्रिया विशेषण हैं।
परिमाणवाचक क्रिया विशेषण के अन्य उदाहरण -
* निति इतना - सा ही दूध पियेंगी।
* आलोक बहुत अच्छा गाता हैं।
* माँ बेटी को देखकर हल्का - सा मुस्कुरायी।
* सूरज, नीरज की तुलना में अधिक तेज बोलता हैं।
अभी हम अविकारी शब्दों के भेदों के अंतर्गत क्रिया विशेषण व क्रिया विशेषण के प्रकारों का अध्ययन कर रहे थे। अब हम इसके आगे अविकारी शब्द के द्वितीय भेद संबंधबोधक शब्द के विषय में जानेंगे।
२ - सम्बन्धबोधक शब्द -
वे शब्द जो संज्ञा व सर्वनाम शब्दों का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों से जोड़ते हैं वे सम्बन्धबोधक शब्द कहलाते हैं। ये संज्ञा व सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होते हैं।
जैसे - आगे, पीछे, समीप, निकट, ओर, सामने, प्रतिकूल, विपरीत, तक, अनुसार, तुल्य, अथवा, अलावा, भर, कारण, पर्यन्त इत्यादि।
उदहारण -
* पेड़ के नीचे गाय बैठी हैं।
इस वाक्य में " नीचे " शब्द सम्बन्धबोधक हैं। जो कि पेड़ का सम्बन्ध वाक्यांश से जोड़ता हैं। तथा साथ ही नीचे सम्बन्धबोधक शब्द का प्रयोग यहाँ पर सविभक्ति किया गया हैं। अर्थात "नीचे" शब्द के साथ "के" विभक्ति का प्रयोग भी किया गया हैं।
सम्बन्धबोधक अव्यय के अन्य उदाहरण -
* मेरा घर विद्यालय के समीप हैं।
* बिल्ली कुर्सी के पीछे छिपी हैं।
* पुस्तकें मेंज पर रखी हुई हैं।
* प्रखर अथवा मानव दौड़ में प्रतिभाग करेंगे।
* सीमा पर जवान अंत तक दुश्मन से लड़ते रहते हैं।
सामान्यतः सम्बन्धबोधक अव्यय का प्रयोग दो प्रकार से किया जाता हैं। सम्बन्धबोधक अव्यय के दो प्रकार होते हैं।
१ - सविभक्ति सम्बन्धबोधक
२ - निर्विभक्ति सम्बन्धबोधक
१ - सविभक्ति सम्बन्धबोधक -
जो सम्बन्धबोधक शब्द विभक्ति के साथ प्रयोग किये जाते हैं सविभक्ति सम्बन्धबोधक कहलाते हैं।
जैसे - के बाद, के नीचे, के बिना, के अनुसार, के समीप आदि।
* पिया दीया के बाद स्कूल पहुँचती हैं।
* गोलू चीनी के बिना दूध नहीं पीता हैं।
* हमारे घर के सामने सुन्दर पार्क हैं।
* शिक्षक के अनुसार सरिता होशियार लड़की हैं।
* व्यायाम के पहले कुछ नहीं खाना चाहिए।
२ - निर्विभक्ति सम्बन्धबोधक -
जो सम्बन्धबोधक शब्द विभक्ति के बिना प्रयोग किये जाते हैं निर्विभक्ति सम्बन्धबोधक कहलाते हैं।
जैसे - तक, भर, पर्यन्त, सहित, योग्य आदि।
* बच्चा रात भर रोता रहा।
* विद्यार्थी को जीवन पर्यन्त परिश्रम करना चाहिए।
* शुभम सुबह तक किताब पढ़ता रहा।
* श्रीमान राघव एक योग्य कर्मचारी हैं।
* हनुमान जी ने वानर सेना सहित श्री राम की सहायता की।
सामान्य रूप से सम्बन्धबोधक शब्द दो प्रकार के ही होते हैं। परन्तु अर्थ की दृष्टि से सम्बन्धबोधक शब्द कई प्रकार के होते हैं।
कालवाचक सम्बन्धबोधक - सोनू के बाद मोनू ने किसी से दोस्ती नहीं की।
स्थानवाचक सम्बन्धबोधक - सोनू का घर मोनू के घर के सामने ही हैं
दिशाबोधक सम्बन्धबोधक - मोनू की ओर देखो वह कितना अच्छा दोस्त हैं।
तुलनाबोधक सम्बन्धबोधक - सोनू की अपेक्षा मोनू खेलकूद में प्रवीण हैं।
विरुद्धसूचक सम्बन्धबोधक - सोनू और मोनू मैदान में एक दूसरे के विरुद्ध खेलते हैं।
साधनबोधक सम्बन्धबोधक - दोनों एक दूसरे के सहारे पढ़ाई करते हैं।
समतासूचक सम्बन्धबोधक - सोनू मोनू के सामान ही बुद्धिमान हैं।
हेतुवाचक सम्बन्धबोधक - सोनू के लिए मोनू सब कुछ करने को तत्पर रहता हैं।
सहचरवाचक सम्बन्धबोधक - सोनू मोनू साथ - साथ स्कूल जाते हैं।
संग्रहवाचक सम्बन्धबोधक - सोनू एक मात्र मोनू का मित्र हैं।
इस प्रकार से उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता हैं कि भिन्न -भिन्न स्थानों पर प्रयोग कारण समबंधबोधक शब्दों को इन सभी नामों से जाना जाता हैं।
३ - समुच्चयबोधक -
वे शब्द जो दो शब्दों या वाक्यांशों को आपस में जोड़ते हैं वे समुच्चयबोधक शब्द कहलाते हैं।
जैसे - और, अथवा, पर, एवं, किन्तु, परन्तु, या, ताकि, लेकिन, अतः, इसलिए आदि।
उदाहरण -
* राधा ने खूब मेहनत की और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किये।
* संजू ने बहुत परिश्रम किया परन्तु सफल हुआ।
* निशा नृत्य और गायन दोनों में उत्तम हैं।
* शिक्षक ने तुम्हें डांटा ताकि तुम अपनी गलती सुधार सको।
* आप चाय पियोगे या कॉफी।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता हैं कि समुच्चयबोधक शब्द दो वाक्यांशों को मिलाते हैं।
सामान्यतः समुच्चयबोधक शब्द दो प्रकार के होते हैं।
१ - संयोजक समुच्चयबोधक शब्द
२ - विभाजक समुच्चयबोधक शब्द
१ - संयोजक समुच्चयबोधक शब्द -
संयोजक अर्थात जोड़ने वाला। वे शब्द जो दो शब्दों अथवा दो वाक्यों को जोड़कर एक वाक्य में प्रयुक्त करते हैं। संयोजक समुच्चयबोधक शब्द कहलाते हैं। जैसे - और, तथा, तो।
उदहारण
* मीरा और राधा दोनों श्री कृष्ण से प्रेम करती थी।
* यदि आप समय पर कार्यालय नहीं पहुंचे तो कार्य कैसे पूरा होगा।
* हमें विज्ञान तथा गणित दोनों विषय अच्छे लगते हैं।
ऊपर दिए गए उदाहरणों में "और " मीरा व राधा दो अलग व्यक्तित्व को जोड़ रहा हैं। वैसे ही कार्यालय न पहुंचने और कार्य ना पूरा होने, दो वाक्यों को तो शब्द से जोड़ा गया हैं। और तीसरे वाक्य में दो भिन्न विषयों को "तथा " का प्रयोग कर एक साथ पढ़ा गया हैं।
२ - विभाजक समुच्चयबोधक शब्द -
विभाजक अर्थात विभाजित करने वाला। वे शब्द जो दो शब्दों को या दो वाक्यांशों को जोड़ते हुए भी दोनों को विपरीत अर्थ में प्रयुक्त करता हैं। विभाजक समुच्चयबोधक शब्द कहलाते हैं। जैसे - अथवा, या, पर, परन्तु, लेकिन, आदि।
उदाहरण -
* रिद्धि या सिया इस सवाल का जवाब देंगें।
* तुषार ने बहुत परिश्रम किया लेकिन परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सका।
* मैंने उसे फोन किया परन्तु उसने बात नहीं की।
* प्रश्न पत्र से (क ) अथवा (ख ) में से एक का उत्तर लिखिए।
दिए गए उदाहरणों में प्रत्येक वाक्य में दो विकल्पों में से किसी एक को चना गया हैं। जैसे " या " लिखकर रिद्धि और सिया में से एक को चुना गया हैं। परिश्रम करने और पास ना होना दोनों भिन्न अर्थ वाले हैं। फोन करना और बात ना करना भी विपरीत अर्थ प्रकट करते हैं। आखिरी वाक्य में भी क और ख में से प्रश्न का चयन करने को कहा गया हैं।
४ - विस्मयादिबोधक शब्द -
आकस्मिक प्रकट होने वाले भावों जैसे हर्ष, शोक, विषाद, आश्चर्य, अनुमोदन,सम्बोधन, तिरस्कार, स्वीकार आदि के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले शब्दों को विस्मयादिबोधक शब्द कहलाते हैं। जैसे - अहा !, वाह - वाह !, छि !, शाबाश !, जी !, हे अरे !, अच्छा !, ओह ! इत्यादि।
उदहारण -
* हर्षबोधक - अहा ! कितने सुन्दर फूल खिले हैं।
* आश्चर्य - अरे ! आप कब आये यहाँ।
* अनुमोदन - अच्छा ! तो ये बात हैं।
* तिरस्कार - छि ! कितना गन्दा दृश्य हैं।
* स्वीकार - हाँ ! हाँ ! मुझे भी ज्ञात हैं।
* सम्बोधन - हे ईश्वर ! तू बड़ा कृपालु हैं।
इन उदाहरणों के अनुसार कहा जा सकता हैं कि कुछ भाव ऐसे भी होते हैं जो तत्काल स्थिति को देखकर स्वतः ही उत्पन्न होते हैं, उन भावों को प्रकट करने हेतु हम जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं उन्हें ही विस्मयादिबोधक शब्द कहते हैं।
निपात -
इसके अतिरिक्त भी वाक्य में कुछ अन्य शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं। जो कि वाक्य के अर्थ को स्पष्ट करने में विशेष भूमिका निभाते हैं। कई बार किसी सामान्य वाक्य को विशेष बनाने के लिए कुछ छोटे - छोटे शब्दों का प्रयोग करना पड़ता हैं जिन्हें निपात कहा जाता हैं। निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता हैं। ये निपात वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के सामान्य अर्थ से कहीं ज्यादा उसके पीछे छिपे मुख्य अर्थ को भी प्रकट करने में सहायक होते हैं। वैसे तो निपात किसी प्रकार का शुद्ध अव्यय नहीं हैं। लेकिन वाक्य में इसका प्रयोग होता हैं।
जैसे - "आपने सुना मैंने जो कहा।"
ये एक सामान्य रूप से कही गयी बात हैं। यदि इसी बात को हम इस तरह से कहे कि हमें अभी उस बात का जवाब मिलें तो हम उस बात को कुछ इस प्रकार से कहेंगें।
जैसे - "क्या आपने सुना मैंने जो अभी कहा। "
इस वाक्य में हमने "क्या " "अभी " जैसे कुछ शब्द जोड़ दिए जिस कारण बात को बल मिला , यहीं शब्द निपात हैं जो वाक्य को सामान्य से विशेष में बदलते हैं।
शब्द - सौष्ठव के अंतर्गत हमने पढ़ा कि शब्द कैसे बनते हैं। शब्द किसे कहते हैं ? शब्द कितने प्रकार के होते हैं। तथा साथ ही वाक्य में कितने प्रकार के शब्दों का प्रयोग किस - किस अर्थ में किया जाता हैं। अभी तक हमने इस अध्याय के अंतर्गत शब्द - सम्पदा का अध्ययन किया हैं। जैसा कि हमें पता हैं कि वर्णों से शब्द बनते हैं और शब्दों के मेल से वाक्य बनते हैं। और अब हम इसके अगले भाग में वाक्य का अध्ययन करेंगे,कि वाक्य किसे कहते हैं तथा वाक्य कितने प्रकार के होते हैं। ................
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