वर्ण -विचार -
वर्ण - विचार के अंतर्गत अब हम सर्वप्रथम हिंदी वर्णमाला का अध्ययन करेंगे।जिसमें सबसे पहले हम जानेंगे कि वर्णमाला क्या हैं ?
वर्णमाला -
किसी भाषा के वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। या वर्णों का व्यवस्थित समूह वर्णमाला अर्थात वर्णों की माला कहलाता हैं।
वर्ण - विचार के अंतर्गत अब हम सर्वप्रथम हिंदी वर्णमाला का अध्ययन करेंगे।जिसमें सबसे पहले हम जानेंगे कि वर्णमाला क्या हैं ?
वर्णमाला -
किसी भाषा के वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। या वर्णों का व्यवस्थित समूह वर्णमाला अर्थात वर्णों की माला कहलाता हैं।
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी की वर्णमाला में ११ स्वर और ३३ व्यञ्जन हैं।जो इस प्रकार से हैं --
हिंदी वर्णमाला के समस्त वर्णों को दो भागों में विभजित किया गया हैं। ( १ ) स्वर (२ ) व्यञ्जन।
स्वर की परिभाषा -
वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जाता हैं अर्थात जिनके उच्चारण के लिए किसी दूसरी ध्वनि या वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती हैं वे स्वर कहलाते हैं। हिंदी वर्णमाला में स्वर इस प्रकार से हैं -----
अ आ इ ई उ ऊ ऋ
ए ऐ ओ औ
ध्वनियाँ - अं ( अनुस्वार ), अः ( विसर्ग )
और जब इन स्वरों को व्यञ्जनों के साथ जोड़कर उच्चारित किया जाता हैं, तो यहीं स्वर मात्रा के रूप में उभरकर सामने आते हैं,जो निम्न प्रकार से हैं --
अ आ इ ई उ ऊ ऋ
ा ि ी ु ू ृ
ए ऐ ओ औ
े ै ो ौ
स्वर के भेद -
मुख्यतः स्वर के तीन भेद होते हैं।
१ - ह्रस्व स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में मात्र एक मात्रा के उच्चारण का समय लगता हैं ,वे ह्रस्व स्वर कहलाते हैं। ये संख्या में चार होते हैं। जैसे -- अ, इ, ई, ऋ। अब एक मात्रा के उच्चारण का समय क्या हैं ,मतलब इन स्वरों के उच्चारण में उतना ही समय लगता हैं जितना कि "अ " को उच्चारण करने में समय लगता हैं। अर्थात कम समय लगता हैं। क्योंकि इन ध्वनियों में किसी अन्य ध्वनि का सहयोग नहीं होता हैं। ये एकमात्रिक स्वर भी कहलाते हैं।
२ - दीर्घ स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का समय हैं, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। ये संख्या में आठ होते हैं। अर्थात एक मात्रा से दुगना समय लगता हैं ये इस प्रकार हैं -- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। ये द्विमात्रिक स्वर कहलाते हैं।
३- प्लुत स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में एकमात्रिक स्वरों से तिगुना समय लगता हैं, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। तिगुना समय लगने के कारण ही ये त्रिमात्रिक स्वर कहलाते हैं। ये स्वर किसी को दूर से पुकारने, चिल्लाने,गाने,रोने आदि के लिए प्रयोग किया जाता हैं।
व्यञ्जन की परिभाषा -
जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है, वे वर्ण व्यञ्जन कहलाते हैं।
यदि वर्णमाला में से स्वरों को अलग कर दिया जाता हैं तो जो शेष वर्ण रह जाते हैं वहीँ वर्ण व्यञ्जन कहलाते हैं। क से ज्ञ तक के सभी वर्ण व्यञ्जन कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त अनुस्वार ( ं ) तथा विसर्ग ( ः )और चन्द्र बिन्दु ( ँ ) भी व्यञजन के अंतर्गत ही समझे जाते हैं ,क्योंकि इनका उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं होता हैं।
व्यञ्जन की लेखन विधि -
व्यञ्जन दो तरह से लिखे जाते हैं। एक खड़ी पाई के साथ और दूसरा खड़ी पाई के बिना। ड़ , ट ,छ , ड ,द ,र बिना खड़ी पाई के लिखे गए व्यञ्जन हैं। शेष सभी व्यञ्जन खड़ी पाई के साथ लिखे जाते हैं।तथा कुछ वर्णों के मध्य पर एक सीधी रेखा खींची जाती हैं जैसे -झ, भ, म। और साथ ही भ, ध, थ आदि वर्णों की शिरोरेखा को कुछ तोड़ दिया जाता हैं। यदि किसी आधे र् के पीछे कोई व्यञ्जन लिखना हो तो वह आधा र् व्यञ्जन के ऊपर रेफ के रूप में लिखा जाता हैं।जैसे -कर्म ,धर्म।और यदि र व्यञ्जन के साथ संयुक्त रूप में लिखना हो तो वह र व्यञ्जन के नीचे जोड़ कर लिखा जाता हैं जैसे - भ्रम ,चक्र , सब्र ,राष्ट्र आदि।
क से लेकर म तक के सभी व्यञ्जनों को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया हैं। इस प्रकार से हैं --
क वर्ग - क ख ग घ ड़
च वर्ग - च छ ज झ ञ
ट वर्ग - ट ठ ड ढ ण
त वर्ग - त थ द ध न
प वर्ग - प फ ब भ म
य, र, ल, व अन्तस्थःव्यञ्जन हैं।
श, स, ष, ह ऊष्म व्यञ्जन हैं।
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यञ्जन हैं।
व्यञ्जन के भेद -
व्यञ्जन के मुख्यतः तीन भेद होते हैं।
१ -स्पर्श व्यञ्जन -
जिन व्यञ्जनों का उच्चारण करते समय हमारे मुख से निकलने वाली वायु जब मुख के विभिन्न स्थानों को स्पर्श करते हुए ध्वनि उत्पन्न करती हैं वे व्यञ्जन स्पर्श व्यञ्जन कहलाते हैं। जो इस प्रकार से हैं --
क ख ग घ ड़
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
२ - अंतःस्थ व्यञ्जन -
वे व्यञ्जन जिनका उच्चारण करते समय जिह्वा विशेष रूप से सक्रिय रहती हैं। ये व्यञ्जन हैं य , र , ल , व।
३- ऊष्म व्यञ्जन -
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता हैं। वे व्यञ्जन जिनका उच्चारण करते समय मुँह से गर्म श्वास बाहर निकलती हैं ऊष्म व्यञ्जन कहलाते हैं। जैसे -श , स ,ष , ह।
वर्णों का उच्चरण स्थान -
नाम उच्चारण स्थान वर्ण
कण्ठ्य कंठ अ , आ, क, ख, ग, घ, ड़
तालव्य तालु इ, ई, च, छ, ज, झ,ञ, य, श
मूर्धा मूर्धन्य ऋ,ष, ट, ठ, ड, ढ, ण,
दंत्य दंत ल, त, थ, द, ध, न
ओष्ठय ओष्ठ उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म
कंठ तालव्य कंठ तालु ए, ऐ
कंठ ओष्ठय कंठ ओष्ठ ओ, औ
नासिक्य नासिका ड़ ,ञ, ण,न, म,अं, अँ
दन्तोष्ठ्य दंत ओष्ठ व, फ
अब तक हमनें पढ़ा कि व्याकरण क्या हैं ,व्याकरण के अंतर्गत किस विषय का अध्धयन किया जाता हैं। हमने जाना कि व्याकरण को हम भाषा शास्त्र भी कह सकते हैं,क्योंकि इसके अंतर्गत हमने भाषा सम्बन्धी विस्तृत ज्ञान प्राप्त किया । हिंदी भाषा , हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि, देवनागरी लिपि में वर्णित वर्णमाला तथा स्वर व व्यञ्जन के लिखने के नियम,उनके उच्चारण स्थान आदि का गहन अध्धयन किया। अब इसके आगे हम जानेंगे कि वर्ण क्या हैं। जो कुछ भी हम पढ़ते हैं या लिखते हैं उसकी शुरुआत क्या हैं ,उसका क्रमबद्ध अध्धयन कैसे किया जा सकता हैं कि हम सरल भाषा में सहज तरीके से सीख संकें।
वर्ण /अक्षर -
वर्ण वह मूल ध्वनि हैं जिसे और छोटे टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता हैं। वर्ण अखंड हैं। किसी भी शब्द की मूल ध्वनि वर्ण तक पहुंचकर; उसका विभाजन नहीं किया जा सकता हैं। कोई भी शब्द दो या दो से अधिक वर्णों और स्वरों के योग से बनता हैं और यदि हम उस शब्द के टुकड़े करे तो हम अंत में वर्ण में आकर रुकते है। जैसे -- दरवाजा = द् + अ + र् + अ + व् + आ + ज् + आ
वर्ण को अक्षर भी कहते हैं लेकिन मेरा मानना हैं कि वर्ण और अक्षर भिन्न हैं। क्योंकि
वर्ण अखंड हैं उसको और अधिक बांटा नहीं जा सकता हैं। व्यञ्जन को जब स्वर से अलग कर दिया जाता हैं तो वह वर्ण कहलाता हैं। वहीँ दूसरी ऒर जब वर्ण में स्वर को जोड़ कर लिखा या पड़ा जाता हैं तो वह व्यञ्जन रूप में अक्षर बन जाते हैं। तो किसी हद तक वर्ण को अक्षर कहना उचित नहीं हैं। कई बार इतना छोटा सा अंतर होने की वजह इन्हें एक ही समझ लिया जाता हैं।
वर्ण की परिभाषा -
वर्ण वह सबसे छोटी ध्वनि हैं जिसके और अधिक टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं।
जैसे - विद्यालय = व्+ इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ
यहाँ पर हमने विद्यालय शब्द को वर्णों में विभाजित किया हैं, अब इसके विभाजित वर्णों को और अधिक विभाजित नहीं कर सकते हैं अतः ये सबसे छोटी इकाई वर्ण कहलाएंगी।
अक्षर की परिभाषा-
जब वर्ण स्वर के साथ जोड़कर पढ़े जाते हैं तो व्यञ्जन रूप में अक्षर कहलाते हैं।
जैसे - द् + ई = दी
य् + ओ = यो
यहाँ पर द् और य् दोनों ही वर्ण हैं,जबकि दी और यो दोनों अक्षर हैं क्योंकि ये दोनों स्वरों से मिलकर बने हैं। कई बार इस छोटे से अंतर के कारण वर्ण और अक्षर को एक ही समझ लिया जाता हैं। जबकि इनमें पर्याप्त भिन्नता देखी जाती हैं।
वर्ण- विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके अन्तिम चरण तक विभाजित किया जाता हैं तो वह वर्ण - विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स् + अ + र् + ओ + व् अ + र् + अ = सरोवर
यहाँ पर सरोवर शब्द को उसकी सबसे छोटी ध्वनि तक विभाजित किया गया हैं।
अक्षर -विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके प्रथम चरण तक अर्थात अक्षरों को विभाजित किया जाता हैं तो वह अक्षर विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स + रो + व + र = सरोवर
इस प्रकार से वर्ण - विच्छेद वर्ण ध्वनियों का विभाजन हैं तथा अक्षर - विच्छेद अक्षरों का विभाजन होता हैं।
जो इस प्रकार हैं ------
वर्ण- विच्छेद अक्षर-विच्छेद
अ + भ् + य् + उ + द् + अ + य् + अ = अभ्युदय अ + भ् + यु + द + य = अभ्युदय
ह् + इ + म् + आ + ल् + अ + य् + अ = हिमालय हि + मा + ल + य = हिमालय
प् + उ + र् + ओ + ह् + इ + त् + अ = पुरोहित पु + रो + हि + त = पुरोहित
म् + अ + ह् + औ + ष् + अ + ध + इ = महौषधि म + हौ + ष + धि = महौषधि
ग् + ओ + द् + आ + व् + अ + र् + ई = गोदावरी गो + दा + व + री = गोदावरी
वर्ण और अक्षर में अंतर -
(१ ) वर्ण एक स्वतंत्र ध्वनि हैं। ( १ ) अक्षर वर्ण और स्वर को जोड़कर बनते हैं।
( २ ) वर्ण का उच्चारण स्वंतत्र रूप से होता हैं। ( २ ) अक्षर का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता हैं। (३ ) वर्ण व्यंजन की सबसे छोटी अखंड ध्वनि हैं। ( ३ ) अक्षर स्वर तथा व्यंजन दोनों रूप में बनता हैं।
उपरोक्त उदाहरण से वर्ण- विच्छेद और अक्षर - विच्छेद के मध्य का सूक्ष्म अंतर स्पष्ट हो जाता हो। जिस प्रकार से किसी शब्द को वर्णों में या अक्षरों में विभाजित किया जाता हैं ,ठीक उसी प्रकार से एक से अधिक वर्णों या अक्षरों के योग से शब्द का निर्माण किया जाता हैं। व्याकरण के अध्धयन में वर्ण विचार और अक्षरों के पश्चात् शब्द - सौष्ठव का क्रम आता हैं। जो की हम व्याकरण के अगले भाग में पढ़ेंगे।
वर्ण वह सबसे छोटी ध्वनि हैं जिसके और अधिक टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं।
जैसे - विद्यालय = व्+ इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ
यहाँ पर हमने विद्यालय शब्द को वर्णों में विभाजित किया हैं, अब इसके विभाजित वर्णों को और अधिक विभाजित नहीं कर सकते हैं अतः ये सबसे छोटी इकाई वर्ण कहलाएंगी।
अक्षर की परिभाषा-
जब वर्ण स्वर के साथ जोड़कर पढ़े जाते हैं तो व्यञ्जन रूप में अक्षर कहलाते हैं।
जैसे - द् + ई = दी
य् + ओ = यो
यहाँ पर द् और य् दोनों ही वर्ण हैं,जबकि दी और यो दोनों अक्षर हैं क्योंकि ये दोनों स्वरों से मिलकर बने हैं। कई बार इस छोटे से अंतर के कारण वर्ण और अक्षर को एक ही समझ लिया जाता हैं। जबकि इनमें पर्याप्त भिन्नता देखी जाती हैं।
वर्ण- विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके अन्तिम चरण तक विभाजित किया जाता हैं तो वह वर्ण - विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स् + अ + र् + ओ + व् अ + र् + अ = सरोवर
यहाँ पर सरोवर शब्द को उसकी सबसे छोटी ध्वनि तक विभाजित किया गया हैं।
अक्षर -विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके प्रथम चरण तक अर्थात अक्षरों को विभाजित किया जाता हैं तो वह अक्षर विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स + रो + व + र = सरोवर
इस प्रकार से वर्ण - विच्छेद वर्ण ध्वनियों का विभाजन हैं तथा अक्षर - विच्छेद अक्षरों का विभाजन होता हैं।
जो इस प्रकार हैं ------
वर्ण- विच्छेद अक्षर-विच्छेद
अ + भ् + य् + उ + द् + अ + य् + अ = अभ्युदय अ + भ् + यु + द + य = अभ्युदय
ह् + इ + म् + आ + ल् + अ + य् + अ = हिमालय हि + मा + ल + य = हिमालय
प् + उ + र् + ओ + ह् + इ + त् + अ = पुरोहित पु + रो + हि + त = पुरोहित
म् + अ + ह् + औ + ष् + अ + ध + इ = महौषधि म + हौ + ष + धि = महौषधि
ग् + ओ + द् + आ + व् + अ + र् + ई = गोदावरी गो + दा + व + री = गोदावरी
वर्ण और अक्षर में अंतर -
(१ ) वर्ण एक स्वतंत्र ध्वनि हैं। ( १ ) अक्षर वर्ण और स्वर को जोड़कर बनते हैं।
( २ ) वर्ण का उच्चारण स्वंतत्र रूप से होता हैं। ( २ ) अक्षर का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता हैं। (३ ) वर्ण व्यंजन की सबसे छोटी अखंड ध्वनि हैं। ( ३ ) अक्षर स्वर तथा व्यंजन दोनों रूप में बनता हैं।
उपरोक्त उदाहरण से वर्ण- विच्छेद और अक्षर - विच्छेद के मध्य का सूक्ष्म अंतर स्पष्ट हो जाता हो। जिस प्रकार से किसी शब्द को वर्णों में या अक्षरों में विभाजित किया जाता हैं ,ठीक उसी प्रकार से एक से अधिक वर्णों या अक्षरों के योग से शब्द का निर्माण किया जाता हैं। व्याकरण के अध्धयन में वर्ण विचार और अक्षरों के पश्चात् शब्द - सौष्ठव का क्रम आता हैं। जो की हम व्याकरण के अगले भाग में पढ़ेंगे।
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