व्याकरण
व्याकरण शब्द वि +आ +करण के योग से बना हैं,जिसका अर्थ होता हैं किसी भी विषय का भली - भांति ज्ञान प्राप्त करना। व्याकरण एक ऐसा शास्त्र हैं जो हमें हिंदी भाषा को शुद्ध रूप में लिखने,पढ़ने और बोलने सम्बन्धी नियमों का बोध कराता हैं। व्याकरण हिंदी भाषा के अध्धयन का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। व्याकरण के विस्तृत ज्ञान के बिना हम हिंदी भाषा के पठन -पाठन में कुशलता प्राप्त नहीं कर सकते हैं।हिंदी भाषा और व्याकरण में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। जैसा की हम सभी जानते हैं कि -----
भाषा लिखित व मौखिक सम्प्रेषण का एक माध्यम हैं। और सम्प्रेषण को सरल व प्रभावी बनाने के लिए हमें भाषा का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।और भाषा को शुद्ध रूप से पढ़ना,लिखना और बोलना सीखने के लिए हमें व्याकरण का पूर्ण अध्धयन करने की आवश्यकता होती हैं। व्याकरण के गहन अध्धयन के पश्चात् ही हम हिंदी भाषा के प्रयोग में कुशलता प्राप्त कर सकते हैं।क्योंकि व्याकरण ही वह शास्त्र हैं जिसके अंतर्गत हिंदी भाषा की लिपि, वर्ण,शब्द सौष्ठव व मात्रा आदि की विस्तृत व्याख्या की गयी हैं। जिनका अध्धयन कर हम भाषा को लिखने,पढ़ने व शुद्ध उच्चारण करने के समस्त नियमों से भली-भाँति अवगत होते हैं तथा साथ ही हिंदी भाषा में निपूर्णता प्राप्त करते हैं।व्याकरण ही एकमात्र ऐसा शास्त्र हैं जो हमें भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण से लेकर भाषा के विस्तृत व अनंत प्रयोग का ज्ञान प्रदान करता हैं। व्याकरण भाषा के अंतर्गत आने वाले शब्दों के शब्दगत प्रभाव पर ही नहीं, शब्दों के अर्थगत चमत्कार पर भी प्रकाश डालता हैं।
व्याकरण के अंतर्गत हम भाषा संबंधी जो कुछ भी अध्धयन करते हैं वो निम्लिखित हैं -
भाषा
मात्रा
शब्द सौष्ठव
विराम चिन्ह
भाषा
भाषा शब्द का जन्म संस्कृत की "भाष "धातु से हुआ हैं जिसका तात्पर्य हैं वाणी की अभिव्यक्ति। संस्कृत में कहा भी गया हैं कि "भाष व्यक्तायां वाचि "अर्थात मनुष्य की व्यक्त वाणी ही भाषा कहलाती हैं। और इसी आधार पर भाषा की परिभाषा इस प्रकार से निश्चित की गयी हैं।
भाषा की परिभाषा -
* भाषा वह साधन हैं जिसके माध्यम से हम अपने भाव,अपने विचारों को दुसरो के समक्ष प्रकट करते हैं या अभिव्यक्त करते हैं।
* भाषा विचारभियक्ति का एक प्रबल साधन हैं।
* भाषा वह माध्यम हैं जिसके द्वारा हम अपने विचारों का आदान - प्रदान करते हैं।
* भाषा दो या दो से अधिक मनुष्यों के मध्य एक संचार - व्यवहार हैं जिसके माध्यम से वे अपने मनोभावों को आपस में सम्प्रेषित करते हैं।
* भाषा सम्प्रेषण का मुख्य साधन हैं।
* भाषा एक ऐसा साधन हैं जिसके द्वारा हम अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाते हैं।
* भाषा मनुष्यों के मध्य विचार -विनिमय का एक सार्थक माध्यम हैं।
उपरोक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता हैं कि भाषा एक संचार - व्यवस्था हैं जिसके माध्यम से सामाजिक मनुष्य अपने मनोभावों व विचारों का पारस्परिक आदान - प्रदान करते हैं।
भाषा की विशेषताएँ -
* भाषा ध्वनिमय होती हैं।
* भाषा संकेतात्मक होती हैं।
* भाषा प्रतीकात्मक होती हैं।
* भाषा परिवर्तनशील होती हैं।
* भाषा का सीधा सम्बन्ध मनुष्य से होता हैं।
* सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन का प्रभाव भाषा के विकास पर भी पड़ता हैं.
* भाषा विकास की दिशा में गतिशील होती हैं।
* भाषा का शब्दकोष असीमित होता हैं।
* भाषा सरल व सहज होती हैं।
* किसी भी भाषा में विदेशी भाषा के शब्दों का सामावेश सरलता से हो जाता हैं।
भाषा की प्रकृति -
भाषा के आंतरिक गुणों व स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहते हैं। किसी भी भाषा की प्रकृति सरल व सहज होती हैं। भाषा एक बहते हुए जल की भाँति होती हैं। जिस प्रकार से बहता हुआ जल निरन्तर बहते हुए किसी नदी या सागर में जाकर मिल जाता हैं और फिर उसी के जल का रूप ले लेता हैं। उसी प्रकार से किसी दूसरी संस्कृति या सभ्यता के लोगों के परस्पर मिलने से दोनों संस्कृतियों की भाषा आपस में मिलकर एक मिली-जुली भाषा का स्वरुप ले लेती हैं। भाषा की प्रकृति परिवर्तनशील होती हैं। भाषा अलग -अलग मजहब की बोली व भाषा के शब्दों को प्रचुर मात्रा में सरलता से स्वीकार करती हैं। भाषा देश,काल एवं सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार विकासशील रहती हैं।
भाषा का विविध रूप -
प्रत्येक भाषा के मुख्यतः पांच हैं।
१ - बोलचाल की भाषा [बोली] -
बोलचाल की भाषा को सामान्यतः बोली कहा जाता हैं। बोली आमतौर पर उन लोगों की बोलचाल की भाषा का मिश्रित रूप हैं जिनकी भाषा में भेद नहीं जा सकता हैं। बोली सीमित क्षेत्र में प्रयोग की जाती हैं। और एक भाषा की कई बोलियां होती हैं।जब कई व्यक्ति बोलियों में संपर्क होता हैं तब बोलचाल का प्रसार होता हैं। सामान्यतःकई मिलती - जुलती बोलियों में हुए व्यवहार से बोली का विस्तार होता हैं।
२ - मानक भाषा /परिनिष्ठित भाषा -
भाषा के स्थिर व सुनिश्चित रूप को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहते हैं। भाषा विज्ञान कोश के मतानुसार किसी भाषा की उस विभाषा को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहा जाता हैं जो अन्य भाषाओँ पर अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठता स्थापित कर लेती हैं। परिनिष्ठित भाषा व्याकरणिक नियमों से परिस्कृत होती हैं। और हिंदी भाषा भी व्याकरणिक नियमों से परिष्कृत व परिमार्जित भाषा हैं। परिनिष्ठित भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा,व्यवहार, पत्राचार आदि की भाषा होती हैं। मानक भाषा को टकसाली भाषा भी कहा जाता हैं। मानक भाषा ,भाषा का वह रूप हैं जो शब्द -रचना,वाक्य-रचना,रूप- रचना, पास-रचना, अर्थ मुहावरें,लोकोक्तियाँ, व लेखन के लिए प्रयुक्त की जाती हैं।
३ - सम्पर्क भाषा -
कई भाषाओँ के अस्तित्व में आने के पश्चात् भी जिस भाषा को व्यक्ति-व्यक्ति के, राज्यों के, व दो राष्ट्रों के बीच समबन्ध स्थापित करने हेतू प्रयोग में लाया जाता हैं वह भाषा संपर्क भाषा कहलाती हैं। संपर्क भाषा के माध्यम से व्यापक रूप में पत्र- व्यवहार हैं। यह भाषा सामान्यतः सरकारी कार्यालयों आदि में भी प्रयुक्त की जाती हैं।
४ - राजभाषा -
जिस भाषा में सरकारी कार्यों का निष्पादन होता हैं वह राजभाषा कहलाती हैं। कई बार राजभाषा व राष्ट्रभाषा अन्तर करना कठिन हो जाता हैं,परन्तु दोनों में पर्याप्त अंतर हैं राष्ट्र भाषा सम्पूर्ण राष्ट्र के लोगों के संपर्क की भाषा होती हैं। तथा राजभाषा मात्र सरकारी कामकाज की भाषा हैं राजभाषा आम जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती हैं।
५ - राष्ट्रभाषा -
जिस भाषा में देश के समस्त भाषा- भाषिक आपसी विचार- विनिमय होता हैं वह राष्ट्र भाषा कहलाती हैं। राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की जनसंख्या का एक बड़ा भाग समझते हैं,पढ़ते हैं, व बोलते हैं। किसी भी देश की राष्ट्र भाषा उस दे का गौरव, एकता,अखंडता और मन- सम्मान का प्रतीक होता हैं। उस राष्ट्र की आत्मा होती हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग की जाती हैं।
हिंदी भाषा का उदभव -
'हिंदी ' वस्तुतः फ़ारसी भाषा का शब्द हैं। जिसका अर्थ हैं हिंदी या हिन्द से सम्बंधित। निष्पत्ति सिंधु -सिंध से हुई हैं। क्योंकि ईरानी भाषा में 'स ' को 'ह ' उच्चारित किया जाता हैं। प्रकार हिंदी में सिंधु शब्द का प्रतिरूप हैं। कालांतर में हिन्द शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बन कर उभरा। इसी हिन्द शब्द से हिंदी शब्द बना।
आज हम जिस हिंदी भाषा को जानते हैं आधुनिक आर्य भाषाओं में हैं आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत हैं। लगभग १००० ई० के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं का जन्म हुआ। और अपभ्रंश से ही हिंदी का जन्म हुआ। लेकिन हिंदी में साहित्यिक रचना का कार्य तेरहवीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ।
लिपि -
किसी भी भाषा की अपनी एक लिपि होती हैं। पर लिपि क्या हैं ? लिपि किसे कहते हैं ? तो ये हम नीचे जानते हैं।
लिपि या लेखन प्रणाली का अर्थ होता हैं किसी भी भाषा की लिखावट व लिखने का तरीका। जब कभी भी हम बोलते हैं तो सामने सुनने वाले को ध्वनियाँ सुनाई देती हैं, पर सिर्फ सुनाई देती हैं दिखाई नहीं देती हैं। और ना ही उन ध्वनियों में कोई स्थायित्व होता हैं। ये जरूरी भी नहीं कि वो ध्वनियाँ एक लम्बे समय तक हमें स्मरण रहें। दूसरा ये की जो व्यक्ति हमारे निकट होता हैं उसे तो हम बोल कर अपनी बात समझा सकते हैं। पर जो लोग हमसे दूर होते हैं उन तक हमें हमारी बातें लिखकर पहुंचानी होती हैं। अर्थात मुँह से निकलने वाली ध्वनियों को दूसरों तक लिखकर सम्प्रेषित करना होता हैं। इसीलिए इन ध्वनियों को स्थायित्व प्रदान करने हेतु कुछ चिन्हों का प्रयोग किया जाता हैं जिससे मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप दिया जा सके। और इस प्रकार से मनुष्य अपने मनोभावों को लिखित रूप में आदान - प्रदान कर सकते हैं। और इन्हीं ध्वनि - चिन्हों को लिपि कहते हैं।
प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि तो होती ही हैं पर यदि हमें भाषा का अनुवाद किसी अन्य लिपि में करना हो तो वह लिप्यन्तरण कहलाता हैं।
लिपि की परिभाषा -
हमारे मुँह से निकलने वाली ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता हैं,वहीं लिपि कहलाती हैं।
हिंदी भाषा की लिपि -
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि हैं। देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ हैं। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि हैं। जो प्राचीन लिपियों में सबसे अधिक वैज्ञानिक मानी गयी हैं।एक मतानुसार देवनगर [काशी ] में प्रचलन होने के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा। अधिकांश भाषाओं की तरह ही देवनागरी बाएं से दाएं लिखी जाती हैं। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खींची जाती हैं, जिसे शिरोरेखा कहा जाता हैं। परन्तु कुछ वर्णों के ऊपर ये नहीं भी खींची जाती हैं। देवनागरी लिपि की विशेषता हैं कि किसी भी ध्वनि , शब्द को देवनागरी लिपि में ज्यौं का त्यौं लिखा जाता हैं और जैसा लिखा जाता हैं वैसा ही उसका उच्चारण भी किया जाता हैं। हिंदी भाषा की वर्णमाला देवनागरी लिपि में ही लिखी हैं।
वर्णमाला -
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी की वर्णमाला में ११ स्वर और ३३ व्यञ्जन हैं।जो इस प्रकार से हैं --
स्वर की परिभाषा -
वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जाता हैं अर्थात जिनके उच्चारण के लिए किसी दूसरी ध्वनि या वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती हैं वे स्वर कहलाते हैं। हिंदी वर्णमाला में स्वर इस प्रकार से हैं -----
अ आ इ ई उ ऊ ऋ
ए ऐ ओ औ
ध्वनियाँ - अं ( अनुस्वार ), अः ( विसर्ग )
और जब इन स्वरों को व्यञ्जनों के साथ जोड़कर उच्चारित किया जाता हैं, तो यहीं स्वर मात्रा के रूप में उभरकर सामने आते हैं,जो निम्न प्रकार से हैं --
अ आ इ ई उ ऊ ऋ
ा ि ी ु ू ृ
ए ऐ ओ औ
े ै ो ौ
स्वर के भेद -
मुख्यतः स्वर के तीन भेद होते हैं।
१ - ह्रस्व स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में मात्र एक मात्रा के उच्चारण का समय लगता हैं ,वे ह्रस्व स्वर कहलाते हैं। ये संख्या में चार होते हैं। जैसे -- अ, इ, ई, ऋ। अब एक मात्रा के उच्चारण का समय क्या हैं ,मतलब इन स्वरों के उच्चारण में उतना ही समय लगता हैं जितना कि "अ " को उच्चारण करने में समय लगता हैं। अर्थात कम समय लगता हैं। क्योंकि इन ध्वनियों में किसी अन्य ध्वनि का सहयोग नहीं होता हैं। ये एकमात्रिक स्वर भी कहलाते हैं।
२ - दीर्घ स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का समय हैं, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं। ये संख्या में आठ होते हैं। अर्थात एक मात्रा से दुगना समय लगता हैं ये इस प्रकार हैं -- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। ये द्विमात्रिक स्वर कहलाते हैं।
३- प्लुत स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में एकमात्रिक स्वरों से तिगुना समय लगता हैं, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं। तिगुना समय लगने के कारण ही ये त्रिमात्रिक स्वर कहलाते हैं। ये स्वर किसी को दूर से पुकारने, चिल्लाने,गाने,रोने आदि के लिए प्रयोग किया जाता हैं।
व्यञ्जन की परिभाषा -
जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है, वे वर्ण व्यञ्जन कहलाते हैं।
यदि वर्णमाला में से स्वरों को अलग कर दिया जाता हैं तो जो शेष वर्ण रह जाते हैं वहीँ वर्ण व्यञ्जन कहलाते हैं। क से ज्ञ तक के सभी वर्ण व्यञ्जन कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त अनुस्वार ( ं ) तथा विसर्ग ( ः )और चन्द्र बिन्दु ( ँ ) भी व्यञजन के अंतर्गत ही समझे जाते हैं ,क्योंकि इनका उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं होता हैं।
व्यञ्जन की लेखन विधि -
व्यञ्जन दो तरह से लिखे जाते हैं। एक खड़ी पाई के साथ और दूसरा खड़ी पाई के बिना। ड़ , ट ,छ , ड ,द ,र बिना खड़ी पाई के लिखे गए व्यञ्जन हैं। शेष सभी व्यञ्जन खड़ी पाई के साथ लिखे जाते हैं।तथा कुछ वर्णों के मध्य पर एक सीधी रेखा खींची जाती हैं जैसे -झ, भ, म। और साथ ही भ, ध, थ आदि वर्णों की शिरोरेखा को कुछ तोड़ दिया जाता हैं। यदि किसी आधे र् के पीछे कोई व्यञ्जन लिखना हो तो वह आधा र् व्यञ्जन के ऊपर रेफ के रूप में लिखा जाता हैं।जैसे -कर्म ,धर्म।और यदि र व्यञ्जन के साथ संयुक्त रूप में लिखना हो तो वह र व्यञ्जन के नीचे जोड़ कर लिखा जाता हैं जैसे - भ्रम ,चक्र , सब्र ,राष्ट्र आदि।
क से लेकर म तक के सभी व्यञ्जनों को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया हैं। इस प्रकार से हैं --
क वर्ग - क ख ग घ ड़
च वर्ग - च छ ज झ ञ
ट वर्ग - ट ठ ड ढ ण
त वर्ग - त थ द ध न
प वर्ग - प फ ब भ म
य, र, ल, व अन्तस्थःव्यञ्जन हैं।
श, स, ष, ह ऊष्म व्यञ्जन हैं।
क्ष, त्र, ज्ञ, संयुक्त व्यञ्जन हैं।
व्यञ्जन के भेद -
व्यञ्जन के मुख्यतः तीन भेद होते हैं।
१ -स्पर्श व्यञ्जन -
जिन व्यञ्जनों का उच्चारण करते समय हमारे मुख से निकलने वाली वायु जब मुख के विभिन्न स्थानों को स्पर्श करते हुए ध्वनि उत्पन्न करती हैं वे व्यञ्जन स्पर्श व्यञ्जन कहलाते हैं। जो इस प्रकार से हैं --
क ख ग घ ड़
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
२ - अंतःस्थ व्यञ्जन -
वे व्यञ्जन जिनका उच्चारण करते समय जिह्वा विशेष रूप से सक्रिय रहती हैं। ये व्यञ्जन हैं य , र , ल , व।
३- ऊष्म व्यञ्जन -
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता हैं। वे व्यञ्जन जिनका उच्चारण करते समय मुँह से गर्म श्वास बाहर निकलती हैं ऊष्म व्यञ्जन कहलाते हैं। जैसे -श , स ,ष , ह।
वर्णों का उच्चरण स्थान -
नाम उच्चारण स्थान वर्ण
कण्ठ्य कंठ अ , आ, क, ख, ग, घ, ड़
तालव्य तालु इ, ई, च, छ, ज, झ,ञ, य, श
मूर्धा मूर्धन्य ऋ,ष, ट, ठ, ड, ढ, ण,
दंत्य दंत ल, त, थ, द, ध, न
ओष्ठय ओष्ठ उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म
कंठ तालव्य कंठ तालु ए, ऐ
कंठ ओष्ठय कंठ ओष्ठ ओ, औ
नासिक्य नासिका ड़ ,ञ, ण,न, म,अं, अँ
दन्तोष्ठ्य दंत ओष्ठ व, फ
अब तक हमनें पढ़ा कि व्याकरण क्या हैं ,व्याकरण के अंतर्गत किस विषय का अध्धयन किया जाता हैं। हमने जाना कि व्याकरण को हम भाषा शास्त्र भी कह सकते हैं,क्योंकि इसके अंतर्गत हमने भाषा सम्बन्धी विस्तृत ज्ञान प्राप्त किया । हिंदी भाषा , हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि, देवनागरी लिपि में वर्णित वर्णमाला तथा स्वर व व्यञ्जन के लिखने के नियम,उनके उच्चारण स्थान आदि का गहन अध्धयन किया। अब इसके आगे हम जानेंगे कि वर्ण क्या हैं। जो कुछ भी हम पढ़ते हैं या लिखते हैं उसकी शुरुआत क्या हैं ,उसका क्रमबद्ध अध्धयन कैसे किया जा सकता हैं कि हम सरल भाषा में सहज तरीके से सीख संकें।
वर्ण -विचार -
वर्ण /अक्षर -
वर्ण /अक्षर -
वर्ण वह मूल ध्वनि हैं जिसे और छोटे टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता हैं। वर्ण अखंड हैं। किसी भी शब्द की मूल ध्वनि वर्ण तक पहुंचकर; उसका विभाजन नहीं किया जा सकता हैं। कोई भी शब्द दो या दो से अधिक वर्णों और स्वरों के योग से बनता हैं और यदि हम उस शब्द के टुकड़े करे तो हम अंत में वर्ण में आकर रुकते है। जैसे -- दरवाजा = द् + अ + र् + अ + व् + आ + ज् + आ
वर्ण को अक्षर भी कहते हैं लेकिन मेरा मानना हैं कि वर्ण और अक्षर भिन्न हैं। क्योंकि
वर्ण अखंड हैं उसको और अधिक बांटा नहीं जा सकता हैं। व्यञ्जन को जब स्वर से अलग कर दिया जाता हैं तो वह वर्ण कहलाता हैं। वहीँ दूसरी ऒर जब वर्ण में स्वर को जोड़ कर लिखा या पड़ा जाता हैं तो वह व्यञ्जन रूप में अक्षर बन जाते हैं। तो किसी हद तक वर्ण को अक्षर कहना उचित नहीं हैं। कई बार इतना छोटा सा अंतर होने की वजह इन्हें एक ही समझ लिया जाता हैं।
वर्ण की परिभाषा -
वर्ण वह सबसे छोटी ध्वनि हैं जिसके और अधिक टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं।
जैसे - विद्यालय = व्+ इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ
यहाँ पर हमने विद्यालय शब्द को वर्णों में विभाजित किया हैं, अब इसके विभाजित वर्णों को और अधिक विभाजित नहीं कर सकते हैं अतः ये सबसे छोटी इकाई वर्ण कहलाएंगी।
अक्षर की परिभाषा-
जब वर्ण के साथ जोड़कर पढ़े जाते हैं तो व्यञ्जन रूप में अक्षर कहलाते हैं।
जैसे - द् + ई = दी
य् + ओ = यो
यहाँ पर द् और य् दोनों ही वर्ण हैं,जबकि दी और यो दोनों अक्षर हैं क्योंकि ये दोनों स्वरों से मिलकर बने हैं। कई बार इस छोटे से अंतर के कारण वर्ण और अक्षर को एक ही समझ लिया जाता हैं। जबकि इनमें पर्याप्त भिन्नता देखी जाती हैं।
वर्ण- विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके अन्तिम चरण तक विभाजित किया जाता हैं तो वह वर्ण - विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स् + अ + र् + ओ + व् अ + र् + अ = सरोवर
यहाँ पर सरोवर शब्द को उसकी सबसे छोटी ध्वनि तक विभाजित किया गया हैं।
अक्षर -विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके प्रथम चरण तक अर्थात अक्षरों को विभाजित किया जाता हैं तो वह अक्षर विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स + रो + व + र = सरोवर
इस प्रकार से वर्ण - विच्छेद वर्ण ध्वनियों का विभाजन हैं तथा अक्षर - विच्छेद अक्षरों का विभाजन होता हैं।
जो इस प्रकार हैं ------
वर्ण- विच्छेद अक्षर-विच्छेद
अ + भ् + य् + उ + द् + अ + य् + अ = अभ्युदय अ + भ् + यु + द + य = अभ्युदय
ह् + इ + म् + आ + ल् + अ + य् + अ = हिमालय हि + मा + ल + य = हिमालय
प् + उ + र् + ओ + ह् + इ + त् + अ = पुरोहित पु + रो + हि + त = पुरोहित
म् + अ + ह् + औ + ष् + अ + ध + इ = महौषधि म + हौ + ष + धि = महौषधि
ग् + ओ + द् + आ + व् + अ + र् + ई = गोदावरी गो + दा + व + री = गोदावरी
उपरोक्त उदाहरण से वर्ण- विच्छेद और अक्षर - विच्छेद के मध्य का सूक्ष्म अंतर स्पष्ट हो जाता हो। जिस प्रकार से किसी शब्द को वर्णों में या अक्षरों में विभाजित किया जाता हैं ,ठीक उसी प्रकार से एक से अधिक वर्णों या अक्षरों के योग से शब्द का निर्माण किया जाता हैं। व्याकरण के अध्धयन में वर्ण विचार और अक्षरों के पश्चात् शब्द - सौष्ठव का क्रम आता हैं। जो की हम व्याकरण के अगले भाग में पढ़ेंगे।
वर्ण वह सबसे छोटी ध्वनि हैं जिसके और अधिक टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं।
जैसे - विद्यालय = व्+ इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ
यहाँ पर हमने विद्यालय शब्द को वर्णों में विभाजित किया हैं, अब इसके विभाजित वर्णों को और अधिक विभाजित नहीं कर सकते हैं अतः ये सबसे छोटी इकाई वर्ण कहलाएंगी।
अक्षर की परिभाषा-
जब वर्ण के साथ जोड़कर पढ़े जाते हैं तो व्यञ्जन रूप में अक्षर कहलाते हैं।
जैसे - द् + ई = दी
य् + ओ = यो
यहाँ पर द् और य् दोनों ही वर्ण हैं,जबकि दी और यो दोनों अक्षर हैं क्योंकि ये दोनों स्वरों से मिलकर बने हैं। कई बार इस छोटे से अंतर के कारण वर्ण और अक्षर को एक ही समझ लिया जाता हैं। जबकि इनमें पर्याप्त भिन्नता देखी जाती हैं।
वर्ण- विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके अन्तिम चरण तक विभाजित किया जाता हैं तो वह वर्ण - विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स् + अ + र् + ओ + व् अ + र् + अ = सरोवर
यहाँ पर सरोवर शब्द को उसकी सबसे छोटी ध्वनि तक विभाजित किया गया हैं।
अक्षर -विच्छेद -
जब किसी शब्द को उसके प्रथम चरण तक अर्थात अक्षरों को विभाजित किया जाता हैं तो वह अक्षर विच्छेद कहलाता हैं। जैसे - स + रो + व + र = सरोवर
इस प्रकार से वर्ण - विच्छेद वर्ण ध्वनियों का विभाजन हैं तथा अक्षर - विच्छेद अक्षरों का विभाजन होता हैं।
जो इस प्रकार हैं ------
वर्ण- विच्छेद अक्षर-विच्छेद
अ + भ् + य् + उ + द् + अ + य् + अ = अभ्युदय अ + भ् + यु + द + य = अभ्युदय
ह् + इ + म् + आ + ल् + अ + य् + अ = हिमालय हि + मा + ल + य = हिमालय
प् + उ + र् + ओ + ह् + इ + त् + अ = पुरोहित पु + रो + हि + त = पुरोहित
म् + अ + ह् + औ + ष् + अ + ध + इ = महौषधि म + हौ + ष + धि = महौषधि
ग् + ओ + द् + आ + व् + अ + र् + ई = गोदावरी गो + दा + व + री = गोदावरी
उपरोक्त उदाहरण से वर्ण- विच्छेद और अक्षर - विच्छेद के मध्य का सूक्ष्म अंतर स्पष्ट हो जाता हो। जिस प्रकार से किसी शब्द को वर्णों में या अक्षरों में विभाजित किया जाता हैं ,ठीक उसी प्रकार से एक से अधिक वर्णों या अक्षरों के योग से शब्द का निर्माण किया जाता हैं। व्याकरण के अध्धयन में वर्ण विचार और अक्षरों के पश्चात् शब्द - सौष्ठव का क्रम आता हैं। जो की हम व्याकरण के अगले भाग में पढ़ेंगे।
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