भाषा

भाषा 
भाषा शब्द का जन्म संस्कृत की "भाष "धातु से हुआ हैं जिसका तात्पर्य हैं  वाणी की अभिव्यक्ति। संस्कृत में कहा भी गया हैं कि "भाष व्यक्तायां वाचि "अर्थात मनुष्य की व्यक्त वाणी ही भाषा कहलाती हैं। और इसी आधार पर भाषा की परिभाषा इस प्रकार से निश्चित की गयी हैं। 
भाषा की परिभाषा -
*  भाषा वह साधन हैं जिसके माध्यम से हम अपने भाव,अपने विचारों को दूसरो के समक्ष प्रकट करते हैं या            अभिव्यक्त करते हैं। 
*  भाषा विचारभियक्ति का एक प्रबल साधन हैं। 
*  भाषा वह माध्यम हैं जिसके द्वारा हम अपने विचारों का आदान - प्रदान करते हैं। 
*  भाषा दो या दो से अधिक मनुष्यों के मध्य एक संचार - व्यवहार हैं जिसके माध्यम से वे अपने मनोभावों को      आपस में सम्प्रेषित करते हैं। 
*  भाषा सम्प्रेषण का मुख्य साधन हैं।
*  भाषा एक ऐसा साधन हैं जिसके द्वारा हम अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाते हैं।  
*  भाषा मनुष्यों के मध्य विचार -विनिमय का एक सार्थक माध्यम हैं। 
     उपरोक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता हैं कि  भाषा एक संचार - व्यवस्था हैं जिसके माध्यम से  सामाजिक मनुष्य अपने मनोभावों व विचारों का पारस्परिक आदान - प्रदान करते हैं। 

भाषा की विशेषताएँ -

*  भाषा ध्वनिमय होती हैं। 
*  भाषा संकेतात्मक होती हैं। 
*  भाषा प्रतीकात्मक होती हैं। 
*  भाषा परिवर्तनशील होती हैं। 
*  भाषा का सीधा सम्बन्ध मनुष्य से होता हैं। 
*  सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन का प्रभाव भाषा के विकास पर भी पड़ता हैं.
*  भाषा विकास की दिशा में गतिशील होती हैं। 
*  भाषा का शब्दकोष असीमित होता हैं। 
*  भाषा सरल व सहज होती हैं।   
*  किसी भी भाषा में विदेशी भाषा के शब्दों का सामावेश सरलता से हो जाता हैं। 

भाषा की प्रकृति -

भाषा के आंतरिक गुणों व स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहते हैं। किसी भी भाषा की प्रकृति सरल व सहज होती हैं। भाषा एक बहते हुए जल की भाँति होती हैं। जिस प्रकार से बहता हुआ जल निरन्तर बहते हुए किसी नदी या सागर में जाकर मिल जाता हैं और फिर उसी के जल का रूप ले लेता हैं। उसी  प्रकार से किसी दूसरी संस्कृति या सभ्यता के लोगों के परस्पर मिलने से दोनों संस्कृतियों की भाषा आपस में मिलकर एक मिली-जुली भाषा का स्वरुप ले लेती हैं। भाषा  की प्रकृति परिवर्तनशील होती हैं। भाषा अलग -अलग मजहब की बोली व भाषा के शब्दों को प्रचुर मात्रा में सरलता से स्वीकार करती हैं। भाषा देश,काल एवं सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार विकासशील रहती हैं।
भाषा का विविध रूप -
प्रत्येक भाषा के मुख्यतः पांच  हैं। 
१ -  बोलचाल की भाषा [बोली] -
                     बोलचाल की भाषा को सामान्यतः बोली कहा जाता हैं। बोली आमतौर पर उन लोगों की बोलचाल की भाषा का मिश्रित रूप हैं जिनकी भाषा में भेद नहीं जा सकता हैं। बोली सीमित क्षेत्र में प्रयोग की जाती हैं। और एक भाषा की कई बोलियां होती हैं।जब कई व्यक्ति बोलियों में संपर्क होता हैं तब बोलचाल का प्रसार होता हैं। सामान्यतःकई मिलती - जुलती बोलियों में हुए व्यवहार से बोली का विस्तार होता हैं। 
२ -  मानक भाषा /परिनिष्ठित भाषा -
                                भाषा के स्थिर व सुनिश्चित रूप को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहते हैं। भाषा विज्ञान कोश के मतानुसार किसी भाषा की उस विभाषा को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहा जाता हैं जो अन्य भाषाओँ पर अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठता स्थापित कर लेती हैं। परिनिष्ठित भाषा व्याकरणिक नियमों से परिस्कृत होती हैं। और हिंदी भाषा भी व्याकरणिक नियमों से परिष्कृत व परिमार्जित भाषा हैं। परिनिष्ठित  भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा,व्यवहार, पत्राचार  आदि की भाषा होती हैं। मानक भाषा को टकसाली भाषा भी कहा जाता हैं। मानक भाषा ,भाषा का वह रूप हैं जो शब्द -रचना,वाक्य-रचना,रूप- रचना, पास-रचना, अर्थ मुहावरें,लोकोक्तियाँ, व लेखन के लिए प्रयुक्त की जाती हैं।  
३ - सम्पर्क भाषा -
                                 कई भाषाओँ के अस्तित्व में आने के पश्चात् भी जिस भाषा को व्यक्ति-व्यक्ति के, राज्यों के, व दो राष्ट्रों के बीच समबन्ध स्थापित करने हेतू प्रयोग में लाया जाता हैं वह भाषा संपर्क भाषा कहलाती हैं। संपर्क भाषा के माध्यम से व्यापक रूप में पत्र- व्यवहार  हैं। यह भाषा सामान्यतः सरकारी कार्यालयों आदि में भी प्रयुक्त की जाती हैं। 
४ - राजभाषा -
                             जिस भाषा में सरकारी कार्यों का निष्पादन होता हैं वह राजभाषा कहलाती हैं। कई बार राजभाषा व राष्ट्रभाषा  अन्तर करना कठिन हो जाता हैं,परन्तु दोनों में पर्याप्त अंतर हैं राष्ट्र भाषा सम्पूर्ण राष्ट्र के लोगों के संपर्क की भाषा होती हैं। तथा राजभाषा मात्र सरकारी कामकाज की भाषा हैं राजभाषा आम जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती हैं। 
५ - राष्ट्रभाषा -
                            जिस भाषा में देश के समस्त भाषा- भाषिक आपसी विचार- विनिमय होता हैं वह राष्ट्र भाषा कहलाती हैं। राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की जनसंख्या का एक बड़ा भाग समझते हैं,पढ़ते हैं, व बोलते हैं। किसी भी देश की राष्ट्र भाषा उस दे का गौरव, एकता,अखंडता और मन- सम्मान का प्रतीक होता हैं।  उस राष्ट्र की आत्मा होती हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग की जाती हैं।  
हिंदी भाषा का उदभव -
                     'हिंदी ' वस्तुतः फ़ारसी भाषा का शब्द हैं। जिसका अर्थ हैं हिंदी या हिन्द से सम्बंधित। इसकी  निष्पत्ति सिंधु -सिंध से हुई  हैं। क्योंकि ईरानी भाषा में 'स ' को 'ह ' उच्चारित किया जाता हैं। इस प्रकार हिंदी शब्द में सिंधु शब्द का प्रतिरूप हैं। कालांतर में हिन्द शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बन कर उभरा। इसी हिन्द शब्द से हिंदी शब्द बना। 
                   आज हम जिस हिंदी भाषा को जानते हैं   वह आधुनिक आर्य भाषाओँ में  हैं आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत हैं।जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी।  लगभग १००० ई० के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओँ का जन्म हुआ। और अपभ्रंश से ही हिंदी का जन्म हुआ। लेकिन हिंदी में साहित्यिक रचना का कार्य तेरहवीं शताब्दी से  प्रारम्भ हुआ।
लिपि -
                  किसी भी भाषा की अपनी एक लिपि होती हैं। पर लिपि क्या हैं ? लिपि किसे कहते हैं ? तो ये हम नीचे जानते हैं। 
                   लिपि या लेखन प्रणाली का अर्थ  होता हैं किसी भी भाषा की लिखावट व लिखने का तरीका। जब कभी भी हम बोलते हैं तो सामने सुनने वाले को ध्वनियाँ सुनाई देती हैं, पर सिर्फ सुनाई देती हैं दिखाई नहीं देती हैं। और ना ही उन ध्वनियों में कोई स्थायित्व होता हैं। ये जरूरी भी नहीं कि वो ध्वनियाँ एक लम्बे समय तक हमें स्मरण रहें। दूसरा ये की जो व्यक्ति हमारे निकट होता हैं उसे तो हम बोल कर अपनी बात समझा सकते हैं पर जो लोग हमसे दूर  होते हैं उन तक हमें हमारी बातें लिखकर पहुंचानी होती हैं। अर्थात मुँह से निकलने वाली ध्वनियों को दूसरों तक लिखकर सम्प्रेषित करना होता हैं। इसीलिए इन ध्वनियों को स्थायित्व प्रदान करने हेतु कुछ चिन्हों का प्रयोग किया जाता हैं जिससे मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप दिया जा सके। और इस प्रकार से मनुष्य अपने  मनोभावों को लिखित रूप में आदान - प्रदान कर सकते हैं। और इन्हीं ध्वनि - चिन्हों को लिपि कहते हैं। 
                   प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि तो होती ही हैं पर यदि हमें भाषा का अनुवाद किसी अन्य लिपि में करना हो तो वह लिप्यन्तरण कहलाता हैं।     
लिपि की परिभाषा - 
                          हमारे मुँह से निकलने वाली ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता हैं,वहीं लिपि कहलाती हैं। अर्थात लिपि वह ध्वनि चिन्ह जिनसे हम लिखने का तरीका सीखते हैं।  
हिंदी भाषा की लिपि -
                            हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि हैं। देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ हैं। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि हैं। जो प्राचीन लिपियों में सबसे अधिक वैज्ञानिक मानी गयी हैं।एक मतानुसार देवनगर [काशी ] में प्रचलन होने के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा। अधिकांश भाषाओँ की तरह ही देवनागरी बाएं से दाएं लिखी जाती हैं। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खींची जाती हैं, जिसे शिरोरेखा कहा जाता हैं। परन्तु कुछ वर्णों के ऊपर ये नहीं भी खींची जाती हैं। देवनागरी लिपि की विशेषता हैं कि किसी भी ध्वनि , शब्द को देवनागरी लिपि में ज्यौं का त्यौं लिखा जाता हैं और जैसा लिखा जाता हैं वैसा ही उसका उच्चारण भी किया जाता हैं। हिंदी भाषा की वर्णमाला देवनागरी लिपि में ही लिखी हैं। जिसे हम हिंदी भाषा की नींव भी कह सकते हैं  
                          हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि की वर्णमाला का अध्ययन अब हम अगले भाग वर्ण - विचार के अंतर्गत करेंगे। 

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