एक अन्जाना रिश्ता कागज - कलम से हैं




एक अन्जाना रिश्ता कागज - कलम से हैं 

EK ANJANA RISHTA KAGAJ KALAM SE HAIN, HINDI KAVITA



जिन्दगी के किसी मोड़ पर जब खुद को तराशने की जरूरत महसूस हुई, तो
उस जरूरत का एहसास मेरा वो पहला एहसास ही कागज - कलम से हैं। 
मेरे अनकहे शब्द जो अनसुना - सा महसूस करते हैं कभी,
उन गुमराह शब्दों का वास्ता इन्हीं कागज - कलम से हैं। 
कभी तन्हा जो खो जाती हूँ कल्पनाओं के भवँर में तो,
उस भँवर से निकलकर शब्द तक पहुँचने का रास्ता कागज - कलम से हैं। 
कभी जो व्यथित मन उलझ कर रह जाता हैं,भावनाओं के बवंडर में तो,
उस बवंडर से सुलझ कर बिखरते शब्दों का रिश्ता भी कागज - कलम से हैं। 
कभी प्रकृति के अनुराग से आत्मसात करते हुए जो स्वप्न महल बनाती हूँ मैं,
उस महल की इमारत की चित्रकारी करने का छोटा - सा कोना कागज - कलम से हैं। 
मेरे अश्क गर बहने लगते हैं मेरी पलकों से ढल कर जो कभी,
उनकी ख्वाहिश भी छंदों में तब्दील होकर मिल जाना कागज - कलम से हैं।  
जिन्दगी की किताब को पढ़कर मैं मुस्कुरा लेती हूँ कभी जो,
मेरे होंठो पर खिलने वाली उस मुस्कराहट की वजह भी कागज - कलम से हैं।
मेरी सोच जब भटक जाती हैं अपने - पराये की गलियों में कभी जो,
जिस जमीं पर वो अपना आशियाँ बनाती हैं वो जमीं का टुकड़ा कागज - कलम हैं। 
मेरे शिकवे - शिकायतें, मेरे दर्द मेरे गम,मेरी हंसी मेरी ख़ुशी जो शब्दों में पनाह पाती हैं कभी,
उन सभी तमाम यादों का सिलसिला कागज - कलम से हैं। 
आज भी कई एहसास, कई अल्फ़ाज़ भटक रहे हैं एक शक़ की तलाश में,
उस पहली शक़ की शुरुआत भी कागज - कलम से हैं। 
मेरी रूह आज़ाद हो जाएँगी इस देह - पिंजर से कभी जो,
निश्चित हैं कि वो जाकर मिल जाना चाहेंगी इसी कागज - कलम से हैं। 
कभी जो दिल करें मेरे अतीत के पन्नों को पलटने का अगर,
तो तुम्हें पल दो पल का ही सही पर साथ निभाना होंगा इन्हीं कागज - कलम से हैं। 

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