एक अन्जाना रिश्ता कागज - कलम से हैं
जिन्दगी के किसी मोड़ पर जब खुद को तराशने की जरूरत महसूस हुई, तो
उस जरूरत का एहसास मेरा वो पहला एहसास ही कागज - कलम से हैं।
मेरे अनकहे शब्द जो अनसुना - सा महसूस करते हैं कभी,
उन गुमराह शब्दों का वास्ता इन्हीं कागज - कलम से हैं।
कभी तन्हा जो खो जाती हूँ कल्पनाओं के भवँर में तो,
उस भँवर से निकलकर शब्द तक पहुँचने का रास्ता कागज - कलम से हैं।
कभी जो व्यथित मन उलझ कर रह जाता हैं,भावनाओं के बवंडर में तो,
उस बवंडर से सुलझ कर बिखरते शब्दों का रिश्ता भी कागज - कलम से हैं।
कभी प्रकृति के अनुराग से आत्मसात करते हुए जो स्वप्न महल बनाती हूँ मैं,
उस महल की इमारत की चित्रकारी करने का छोटा - सा कोना कागज - कलम से हैं।
मेरे अश्क गर बहने लगते हैं मेरी पलकों से ढल कर जो कभी,
उनकी ख्वाहिश भी छंदों में तब्दील होकर मिल जाना कागज - कलम से हैं।
जिन्दगी की किताब को पढ़कर मैं मुस्कुरा लेती हूँ कभी जो,
मेरे होंठो पर खिलने वाली उस मुस्कराहट की वजह भी कागज - कलम से हैं।
मेरी सोच जब भटक जाती हैं अपने - पराये की गलियों में कभी जो,
जिस जमीं पर वो अपना आशियाँ बनाती हैं वो जमीं का टुकड़ा कागज - कलम हैं।
मेरे शिकवे - शिकायतें, मेरे दर्द मेरे गम,मेरी हंसी मेरी ख़ुशी जो शब्दों में पनाह पाती हैं कभी,
उन सभी तमाम यादों का सिलसिला कागज - कलम से हैं।
आज भी कई एहसास, कई अल्फ़ाज़ भटक रहे हैं एक शक़ की तलाश में,
उस पहली शक़ की शुरुआत भी कागज - कलम से हैं।
मेरी रूह आज़ाद हो जाएँगी इस देह - पिंजर से कभी जो,
निश्चित हैं कि वो जाकर मिल जाना चाहेंगी इसी कागज - कलम से हैं।
कभी जो दिल करें मेरे अतीत के पन्नों को पलटने का अगर,
तो तुम्हें पल दो पल का ही सही पर साथ निभाना होंगा इन्हीं कागज - कलम से हैं।
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