बरसों बाद इस दिल ने, ली अरमानों की अंगड़ाई,
खामोशी गुनगुनाई है, महक उठी है तन्हाई।
ये कैसा शोर ख्वाहिश का, है भावों के भंवर पर,
लहर बन के जो लहराएं मेरे मन के समंदर पर।
कभी देखूं किनारे से तुझे ढलते हुए सूरज,
लगाकर मैं कभी खेलूं, तुझे तन पर मेरी भू रज।
है चाहत मेरी आंखों की, सजा लूं स्वप्न पलकों पर,
हवा आकर उलझ जाएं मेरी बिखरी सी अलकों पर।
ओढ़ूं आज मैं अंबर बनाकर के तुझे आंचल,
घटा घनघोर जो छाएं बना लूं नैन का काजल।
मैं आंगन में बैठकर के, लिखूं कविता चांद पर,
चांदनी चांद की बातें करें मुझसे रात भर।
सजा लूं रंग तितलियों के, महक जाऊं मैं कलियों सी,
लगाकर पंख उड़ जाऊं, चहक जाऊं मैं पंछियों सी।
कहो तो गुनगुनाऊं आज मैं कोई गीत प्रेम पर,
जो मेरे मन की वीणा को करें झंकृत कोई छूकर,
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