परिचय...
आजकल मोबाइल फोन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं। ये न केवल संचार के साधन हैं बल्कि हमारी दैनिक दिनचर्या को भी प्रभावित करते हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि मोबाइल किस हद तक जिम्मेदार है। हमारे आपसी रिश्तों में टकराव, पारिवारिक संबंधों का बिखरना, बच्चों का लक्ष्य से भटकना, बच्चों में आलस्य, और स्वकेंद्रित व्यवहार आदि समस्याओं के लिए? तो आइए जानते हैं।
आपसी रिश्तों में टकराव
मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग हमारे आपसी रिश्तों में टकराव का प्रमुख कारण बन रहा है। जब हम अपने प्रियजनों के साथ समय बिताने की बजाय मोबाइल में व्यस्त रहते हैं, तो इससे हमारे रिश्तों में दरार आना स्वाभाविक है। अधिकतर समय मोबाइल में बिताना, यह सभी में एक लत का रूप लेती जा रहीं हैं। आज कल सभी लोग अपना अधिकांश समय मोबाइल चलते हैं। वे मोबाइल में इतना ज्यादा खोए होते हैं। कि यदि कोई उन्हें सामने से कोई जरूरी बात कही जाएं, तो वह बात उस समय उन्हें समझ नहीं आती हैं, या फिर वो बात सुन तो लेंगे, एक बार को हाॅं में जवाब भी देंगे। लेकिन उन्हें समझ नहीं आता कि कोई क्या कह गया। अधिकांश घरों में ये देख जाता हैं। और जब मोबाइल बंद होगा तब पूछेंगे क्या कहा? इस स्थिति में पति पत्नी, पिता पुत्र, या मां बेटे के बीच झगड़ा होना संभव होता हैं। हर दिन इन छोटी -छोटी बातों को लेकर होने वाली तकरार एक दिन झगड़े का भयावह रूप लेता हैं। एक रिसर्च के अनुसार, मोबाइल का अधिक उपयोग करने वाले कपल्स के बीच झगड़े और संवाद की कमी अधिक होती है। ये बात बिल्कुल सही हैं। आजकल हर घर में परिवार में जितने सदस्य हैं। उतने ही मोबाइल भी, कई बार तो यहाॅं तक देखा जाता हैं, कि पूरा परिवार एक साथ बैठा हैं। लेकिन साथ होकर भी नहीं हैं। क्योंकि सभी सदस्य अपने - अपने कोने में अपने मोबाइल में व्यस्त हैं। आपसी लगाव, भावनात्मक लगाव कम हो गया हैं। किसी के व्यक्तिगत जीवन में क्या चल रहा हैं। उसके खुद के परिवार को नहीं पता होता हैं। पति पत्नी में पर्याप्त बातचीत, खट्टा मीठा संवाद नहीं होता। पास में बैठे पति पत्नी एक दूसरे से बात किए बिना मोबाइल में एक दूसरे की पोस्ट को लाइक करते हैं। इमोजी से भाव प्रकट करते हैं। आंखों ही आंखों में अपनी बात अपने भाव प्रकट करना, थोड़ी नाराजगी, फिर मुस्कुराकर मान जाना, भाव - भंगिमा से अपना प्रेम व्यक्त करना, प्यारी शरारतें करना ये सब तो मानों खत्म हो हो गया हैं। इसके विपरीत यदि मोबाइल चलते समय किसी ने आकर कुछ कह दिया जिससे मोबाइल को छोड़ना पड़ सकता हैं। तो उसी वक्त मौखिक विवाद शुरू ताने - बाने शुरू। मोबाइल इस तरह से हमारे मानसिक पटल पर हावी हो गया हैं कि सारी दुनिया मोबाइल में सिमट गई हैं। रिश्तों की मिठास इस मोबाइल के डाटा ने चुरा लिया हैं। वो साथ बैठकर चाय की चुस्कियां लेना। चाय पीते समय गपशप करना, वो खाली बैठे अंताक्षरी खेलना, वो घर के बूढ़े बुजुर्गों के किस्से कहानियां सब न जाने कहां खो गए हैं। इसमें सब ज्यादा अकेलापन बुजुर्गों को मिल रहा हैं। उनके पास कोई मोबाइल नहीं होता हैं। अगर होता हैं तो उनका सोशल नेटवर्क नहीं होता हैं। या फिर ये स्मार्ट फोन उन्हें चलाने नहीं आते हैं। इस स्थिति में उनका मन करता हैं कि उनके नाती - पोते आकर उनके पास बैठे, उनसे बातें करें, उनके आस - पास परिवार का मेला सा रहें। पर आज के इस मोबाइल वाले दौर में किसी को इतनी फुरसत ही नहीं कि वे दो पल आकर उनसे पूछे कि वे कैसे हैं, उन्हें क्या चाहिए। वे अकेले में सबको देख दिन काटते हैं। इस प्रकार से मोबाइल किस हद तक जिम्मेदार है। आपसी रिश्तों में टकराव के लिए, यह तो स्पष्ट है।
पारिवारिक संबंधों का बिखरना
परिवार के सदस्य अब एक ही छत के नीचे रहते हुए भी एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। सभी अपने-अपने मोबाइल फोन में व्यस्त रहते हैं, जिससे पारिवारिक संबंधों का बिखरना आम हो गया है। माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी, साथ में बिताने वाला समय कम हो जाना, साथ बैठकर किसी विषय पर चर्चा नहीं होती, माता - पिता और संतान के बीच वैचारिक दूरी आती जा रही हैं।
सबके विचार मिल नहीं रहे हैं। बच्चों का किसी विषय पर चाहे वह उनके करियर की बात क्यों न हो। बच्चे माता - पिता से किसी प्रकार की सलाह लेना नहीं चाहते हैं। उन्हें जीवन के हर क्षेत्र का उत्तर या सलाह गूगल से चाहिए। मुझे तो ऐसा लगता हैं मानो माता - पिता की जगह गूगल लेता जा रहा हैं। ये वैचारिक भिन्नता, पारिवारिक अलगाव, मतभेद इन सब की जड़ ये आजकल के स्मार्ट फोन ही हैं। ये सभी समस्याएँ मोबाइल के अत्यधिक उपयोग के कारण हो रही हैं।
बच्चों का लक्ष्य से भटकना
बच्चों के जीवन में मोबाइल फोन का अत्यधिक प्रभाव उनके लक्ष्य से भटकने का कारण बन सकता है। पढ़ाई के समय भी बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं। यहां तक कि उन्हें खाना खाते समय भी मोबाइल ही चाहिए। यदि वे दो पल खाली बैठे हैं, तो भी उन्हें मनोरंजन के लिए मोबाइल ही चाहिए। या सोशल मीडिया पर समय बिताते हैं, जिससे उनका ध्यान पढ़ाई से हट जाता है। इसके अलावा, मोबाइल पर अनचाहे कंटेंट की उपलब्धता बच्चों को गलत दिशा में ले जा सकती है। ऐसे में, बच्चों का लक्ष्य से भटकना एक गंभीर समस्या बन जाती है। ऐसा भी देखा गया हैं कि पहले बच्चे जब वे माता पिता के सानिध्य में होते है तो उनका लक्ष्य निर्धारित होता हैं। परंतु जब उनके हाथ में मोबाइल फोन आ जाता हैं। तो वह यूट्यूब आदि में समय बिताते हैं। वहां पर जो स्वयं कुछ नहीं करते हैं।वे लोग किसी भी पैसा कमाने के कंटेंट को इतने आकर्षित तरीके से प्रस्तुत करते हैं कि बच्चे उनसे आकर्षित होकर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। इसके लिए मोबाइल किस हद तक जिम्मेदार है, यह समझना आवश्यक है।
बच्चों में आलस्य और चिड़चिड़ापन
मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से बच्चों में आलस्य की भावना बढ़ रही है। शारीरिक गतिविधियों की कमी और लगातार स्क्रीन के सामने बैठने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है। इससे बच्चों में आलस्य और सुस्ती बढ़ती है, जो उनके स्वास्थ्य और भविष्य के लिए हानिकारक हो सकता है। सबसे मुख्य समस्या आंखों में लगातार नंबर का बढ़ना हैं। बच्चों को मिली में वे सारे गेम मिल रहे हैं जो कभी बच्चे मैदान में अपने साथियों के साथ खेलते थे। यहां तक कि क्रिकेट, वॉलीबॉल, टेनिस इत्यादि। इससे भी अच्छे लुभाने वाले गेम जो बच्चो को उसका एडिक्ट बना रहे हैं । वो सभी उपलब्ध हैं। बच्चे एक स्थान पर मोबाइल लेकर बैठ जाते हैं वो फिर सारी दुनिया उनके हाथों में, काम सिर्फ फोन पर उंगलियां चलाना। मोबाइल में खलते समय उन्हें माता पिता की डांट न पड़े इससे बचने के लिए वे माता पिता से नजरें चुराते हैं। कई बार पढ़ाई का झूठा बहाना बनाते हैं। जिससे झूठ बोलना सीख रहे हैं। मोबाइल में खेलते समय यदि कोई काम कह दे तो वे चिड़चिड़ा जाते हैं। यहां तक कि अपने विषयों संबंधित प्रश्नों या गृह कार्य को भी वे गूगल की सहायता से करते हैं। वे किताबों में एक नजर नहीं डालते, अपने प्रयास से उत्तर नहीं ढूंढते हैं। इस प्रकार, बच्चों में आलस्य और चिड़चिड़ापन के लिए मोबाइल काफी हद तक जिम्मेदार है, यह स्पष्ट है।
स्वकेंद्रित व्यवहार
मोबाइल फोन का अधिक उपयोग बच्चों में स्वकेंद्रित व्यवहार को बढ़ावा देता है। वे अपने मोबाइल फोन में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उनके आसपास के लोगों और घटनाओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता कम हो जाती है। इससे बच्चों में सामाजिक कौशल की कमी हो जाती है। और वे स्वकेंद्रित व्यवहार दिखाने लगते हैं। वे शिक्षा के क्षेत्र में भी अपने शिक्षकों की तुलना गूगल से करते हैं। कक्षा में शिक्षकों की बातों में ध्यान न देकर घर आकर गूगल से समाधान माॅंगते हैं। आजकल के बच्चों को किसी से मदद लेना अच्छा नहीं लगता हैं। वे चाहते हैं कि कोई उन्हें बताए या सिखाएं, उससे पहले वे स्वयं ही अपना कार्य कर लें। आजकल के बच्चों ने अपना दायरा स्वयं ही तय कर रखा हैं। वे उस दायरे में किसी का भी हस्तक्षेप पसंद नहीं करते हैं। मोबाइल की लत बच्चों को समाज से दूर कर रही हैं। उनके परिवार से दूर कर रही हैं। यहीं व्यवहार स्वकेंद्रित कहलाता हैं।
समाधान
1. समय सीमा निर्धारण - मोबाइल फोन के उपयोग के लिए समय सीमा तय करें। बच्चों और बड़ों दोनों के लिए यह आवश्यक है, कि वे मोबाइल का उपयोग नियंत्रित तरीके से करें।
2. परिवारिक समय - परिवार के साथ समय बिताना महत्वपूर्ण है। भोजन के समय और अन्य पारिवारिक गतिविधियों के दौरान मोबाइल फोन का उपयोग न करें।
3. शारीरिक गतिविधियाँ - बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें। खेल, योग, और अन्य आउटडोर गतिविधियों को बढ़ावा दें। ताकि वे शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। स्वयं को बच्चों को अपने साथ व्यस्त रखें। उनके साथ खेलें, बातें करें, उन्हें घूमने के जाएं। इनके साथ मैदानी खेल खेलें।
4. शैक्षिक उद्देश्यों के लिए उपयोग - बच्चों को मोबाइल फोन का उपयोग शैक्षिक उद्देश्यों के लिए करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें ऑनलाइन कोर्सेज, शैक्षिक ऐप्स, और अन्य शैक्षिक संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें मोबाइल के फायदे और नुकसान सोनोंसे अवगत कराएं। स्वयं भी उनके समक्ष मोबाइल में व्यर्थ समय न बितायें।
5. सामाजिक कौशल विकास - बच्चों को सामाजिक कौशल सिखाने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें दोस्तों के साथ समय बिताने, समूह गतिविधियों में भाग लेने, और अन्य सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करें। उनमें कौशल विकास के लिए स्वयं नवाचार की आदत डालें। उन्हें लिखने, पढ़ने की आदत के फायदे बताएं। उन्हें अच्छी किताबें लाकर दें। उनमें नैतिक शिक्षा को बढ़ाएं। उन्हें समाज का स्पष्ट रूप दिखाएं। जहां स्वकर्म ही हमारी दिशा तय करता हैं।
6. मोबाइल फ्री टाइम - परिवार के साथ मोबाइल फ्री टाइम निर्धारित करें। यह समय परिवार के सभी सदस्यों के लिए होगा। जिसमें कोई भी मोबाइल का उपयोग नहीं करेगा। उस वॉट आप उनसे बातें करें, उनके साथ खेलें, उन्हें अपने स्कूली दिनों की, अपने समय की बातें, अपने शौक, कुछ कहानियां, कुछ किस्से सुनाएं। संक्षेप में उन्हें अपने आप से मिलाएं। उन्हें आप से ही प्रेरणा मिलेंगी।
निष्कर्ष
मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग हमारे आपसी रिश्तों में टकराव, पारिवारिक संबंधों का बिखरना, बच्चों का लक्ष्य से भटकना, बच्चों में आलस्य, और स्वकेंद्रित व्यवहार जैसी समस्याओं के लिए जिम्मेदार हो सकता है। हालांकि, यह संभव है, कि हम इन समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं ।अगर हम मोबाइल का उपयोग नियंत्रित और सख्त तरीके से करें। जागरूकता और सही दिशा में कदम उठाने से हम इन समस्याओं को कम कर सकते हैं ।और एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकते हैं। कहीं न कहीं बच्चों में आदतें हम से ही आती हैं। इसलिए बच्चों के सामने हमें भी मोबाइल का नियंत्रित प्रयोग करना चाहिए।
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