( भाग १ )
मुझे कहाँ कुछ कहना होता हैं,
मेरा ह्रदय तो मौन पड़ा हैं।
वो तो देख कुछ मानवों तुच्छ मानसिकता,
मेरा कलम का सिपाही बोल पड़ा हैं।
आज मेरा मन अति विचलित हैं,
शब्द क्रोधाग्नि में तपे हुए हैं।
देख इंसानियत को शर्मसार होते,
नित नवजात शिशु कूड़ेदानों में फेंके हुए हैं।
सोच रही हूँ कहाँ खो गयी मानवता,
क्यों लाज - शर्म, नग्न - नृत्य कर रही हैं।
नौ महीने शिशु को पाल गर्भ में,
जन्म पश्चात् सड़कों पर मरने को छोड़ रही हैं।
जब नहीं करना लालन - पालन शिशु का,
क्यों माता बन शिशुओं को जन्म दे रही हैं।
यदि शिशु जन्म स्त्री चरित्र पर प्रश्न चिन्ह हैं तो,
फिर क्यों चरित्र हीनता की सीमाएं लाँघ रही हैं।
नित नवजात शिशु कूड़ेदानों में फेंके हुए हैं।
सोच रही हूँ कहाँ खो गयी मानवता,
क्यों लाज - शर्म, नग्न - नृत्य कर रही हैं।
नौ महीने शिशु को पाल गर्भ में,
जन्म पश्चात् सड़कों पर मरने को छोड़ रही हैं।
जब नहीं करना लालन - पालन शिशु का,
क्यों माता बन शिशुओं को जन्म दे रही हैं।
यदि शिशु जन्म स्त्री चरित्र पर प्रश्न चिन्ह हैं तो,
फिर क्यों चरित्र हीनता की सीमाएं लाँघ रही हैं।
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