परिचय
वर्तमान युग में तेजी से बदलती जीवनशैली और आधुनिकता को अपनाने की होड़ में, शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहने का चलन बढ़ता जा रहा है। हालांकि यह पश्चिमी सभ्यता में सामान्य है, लेकिन भारतीय समाज और संस्कृति में इसे एक भद्दा मजाक माना जाता है। शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक हैं, इस बात को समझने के लिए हमें भारतीय मूल्य, परंपराएं और सामाजिक संरचना की गहराई में जाना होगा।
भारतीय संस्कृति और विवाह
भारत एक ऐसा देश है जहाॅं विवाह को केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि दो आत्माओं का मिलन माना जाता है। भारतीय समाज में विवाह का विशेष महत्व है। और इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। भारतीय संस्कृति में, विवाह एक पवित्र बॅंधन है। एक ऐसा बंधन जो दो परिवारों की सहमति, उनके आशीर्वाद से बॅंधता हैं। शादी मात्र एक लड़का, एक लड़की की मध्य बॅंधने वाला बॅंधन नहीं हैं। या बॅंधन दो परिवारों के बीच भी बंधता हैं। जहां वे दोनों परिवार एक दूसरे के संबंधी बनाते हैं। एक दुसरे के सूझ दुख में एक दूसरे के साथ खड़े होते हैं। दोनों परिवारों में त्योहारों का, खुशियों का, अपनत्व का नाता बनता हैं। और इन दोनों परिवारों के मध्य के इस व्यावहारिक संतुलन को बनाए रखने की जिम्मेदारी वैवाहिक डोर में बॅंधने वाले नवविवाहित जोड़े को दी जाती हैं। शादी एक बहुत ही सुंदर रिश्ता हैं। जहाॅं दो लोगों अपना गृहस्थ जीवन जीने की पूर्ण स्वतंत्रता दी जाती हैं।
शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक इसलिए कह रही हूॅं। क्योंकि यह हमारे पारंपरिक मूल्यों और विश्वासों के खिलाफ जाता है। भारतीय समाज में विवाह पूर्व संबंधों को सदैव अनुचित और अस्वीकार्य माना गया है। यहाॅं तक कि आज भी, अधिकतर भारतीय परिवार इस प्रकार के संबंधों को स्वीकार नहीं करते।
आदि काल से हमारे जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम। इन चारों आश्रमों की व्यवस्था मानव की बढ़ती उम्र उसकी आवश्यकताओं और शारीरिक, मानसिक सामर्थ्य के अनुसार की गई हैं।
जैसे
ब्रह्मचर्य आश्रम में बालक अपने माता पिता के संपर्क में आकर या एक समय बाद वह किसी गुरुकुल में अपने गुरु के संपर्क में आकर शिक्षा ग्रहण करता था। इसके बाद वह गृहस्थ आश्रम मे प्रवेश करता था। यहां बालक अपने माता - पिता या अपने गुरु के, या अपने से ज्येष्ठ जनों की आज्ञानुसार दो परिवारों की आपसी सहमति से विवाह बंधन में बंधता हैं। गृहस्थ आश्रम से वह एक समय बाद वानप्रस्थ में तथा फिर सन्यास आश्रम की ओर जाता हैं। यह व्यवस्था मनुष्य को अनुशासित करने हेतु बनाई गई थी। परंतु आज कल विवाह की महत्ता पूर्णरूपेण समाप्त हो गई हैं। आज कल तो युवा पीढ़ी शादी को एक संस्कार नहीं बल्कि आवश्यकत पूर्ति का एक माध्यम मानती हैं। इनके लिए शादी, दो आत्माओं का मिलन नहीं। दो लोगों के बीच का समझौता हैं। जहां माता पिता की राय तो मायने ही नहीं रखती हैं। सबसे पहले वे अपनी पसंद देखते हैं। फिर लिव इन में रहकर सामने वाले को जानने का प्रयास करते हैं। और वह प्रयास इतना अधिक अपनी सीमा तोड़ देता हैं। कि एक दिन उनके पास इस रिश्ते में सुरक्षित रखने जैसा कुछ शेष नहीं रहता हैं। शादी से पूर्व में जो प्रेम पति पत्नी के बीच में अपनी पराकाष्ठाको प्राप्त करते हुए उनके जीवन में प्रेम की डोर को और मजबूत बनाता हैं। उनके जीवन में नए स्वप्न सजाता हैं। दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित होकर एक नया अध्याय रचते हैं। उसी पवित्रता को लिव इन रिलेशन वाले काम वासना से पूरा करते हैं। यहां न प्रेम होता हैं। न ही समर्पण यहां मात्र शारीरिक, मानसिक और आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती हैं। यहां। रिश्तों का नग्न रूप देखने को मिलता हैं। समाज, माता पिता मां मर्याद सबका उल्लंघन कर बेशर्मी से जीवन को नर्क करते हैं।
विवाह का सामाजिक महत्व
विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं होता, बल्कि यह दो परिवारों, दो संस्कृतियों और दो सामाजिक धारणाओं का भी मिलन होता है। भारतीय समाज में विवाह को परिवार की स्थिरता और सामजिक सुरक्षा के रूप में देखा जाता है। शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक हैं, क्योंकि यह सामाजिक सुरक्षा और स्थिरता को कमजोर करता है।
लिविंग रिलेशनशिप में रहने वाले युगल अक्सर बिना किसी सामाजिक बंधन या प्रतिबद्धता के रहते हैं, जिससे सामाजिक ढांचे और परिवारिक संरचना पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे संबंधों में सुरक्षा की कमी होती है। और भविष्य में उत्पन्न होने वाले विवादों और समस्याओं का समाधान नहीं होता। यह आने वाले समाज को गलत संदेश देते हैं। हिंसा को बढ़ावा देते हैं। मनोविकार उत्पन्न करते हैं। मर्यादाओं का उल्लंघन करते हैं। हमारी संस्कृति और माता पिता के संस्कारों को धूमिल करते हैं। ये जोड़े माता पिता को समाज के सामने शर्मिंदा करते हैं। और इनका परिणाम ये होता हैं, कि ये लोग कभी भी विवाह के पायदान तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। ये स्वयं समाज द्वारा अस्वीकृत इस रिश्ते को निभाते हुए कई प्रकार की मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। इस तरह के जोड़े कभी भी विश्वसनीय नहीं होते हैं। क्योंकि जो रिश्ता दिल से नहीं शरीर से जुड़ता हैं वो कभी दूर तक नहीं चलता हैं।
पारिवारिक संरचना और जिम्मेदारियाँ
भारतीय समाज में परिवार को एक महत्वपूर्ण इकाई माना जाता है। परिवार केवल रक्त संबंधों पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह भावनात्मक और सामाजिक समर्थन का एक मजबूत स्तंभ होता है। शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक हैं, क्योंकि यह पारिवारिक संरचना को कमजोर करता है और सामाजिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करता है। इनके भीतर कभी पारिवारिक स्नेह नहीं होता हैं। ये लोग स्वकेंद्रित प्रवृति के होते हैं। वास्तव में तो इनके भीतर अपने लिव इन पार्टनर के प्रति भी प्रेम नहीं होता हैं। दोनों ओर से ये पार्टनर एक पुल की तरह होते हैं। जिसे मंजिल तक पहुंचने के लिए किसी जी सूरत में पार करना ही होता हैं।
लिविंग रिलेशनशिप में रहने वाले युगल अक्सर परिवार की पारंपरिक जिम्मेदारियों और अपेक्षाओं से दूर हो जाते हैं। वे परिवार के बुजुर्गों और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी नहीं लेते, जिससे पारिवारिक संतुलन बिगड़ता है। इसके अलावा, ऐसे संबंधों में किसी भी प्रकार की कानूनी और आर्थिक सुरक्षा की कमी होती है। कई बार तो इनके स्वयं के लौटने के रास्ते नहीं होते हैं। आज भी हमारा समाज इन्हें हेय दृष्टि से देखता हैं।
नैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण
भारतीय समाज में नैतिकता और धर्म का विशेष स्थान है। विवाह को धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक हैं, क्योंकि यह हमारे धार्मिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है।
धार्मिक ग्रंथों और पवित्र पुस्तकों में विवाह को एक पवित्र बंधन माना गया है। यहां तक कि विभिन्न धार्मिक समुदायों में विवाह के लिए विशेष अनुष्ठानों और संस्कारों का पालन किया जाता है। लिविंग रिलेशनशिप में रहने वाले युगल इन धार्मिक और नैतिक मूल्यों को नजरअंदाज करते हैं, जिससे समाज में नैतिकता की गिरावट होती है। पाश्चात्य सभ्यता का यह अनुकरण हमारे धार्मिक व नैतिक मूल्यों को पैरों तले रौधकर इस पर अपना स्वप्न महल बनाते हैं।
सामाजिक स्वीकृति और समर्पण
विवाह एक ऐसा संबंध है जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं और समाज द्वारा इसे स्वीकृति मिलती है। शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक हैं, क्योंकि इसमें समर्पण और सामाजिक स्वीकृति की कमी होती है।
लिविंग रिलेशनशिप में रहने वाले युगल अक्सर एक-दूसरे के प्रति समर्पित नहीं होते और संबंधों में अस्थिरता बनी रहती है। इसके अलावा, समाज द्वारा ऐसे संबंधों को स्वीकृति नहीं मिलती, जिससे युगल को समाज में अपमान और आलोचना का सामना करना पड़ता है। न सिर्फ युगल को बल्कि इनके माता पिता को भी इस अपमानजनक दौर से गुजरना पड़ता हैं। उन्हें भी समाज के स्वरों का जवाब देना ही पड़ता है। इस तरह के युगल समाज से शनै: शनै: नैतिक मूल्यों, सभ्यता, संस्कार, संयम को समाप्त करने पर हैं।
लिविंग रिलेशनशिप के नकारात्मक परिणाम
लिविंग रिलेशनशिप के कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ तो एक भद्दा मजाक है ही, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप कई सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। जैसे कई बार माया पिता का अपनी संतान से विश्वास समाप्त हो जाता हैं। संतान द्वारा अपने माता पिता का अपमान करना। उनके संस्कारों का मजाक बनाना, जन्म के रिश्तों को भूलकर उन्हें अपमानित कर किसी स्वार्थपरक रिश्ते में बंधना, माता पिता के स्नेह को छोड़ कर छल, धोखा, शारीरिक मानसिक शोषण करवाना इत्यादि। यहां तक कि आज तो यह भी देखने में आता हैं कि इनके परिणाम मृत्यु तक पहुंच रहे हैं। एक लड़की अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु एक स्वार्थी रिश्ते में बंधती हैं। फिर एक समय पश्चात उसे पता चलता हैं कि इन अनैतिक गतिविधियों से उसे शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना मिल रही हैं। तब वह इस खोखले रिश्ते को समाज में स्थापित करने हेतु आवाज उठाना चाहती हैं। परंतु तब तक बहुत देर हो जाती हैं। और वह लड़का जो अब तक हर प्रकार अपनी जरूरतों को पूरा कर रहा हैं अचानक से वह उसे अपने जीवन में नहीं लेना चाहता हैं। और फिर इसका नतीजा अंतर द्वंद उत्पन्न करता हैं। जो बढ़ते बढ़ते हिंसा कटूप ले लेता हैं। और एक दिन इसका अंत लड़की मृत्यु के साथ होता हैं। वाह भी बेरहमी से किए गए कत्ल के रूप में। यह एक भयावह हकीकत हैं। जो आजकल बहुचर्चित हैं।
अस्थिरता और अनिश्चितता
लिविंग रिलेशनशिप में अक्सर अस्थिरता और अनिश्चितता होती है। युगल बिना किसी कानूनी या सामाजिक बंधन के साथ रहते हैं, जिससे संबंधों में विश्वास और सुरक्षा की कमी होती है। ऐसे संबंधों में किसी भी समय टूटने की संभावना अधिक होती है, जिससे दोनों पक्षों को मानसिक और भावनात्मक आघात होता है। जब समाज में इस तरह के गैरकानूनी, बेशर्म, अनैतिक संबंध को हमारे ही समाज के कुछ एक मुठ्ठी भर लोग स्वीकार कर लेते हैं, तो ऐसे में ये लोगों को पनाह मिल जाती हैं। और ये लिव इन इनके लिए एक प्रकार से आवश्यकताओं को पूर्ति करने का एक व्यापार सा बन जाता हैं। और एक के बाद एक कई जगहों पर एक साथ कई लोगों को धोखा देते हैं। और जब ये लोग लिव इन में रहकर एक दूसरे को भली भांति जान लेते हैं तो फिर स्वयं अपने स्थिर जीवन में एक दूसरे को नहीं अपनाते हैं। इन लोगों के व्यवहार में स्थिरता नहीं हैं। ये अवसरवादी व्यवहार के होते हैं।
सामाजिक अस्वीकृति
लिविंग रिलेशनशिप को भारतीय समाज में स्वीकार्यता नहीं मिलती। ऐसे संबंधों को समाज द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है। और युगल को समाज में अपमान और आलोचना का सामना करना पड़ता है। यह सामाजिक अस्वीकृति युगल के आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। ऐसे लोग स्वयं को समाज से हटकर समझते हैं। वास्तव में ये लोग समाज से तिरस्कृत ही होते हैं। सार्वजनिक समारोहों में इन्हें पृथक कर दिया जाता हैं। इनके प्रति लोगों में हीन भावना का भाव होता हैं। ये लोग समाज के लिए एक कलंक की भांति होते हैं। यहां तक कि उनकी संगति से अपने बच्चों को दूर रहने को कहा जाता हैं। क्योंकि ये लोग सामाजिक मूल्यों व व्यवस्था का तिरस्कार करते हैं। तो समाज इनका तिरस्कार करता हैं।
पारिवारिक विवाद
लिविंग रिलेशनशिप के परिणामस्वरूप पारिवारिक विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। परिवार के बुजुर्ग और परिजन ऐसे संबंधों को स्वीकार नहीं करते, जिससे परिवार में तनाव और मतभेद उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा, बच्चों की परवरिश और शिक्षा पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहां बड़े बुजुर्गों का अपमान होता हैं। उनके मान सम्मान में भी कमी आती हैं। तथा ऐसे लोग परिवार से दूर होकर स्वयं को स्वतंत्र मानते हैं। जो वास्तव में व्यक्तिगत दृष्टि के चलते एक प्रकार की असुरक्षा हैं।
समाधान और जागरूकता
शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक हैं, लेकिन इसका समाधान भी संभव है। इसके लिए समाज में जागरूकता और शिक्षा की आवश्यकता है। हमें अपने युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और मूल्यों के प्रति जागरूक करना होगा और उन्हें विवाह के महत्व को समझाना होगा। बच्चों पर बचपन से ही संस्कारों और संस्कृति के निर्वहन की जिम्मेदारी देना आवश्यक हैं। उनके साथ पर्याप्त समय बिताना जरूरी हैं। उम्र के अनुसार बदलते व्यवहार, बदलती आदतों, शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों पर चर्चा करना तथा समाज के ज्वलंत मुद्दों पर बच्चों की राय जानना तथा उनके साथ सही गलत पर चर्चा करना, अपने पारिवारिक मूल्यों के संबंध में बताना, तथा सामाजिक मूल्यों और समाज के प्रति हमारे द्वारा किए गए आचरण का समाज और तथा समाज की प्रतिक्रिया का हमरे जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करना अति आवश्यक होता हैं। उनकी सही काम के लिए प्रशंसा करना तथा गलत आचरण के लिए समय रहते डांटना अति आवश्यक हैं। अपने अपने स्तर पर सामाजिक जागरूकता लानी चाहिए।
शिक्षा और परामर्श
युवाओं को विवाह के महत्व और लिविंग रिलेशनशिप के नकारात्मक परिणामों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में विशेष कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन किया जा सकता है। इसके अलावा, परामर्श केंद्रों में युवाओं को विवाह पूर्व परामर्श और मार्गदर्शन प्रदान किया जा सकता है। स्कूल कॉलेज में समय समय पर परामर्श दिया जाना चाहिए। परामर्श दाता को बच्चों के हर सवाल का उत्तर देना चाहिए। बच्चों द्वारा सवाल पूछे जाने पर उन्हें यथोपयोगी उत्तर देना चाहिए।बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जानी चाहिए।
परिवार का समर्थन
परिवार का समर्थन और मार्गदर्शन युवाओं के लिए महत्वपूर्ण है। परिवार को युवाओं के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए और उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए। परिवार के बुजुर्गों को अपने अनुभवों और ज्ञान को साझा करना चाहिए और युवाओं को विवाह के महत्व को समझाना चाहिए। परिवार का वातावरण सदैव खुशनुमा होना चाहिए। जब एक परिवार मुख्य रूप से माता पिता जब बच्चे के सामने एक स्वस्थ वातावरण रखेंगे। तो बच्चे स्वतः सीख जायेंगे। परिवार का समर्थन अति आवश्यक हैं। परिवार जी वाह प्रथम पायदान होना हैं। जहां से बच्चा अपनी यात्रा शुरू करते हैं। अतः परिवार का योगदान महत्वपूर्ण है। आज हमारे समाज में संयुक्त परिवार का महत्व खत्म सा होता जा रहा है । परिवार संयुक्त से एकल होते जा रहे हैं। जहां बच्चों को एकांकी पन मिलता है। परिवार में सभी नौकरी वाले होते हैं। तो बच्चों समय नहीं मिल पाता हैं। उनमें कई प्रकार के मानसिक विकार उत्तपन्न हो जाते हैं। फिर वे अपनी मानसिक संतुष्टि को बाहर से पूरा करने की सोचते है। इस स्थिति में उन्हें खुश करें वाला संगी साथी जो पहले मिल जाता है। जो उन्हें समय दे, उनसे बातें करें, उन्हें समझे यहीं सब के चलते वह अपना एक अलग समाज गठित कर लेता हैं। उसके लिए वही अपना समाज होता हैं। वहीं से वह व्यवहार और अन्य बातें सीखता हैं। उसी का आचरण भी करता हैं।
सामाजिक जागरूकता
समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों और संस्थाओं को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। विवाह के महत्व और लिविंग रिलेशनशिप के नकारात्मक परिणामों के बारे में समाज में जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों का आयोजन किया जा सकता है। सामाजिक घटनाओं के प्रति सामाजिक जागरूकता लाना समाज के पढ़े लिखे प्रत्येक व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। समाज हम सबका हैं। समाज में होने वाली प्रत्येक घटना का सीधा या घूमकर, अच्छा या बुरा असर हम सभी पर पड़ता है। तो यह हम सभी की जिम्मेदारी बनती हैं कि हम समाझिक जागरूकता लाएं।
निष्कर्ष
शादी से पहले लिविंग रिलेशनशिप में रहना हमारी संस्कृति और समाज के साथ एक भद्दा मजाक हैं, क्योंकि यह हमारे पारंपरिक मूल्यों, सामाजिक संरचना, नैतिकता और धार्मिक धारणाओं के खिलाफ है। भारतीय समाज में विवाह को एक महत्वपूर्ण संस्कार और सामाजिक सुरक्षा के रूप में माना जाता है। इसलिए, हमें अपने युवा पीढ़ी को विवाह के महत्व और लिविंग रिलेशनशिप के नकारात्मक परिणामों के बारे में शिक्षित करना चाहिए और समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए। इससे हमारे समाज में स्थिरता, सुरक्षा और समर्पण का माहौल बनेगा और हमारी संस्कृति और संस्कार वह धरोहर हैं। जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती हैं। इसकी शुरुआत ऐसे भी की जा सकती हैं। आप स्वयं को बदलो समाज स्वत: बदल जायेगा।
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