नागार्जुन
हिंदी और मैथिली के अप्रतिम लेखक व कवि तथा अनेकों भाषाओं के ज्ञाता और प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन एक लब्धप्रतिष्ठित विद्वान व रचनाकार कहे जाते हैं।
जीवन परिचय
नागार्जुन का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन 30 जून 1911 को मधुबनी जिले के सतलखा में हुआ था। परंतु सतलखा उनका ननिहाल था। वैसे नागार्जुन का पैतृक गांव बिहार के दरभंगा जिले के तरौनी था। इनके पिता का नाम गोकुल मिश्र तथा माता का नाम उमा देवी था। नागार्जुन अपने माता पिता की पांचवीं संतान थे। इनसे पहले गोकुल मिश्र व उमा देवी की चार संताने असमय ही चल बसी थी। संतानों को खोने के बाद गोकुल मिश्र व उमा देवी शिवजी की भक्ति में लग गए। वैद्यनाथ धाम (देवघर) जाकर उन्होंने यथाशक्ति पूजा अर्चना, उपासना की। वहां से लौटकर जब गोकुल मिश्र, उमा देवी के घर पांचवी संतान हुई, तो बहुत समय तक इन्होंने पांचवी संतान को ठक्कन कहा। क्योंकि कहीं ना कहीं इनके मन में इस पांचवी संतान को लेकर भी भय था, कि कहीं यह भी पहले की चार संतानों की ही तरह हमें छोड़कर ना चला जाए। बहुत समय पश्चात् गोकुल मिश्र और उमा देवी ने ठक्कन कहे जाने वाली अपनी संतान का नामकरण किया। अपनी संतान को बाबा वैद्यनाथ का आशीर्वाद इस बालक का नाम वैद्यनाथ मिश्र रखा। आगे चलकर यही बालक कवि "नागार्जुन" के नाम से विख्यात हुआ। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि नागार्जुन का बचपन का नाम वैद्यनाथ मिश्र था। नागार्जुन ने अल्पायु में ही अपनी माता जी को खो दिया था। बिना मां के पुत्र को गोकुल मिश्र अपने साथ अपने संबंधियों के यहां इस गांव से उस गांव घूमाया करते थे। तो इसी कारण घुमक्कड़ी की आदत इनमें बचपन से ही पड़ गई थी। पारिवारिक परिस्थितियों के चलते नागार्जुन के आरंभिक शिक्षा लघु सिद्धांत कौमुदी और अमरकोश के सहारे हुई थी। उस समय मिथिलांचल के धनी निर्धन मेधावी विद्यार्थियों को अपने आश्रय में ले लिया करते थे। तो नागार्जुन ने भी अपनी प्रारंभिक शिक्षा इसी प्रकार से प्रारंभ की। लेकिन बाद में नागार्जुन ने बनारस जाकर संस्कृत की पढ़ाई की। वहां इन पर आर्य समाज का प्रभाव पड़ा, तथा बाद में बौद्ध दर्शन की ओर इनका झुकाव होने लगा। कुछ समय बाद बनारस से निकलकर कोलकाता और कोलकाता के बाद दक्षिण भारत घूमते हुए लंका के विद्यालंकार परिवेण में जाकर नागार्जुन ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। कहा जाता है कि यही उन्होंने नागार्जुन नाम ग्रहण किया था। लंका के विख्यात बौद्धिक शिक्षण संस्था में रहने के दौरान इन्होंने बौद्ध दर्शन का ही ज्ञान प्राप्त नहीं किया, बल्कि राजनीति में भी इन्होंने अपनी रुचि दिखाई। और 1938 में लंका से वापस लौट आए। और यहीं से इनका वास्तविक घुमक्कड़ जीवन प्रारंभ हुआ। साहित्य रचना के साथ-साथ ही नागार्जुन राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने लगे। स्वामी सहजानंद से प्रभावित होकर नागार्जुन में बिहार में हो रहे किसान आंदोलन में भाग लिया। जहां इन्हें जेल भी जाना पड़ा। फिर चंपारण किसान आंदोलन और 1974 के जेपी आंदोलन में भी भाग लिया। कहा जाता है कि 1940 में नागार्जुन को दमा रोग हो गया था। और इसके बाद वे आजीवन समय-समय पर रोग से पीड़ित होते रहे। अपनी घुमक्कड़ प्रवृति के कारण वे तथा कभी भी अपना गृहस्थ जीवन सुखपूर्वक नहीं जी सके। और 5 नवंबर 1998 को कवि नागार्जुन इस संसार को अलविदा कह गए। उनका देहांत हो गया था।
लेखन कार्य व रचनाएं
नागार्जुन ने मैथिली भाषा में "यात्री" उपनाम से रचनाएं की। तथा जब वे काशी में रहे तो वहां उन्होंने "वैदेह" उपनाम से कविताएं लिखी। तथा 1941 के बाद इन्होंने निर्णय लिया कि वे अब नागार्जुन नाम के अतिरिक्त अन्य किसी नाम से नहीं लिखेंगे।
नागार्जुन की पहली रचना मैथिली में थी। वो एक कविता थी। जो कि 1929 में लहेरियासराय दरभंगा से प्रकाशित मिथिला नामक पत्रिका में छपी।और उनकी हिन्दी भाषा में लिखी पहली रचना थी, "राम के प्रति" जो 1934 में लाहौर से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक विश्वबन्धु में छपी थी।
नागार्जुन सन् 1929 से 1927 तक लगभग अड़सठ (68) वर्ष साहित्य क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे। उन्होंने कविता, उपन्यास, कहानी संस्मरण, यात्रा - वृतांत, निबन्ध, बाल साहित्य आदि सभी विधाओं में कार्य किया।
कविता संग्रह
युगधारा
सतरंगी पंखों वाली
प्यासी पथराई आंखें
तालाब की मछलियां
तुमने कहा था
खिचड़ी विप्लव देखा हमने
हजार हजार बाहों वाली
रत्नगर्भ
पुरानी जूतियां का कोरस
ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या! आखिर ऐसा क्या कह दिया हमने
इस गुब्बारे की छाया में
भूल जाओ पुराने सपने
अपने खेत में
प्रबंध काव्य
भस्मांकुर
भूमिजा
उपन्यास
रतिनाथ की चाची
बलचनामा
नई पौध
बाबा बटेसरनाथ
वरुण के बेटे
दुखमोचन
कुंभीपाक
हीरक जयंती
उग्रतारा
जमनिया का बाबा
गरीबदास
संस्मरण
एक व्यक्ति एक युग
कहानी संग्रह
आसमान में चंदा तेरे
आलेख संग्रह
अन्नहीनम्
क्रियाहीनम्
बमभोलेनाथ
बाल साहित्य
कथा मंजरी भाग-1
कथा मंजरी भाग - 2
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
विद्यापति की कहानियां
मैथिली रचनाएं
चित्र (कविता संग्रह)
पत्रहीन नग्न गाछ
पका है यह कटहल
नवतुरिया
बांग्ला रचनाएं
मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा।
पुरस्कार
नागार्जुन को साहित्य अकादमी पुरस्कार 1960 में,
भारत भारती सम्मान,
मैथिली शरण गुप्त सम्मान,
राजेंद्र शिखर सम्मान 1994 में तथा
साहित्य अकादमी की सर्वोच्च फेलोशिप से राहुल सांकृत्यायन सम्मान से सम्मानित किया गया।
काव्यगत विशेषताएं
नागार्जुन के काव्य में हमें समसामयिक, राजनीतिक व सामाजिक समस्याओं का चित्रण, अत्याचार, पीड़ितों के प्रति संवेदना, सहानुभूति, निम्न व दलित वर्ग इनके विषय के प्रमुख विषय रहे हैं। नागार्जुन ने अपने काव्य में जनसामान्य की भावनाओं को व्यक्त किया है। जहां इनके काव्य में देश प्रेम की भावना मुखर होती है। वहीं दूसरी ओर श्रमिकों के प्रति सहानुभूति तथा सामाजिक परिवेश में व्याप्त अनीति के प्रति व्यंग्य करने में कोई संकोच नहीं दिखाई देता है। कवि नागार्जुन सीधी चोट करने वाले व्यंग्यकार है। कवि नागार्जुन धरती के, राष्ट्र प्रेम के, श्रम के गीत गाने वाले कवि थे।कठिन से कठिन विषयों पर भी नागार्जुन ने अपनी शब्दावली में सहज सरल व प्रभावशाली अभिव्यक्ति की है। नागार्जुन के जीवन के धरातल से लेकर बुद्धिमता की श्रेष्ठता तक के सभी चित्र व भाव वर्ण्य विषय रहे हैं। इनकी लेखनी कभी भी विवाद के दायरे में नहीं आयी।
भाषा शैली
नागार्जुन के भाषा अधिकांशतः जन सामान्य की बोलचाल वाली भाषा रही। कवि नागार्जुन की भाषा सरल, सहज, स्पष्ट, मार्मिक व प्रभावपूर्ण रही है। इनकी भाषा में तत्सम शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग देखने को मिलता है। कवि नागार्जुन ने तत्सम प्रधान खड़ी बोली के साथ-साथ अरबी, फारसी के शब्दों का प्रयोग भी भावानुसार किया है। आपने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। घुमक्कड़ी और अक्खड़ स्वभाव के कारण इनकी भाषा में स्थानीय बोलियों के शब्दों का प्रयोग होता चला जाता है। इनके काव्य में रूपक, उपमा, अनुप्रास, व अतिशयोक्ति अलंकारों का बड़ा ही उत्कृष्ट प्रयोग देखने को मिलता है। नागार्जुन ने छंदबद्ध व छंदमुक्त दोनों प्रकार की कविताएं लिखी हैं। नागार्जुन की भाषा चित्रात्मक प्रतीकात्मक तथा व्यंग्य प्रधान है।


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