विशाल गगन में उड़ान हो भरती , कितने छोटे तुम्हारे पर। नन्हीं -नन्हीं चिड़िया तुम तो , छोटे -छोटे दाने चुगती हो। फिर भला किस तरह अकेले , दिन भर उड़ती रहती हो। मैं तो माँ की बिन ऊँगली थामे , एक कदम ना चल पाती हूँ। और तुम दिन भर सैर करके , साँझ ढले घोसलें पर आ जाती हो।
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