सच्चे मित्र

सच्चे मित्र 


SACHCHE MITR BAL KAHANIYAN
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  एक राजा था।  उसका एक बहुत ही विशाल और सुन्दर महल था। महल में ही एक ओर अति सुन्दर फूलों का बगीचा था। और बगीचे के निकट ही पहाड़ी पर एक शीतल जल का झरना बहता था जो कि नदी में जाकर मिल जाता था।  राजा के पास  हाथी, घोड़े व बहुत सारे सैनिक थे।  उस महल में राजा अपनी रानी व दो बच्चों के साथ रहता था। राजा - रानी का एक बेटा शिवेन्द्र और बेटी शिवानी थी। वे दोनों अभी बहुत छोटे थे। और दोनों को ही पशु - पक्षियों से बेहद प्रेम था। दोनों बच्चों की ख़ुशी के लिए राजा ने महल के बगीचे में कई पशु - पक्षी पाल रखे थे। जैसे - मोर, तोता, कोयल, खरगोश, हिरन इत्यादि। दोनों बच्चे अधिकांश बगीचे में जाकर पशु - पक्षियों के साथ खेलकर अपना मनोरंजन करते थे। कई बार राजा - रानी भी बगीचे में पशु - पक्षियों के मध्य आकर अपना समय व्यतीत किया करते थे। शुरुआत में सभी पशु - पक्षी छोटे थे।  परन्तु जैसे - जैसे समय बीतता गया।  वे भी अब बड़े हो गए थे।
                                 कोयल प्रतिदिन सुबह और दोपहर को अपने मीठे - मीठे स्वर से सबका मन मोह लेती। तो आसमान में बादलों को देखते ही मोर अपने सुन्दर पंख फैलाकर नाचने लगता। कभी हिरन पूरे बगीचे में कूद - कूद कर खेलता रहता। और हरी - हरी घास में बैठा नन्हा - सा सफ़ेद खरगोश  बगीचे की शोभा बढ़ाता। और तोता दिन भर सबकी बातों की नकल करके सबको खुश रखता था।
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  सभी पशु - पक्षी भी हिलमिल कर रहते थे। पर कही अंदर ही अंदर मोर को अपने खूबसूरत पंखों व अपने नृत्य पर घमण्ड था।  वह अधिकांश सबसे दूर - दूर रहा करता था। बगीचे में सबके सामने इतराकर चला करता था। कोयल, तोता, हिरन, और खरगोश ने कई बार मोर को समझाया कि हम सब मित्र हैं। हम सब में ही कुछ ना कुछ विशेष हैं।








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तोते ने कहा -  मोर तुम जानते हो कि कोयल का स्वर कितना मधुर हैं। वह अपने मधुर स्वर से सबका मन मोह लेती हैं।
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हिरन भी तुम्हारी ही तरह सुन्दर दिखता हैं और उसकी विशेषता हैं कि वह बहुत फुर्तीला हैं।  खरगोश अति कोमल और चाँद की तरह श्वेत और शान्त प्रवृति का हैं।






हिरन ने कहा - मित्र तुम अपनी खूबसूरती पर इतराते हो पर क्या तुम ये नहीं देखते कि तोता भी तो तुम्हारी ही तरह खूबसूरत हैं और साथ ही वो तो तुमसे भी अच्छा इंसानों की तरह बात भी करता हैं। पर वो किसी को भी अपनी विशेषता से नीचा नहीं दिखाता। फिर तुम क्यों हम मित्रों को छोड़कर अलग - अलग रहना चाहते हों।



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कोयल ने कहा - मोर हम सब मानते हैं तुम बहुत सुन्दर हो; पर राजा - रानी तो हम सब में कोई भेदभाव नहीं करते हैं ना,वे तो हम सब को समान दृष्टि से देखते हैं। हम सब का पालन - पोषण भी एक समान तरीके से करते हैं। तो तुम क्यों स्वयं को सबसे उच्च स्थान पर रखते हो।





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खरगोश ने कहा - मोर, मित्र हम सब राजा जी के इस सुन्दर व सुविधासम्पन्न महल में आजाद रहते हैं। यह हमारा सौभाग्य हैं। हमें तो सदैव मिलकर रहना चाहिए। हमें तुम्हारी सुंदरता से कोई ईर्ष्या नहीं हैं। तुम भी अपने मन में कोई अहंकार मत रखो।
पर मोर जिद्दी स्वाभाव का था।  वह किसी की बात नहीं मानता हैं। उल्टा सब से नाराज हो जाता हैं। और कहने लगता हैं कि -

                   
                                                     
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मोर ने कहा -  मुझे पता हैं कि तुम सब मेरी सुंदरता से जलते हो। क्योंकि तुम सब मेरी तरह सुन्दर नहीं हो।
 कोयल की तरह मेरी आवाज भी अच्छी हैं पर मैं कोयल की तरह काली नहीं हूँ। और ना ही कोयल मेरी तरह सुन्दर रंगो वाली, इसलिए मेरे सामने इसकी तारीफ मत करो। और यह तोता सारा दिन सबकी नकल करता रहता हैं। इसका रंग अवश्य अच्छा हैं पर ये मेरी तरह अपने पंख फैलाकर नृत्य नहीं कर सकता हैं। इसलिए ये भी मेरी तरह श्रेष्ठ नहीं हैं . 
 यदि तुम हिरन के बारे में सुनना चाहो तो सुनो हिरण की उछल - कूद  देखकर सब लोग उतने खुश नहीं होते हैं। जितने कि मेरा नृत्य देखकर खुश होते हैं। और ना ही इसकी पूँछ मेरी तरह लम्बी, इसलिए इसउसमें की तुलना मेरे से नहीं किया करो।
                     और खरगोश में तो पहले से ही कोई रंग नहीं हैं। वह तो कभी भी मेरी बराबरी नहीं कर सकता हैं। और ना  ही उसमें कुछ विशेष हैं।
                      मैं तुम सब में श्रेष्ठ पक्षी हूँ। सुन्दर हूँ। सुन्दर नृत्य भी करता हूँ। सभी लोग मेरी प्रशंसा करते    हैं। और मुझे तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं हैं। ये कहकर मोर वहां से चला जाता हैं।
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सभी मित्र उसके इस व्यवहार से आहत हो जाते हैं। और कहते हैं कि एक दिन इसे अवश्य ही अपनी गलतियों पर पाश्चाताप होगा। अगले ही दिन से मोर सबसे अलग रहने लगा। यदि सब मित्र उससे बात भी करना चाहते तो वह उनकी बात का जवाब नहीं देता। और धीरे - धीरे सभी ने उससे बात करना,खेलना और रहना छोड़ दिया।                   





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एक दिन बात की बात हैं। बहुत ही प्यारा मौसम था। सभी पशु - पक्षी खुश थे, मस्त थे। हल्की - हल्की बारिश हो रही थी। और ऐसा मौसम देख कर मोर मस्त होकर नृत्य करने लगता हैं और बारिश की रिमझिम बूंदों के बीच मोर अपने सुन्दर पंख फैलाकर सभी को
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अपनी ओर आकर्षित कर लेता हैं। परन्तु थोड़ी देर मोर के  नृत्य का आनंद लेकर सभी लोग अपने -अपने कार्य करने लगते हैं। पर मोर कुछ मौसम में झूमता हुआ तो कुछ अपनी खूबसूरती के घमण्ड में चूर अन्य पशु - पक्षियों को देख इतराता हुआ नृत्य करता ही रहता हैं। और अपनी ही धुन में  नाचता हुआ बगीचे की तरफ पहुँच जाता हैं जिस तरफ झरना बहता हैं
।  तभी अचनाक से मोर का पैर फिसल जाता हैं,और वह पहाड़ी से नीचे की और गिरने लगता हैं। तभी मोर गिरता हुआ देखकर हिरन दौड़कर जाता हैं और मोर के पैर को अपने मुँह से पकड़कर गिरने से बचाता हैं। ये सब देख कोयल शोर मचाने लगती हैं कोयल का शोर सुनकर खरगोश के साथ तोता भी वहां जाता हैं और सभी के कहने पर तेजी से उड़ता हुआ महल के अंदर जाता हैं और राजा जी को साडी बात बताता हैं।
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तोता कहता हैं - कि राजा जी जल्दी चलिए और कृपया मोर को बचा लीजिये। मोर नृत्य करते हुए बगीचे के पास के झरने की ओर चला गया था और उसका पैर फिसल गया हैं। और हिरन ने बड़ी मुश्किल से उसे नीचे गिरने से रोका हैं। यदि जल्द ही कुछ न किया गया तो हिरन उसे देर तक नहीं रोक सकेंगा , और मोर उचांई से गिर कर घायल हो जाएंगा। इसलिए आप सब जल्दी चलिए।
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ये सब सुनकर राजा और कुछ सिपाही दौड़े - दौड़े वहां पहुँचते हैं और मोर को गिरने से बचा लेते हैं। जब मोर की तबियत थोड़ी ठीक होती हैं। तभी एक बन्दर पेड़ से कूदकर मोर के पास आता हैं। और कहता हैं कि मोर क्या तुम मुझे जानते हो। लेकिन तुम सबको हूँ। क्योंकि मैं अधिकाँश इसी बगीचे के किसी ना किसी पेड़ पर ही रहता हूँ। और अक्सर तुम मित्रों की बाते सुनता हूँ। तुम्हारे खेल, तुम्हारी लड़ाई और तुम्हारा अन्य पशु - पक्षियों के प्रति अहंकार पूर्ण व्यवहार सब देखा हैं मैंने।शायद तुम्हें मेरी बातें अभी अच्छी नहीं लग रही हो परन्तु सच यही हैं कि तुम्हारे सभी मित्र तोता, कोयल, खरगोश, हिरन बहुत अच्छे और सच्चे हैं। और उनके मन में तुम्हारे लिए कोई ईर्ष्या भाव नहीं हैं। तुम्हें पता हैं यदि आज वे तुमसे चिढ़ते तो तुम्हें कभी भी ना बचाते।  लेकिन उन्होंने तुम्हारी जान बचाई। क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें अपना व्यवहार बदलना चाहिए।  सबसे मिलजुल कर  चाहिए। अगर आज हिरन तुम्हें गिरने से नहीं रोकता, और तोता अंदर जाकर सबको बुलाकर नहीं लता तो तुम अपनी जान नहीं बचा पाते और वैसे भी अब तुम्हे सही - गलत की परख हो जानी चाहिए। इसलिए मेरी बात मानो और अपने दोस्तों से अपने हर दुर्व्यवहार की क्षमा मांगकर उनके साथ प्रेम से रहो। क्योंकि एकता में ही बल हैं।
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बन्दर की बातें सुनकर मोर की आँखों में आंसू आ जाते हैं और वह कहता हैं, धन्यवाद मित्र जो तुमने मुझे मेरी गलतियां बताई और मुझे समझाया,अब मेरी समझ में सब आ गया हैं। और सबसे पहले मैं उन सभी से अपनी हर गलती की माफ़ी मांगूगा। यह कहकर मोर चला जाता हैं और बन्दर वापस पेड़ पर जाकर उन सबको देखता हैं। मोर जाकर सबको बुलाता हैं और उन सबसे अपने दुर्व्यवहार की माफ़ी  मांगता हैं।  और अपनी जान बचाने के लिए सबका धन्यवाद करता हैं। और सबके साथ अच्छा दोस्त बनकर रहने की बात कही। सभी मित्र  मित्रता को सहर्ष स्वीकार करते हैं। तथा साथ मोर से उसके इस हृदय परिवर्तन की वजह पूछते हैं। इस पर मोर कहता हैं कि वैसे तो मैं आप अब की अच्छाई और दोस्ती को समझ गया हूँ, पर मुझे आप  सबसे बात करने के लिए बन्दर ने समझाया। जो हमारे इस बगीचे के फल खाने यहाँ आता रहता हैं। और वो अभी भी ऊपर पेड़ पर बैठा हैं। सभी मित्र पेड़ पर बैठे बन्दर को नीचे बुलाते हैं और उसका आभार प्रकट करते हुए कहते हैं कि तुम हमारे दोस्त बनोगे। और बन्दर भी ख़ुशी से उनकी दोस्ती का आमंत्रण स्वीकार करता हैं। और सभी मित्र हँसी - ख़ुशी साथ - साथ रहते हैं। शिक्षा -   इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अपनी किसी विशेषता पर घमण्ड नहीं करना चाहिए। तथा साथ ही एक अच्छा मित्र वहीँ होता हैं जो मुसीबत के समय काम आये।                  









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