सागर की उर्मि (भाग -6)

                                                                 (6 )

         और घर जाकर वह अकेले कमरे के किसी कोने में बैठकर सिसकने लगती हैं। आज उर्मि बहुत उदास थी। उसकी सारी रात इसी उधेड़-बुन में गुजर जाती हैं। कि कल सुबह वह सागर की बात मानकर जाएँ या उसे मना कर दे। लेकिन दोस्ती का मान रखते हुए वह अंत में सुबह सागर से मिलने का निर्णय करती हैं। और वहीं दूसरी ओर सागर को उर्मि की नाराजगी से अपने अनकहे इजहार का जवाब मिल जाता हैं। पर कहीं न कहीं सागर को भी उर्मि की नाराजगी से तकलीफ होती हैं। जहाँ एक और उर्मि अपनी दोस्ती और शायद दिल में पल रहे एक अनजाने से भाव को टूटता देख रही थी । वहीं सागर को अब बस कल की सुबह होने का इंतजार था। वह बेकल था, बैचेन था, उर्मि से अपने दिल की बात कहने को। उर्मि को टूटते सपने की तड़प नहीं सोने दे रही थी ,तो सागर को जिंदगी का सबसे बड़ा सपना पूरा होने की ख़ुशी में नींद नहीं आ रही थी। जागे दोनों थे। पर अलग - अलग भाव, अलग - अलग एहसास से।  

                      अगली सुबह उर्मि माँ मैं सागर से मिलने जा रही हूँ। कहकर चली जाती हैं। पर वहाँ जाकर देखती हैं। कि आज सागर अकेला हैं। 

उर्मि  -  आज अकेले आया हैं, तान्या साथ में नहीं आयी। 

सागर  -   लगता हैं तुम दोनों एक ही दिन में अच्छे दोस्त बन गए हों। नहीं ,वह नहीं आयी क्योंकि वह वापस चली गयी हैं। 

उर्मि  -  इतनी जल्दी। 

सागर  -  तान्या को छोड़ ना। तू बता आज तू इतनी उदास क्यों हैं ? 

इस पर उर्मि कुछ नहीं कहती, चुप ही रहती हैं। और अपने बचपन की, गाँव की, नई - पुरानी बातें कर हँसने लगती हैं। अब सागर को शरारत सूझती हैं वह उसे चिढ़ाने के लिए कहता हैं -

सागर  -  अच्छा उर्मि कुछ दिनों बाद मैं वापस शहर चला जाऊॅंगा। एक बात तो बता तू मुझे अपनी शादी में बुलाएंगी या नहीं। देख अब मैं बहुत व्यस्त हो गया हूँ।  अगर मुझे बुलाना हो तो कुछ हफ़्तों पहले ही निमंत्रण भेज देना, नहीं तो मैं आ नहीं पाऊॅंगा। 

उर्मि  -  जरूर भेज दूॅंगी। अब बहुत देर हो गयी हैं मुझे घर जाना हैं। और हाँ सागर शहर जाने से पहले यदि जरुरत समझे तो मुझे बता देना,मैं तुझसे मिलने आऊॅंगी।  

यह कहते हुए उर्मि मुड़कर जाने लगती हैं ,तभी -

सागर  -  उसी सड़क पर,उसी जगह पर, जहाँ खड़े होकर तू मेरे आने का इन्तजार कर रही थी। 

सागर की बात सुन उर्मि ठहर जाती हैं,और सागर की ओर देखते हुए -

उर्मि  -  तुझे कैसे पता। 

सागर  -  तू मेरे इन्तजार में इतनी खोई थी, कि मैं तेरे पास से आया और तूने मुझे देखा तक नहीं। क्यों उर्मि इतनी खोई थी तू । 

उर्मि  -  तेरी राह देखना तो जैसे मेरे जीवन का हिस्सा,मेरी दिनचर्या बन गयी थी। तेरी राह तकते तो पता ही नहीं चला कि  ना जाने कब सुबह से शाम हुई।और कब इतने साल बीत गए। 

सागर  -  और फिर भी आज मुझसे नाराज हैं। 

 उर्मि  -  सागर मैं तुझसे नाराज नहीं हूँ। बस इतना समझ गयी हूँ। कि अब हम बच्चे नहीं रहे, हम बड़े हो गये हैं। और इस बदलते समय के साथ हमारी सोच, हमारे ख्यालात, और शायद हमारे दोस्त भी बदल गए हैं। सागर अब मैं तेरी दोस्त के रूप में अच्छी नहीं लगती। तुझे अब अपने जैसे ही दोस्त बनाने चाहिए। 

सागर मंद - मंद मुस्कुराता हुआ उर्मि की ओर बढ़ता हैं, और उर्मि के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर कहता हैं -

सागर  - चल एक बात बता , तेरे नाम का अर्थ क्या  हैं ।   

  उर्मि  -  ये क्या बात हुई। 

सागर  -  जो पूछ रहा हूँ वो बता ना। 

उर्मि  -  लहर। 

सागर  -  और मेरे नाम का। 

उर्मि  - समंदर। 

सागर  -   अब बता लहर कहाँ होती हैं ?

उर्मि  -  सागर में,

सागर  -  और लहर बिना सागर ,

उर्मि  - अधूरा। 

इतना कहते ही उर्मि पलकें उठाकर सागर की ओर देखती हैं, और फिर पलकें झुकाती हुई मुड़ जाती हैं। तभी सागर उसका नाम लेते हुए कहता हैं -

सागर  -  उर्मि तू समझ गयी ना मैं क्या कहना चाहता हूँ। या अब भी मुझे कहना होगा कि मैं तुझसे प्यार करता हूॅं। और उर्मि हमेशा सागर के दिल में रहती हैं, और हमेशा रहेगी, लहरों के बिना सागर की कल्पना तक नहीं होती। उर्मि हमारे बचपन की दोस्ती, और तुम्हें याद करते - करते ना जाने कब तुमसे प्यार कर बैठा पता ही नहीं चला। और आज मैं सिर्फ अपनी बचपन की दोस्त से ही मिलने नहीं आया हूँ, बल्कि अपने प्यार का इजहार कर ये सागर अपनी लहर को अपने साथ ले जाने आया हैं। 

सागर की बातें सुनकर उर्मि की आँखें भर जाती हैं। और वह जैसे ही सागर से अपने दिल की बात कहने ही वाली होती हैं। कि तभी सागर उसके होठों पर अपनी अंगुली रख उसे चुप करा देता हैं। और कहता हैं -

सागर  -  कुछ कहने की जरूरत नहीं हैं उर्मि। मैं तेरी आँखों में वो प्यार देख सकता हूँ। जो तू मेरे इजहार के उत्तर में मुझसे कहने वाली हैं। और वैसे भी तेरे दिल की धड़कनें तभी से मेरे दिल की धड़कनों में शामिल हो गयी हैं, जब तू बेसुध होकर सड़क पर मेरी राह देख रही थी। अब तुझे मुझसे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं हैं। तुझे लग रहा हैं तू मेरे सामने खड़ी हैं, पर एक बार मेरे प्यार के एहसास को महसूस कर तझे पता चलेगा,तू मेरे सामने नहीं तू सागर की गहराइयों में हैं। इतना कह सागर उर्मि को अपनी बाहों में भर लेता हैं। और इस तरह उर्मि का बरसों का इन्तजार पूरा होता हैं। और फिर दोनों उस प्यार को एक दूसरे की आँखों में देखते हैं और महसूस करने लगते हैं। 

                                                                                           


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