( 5 )
आज उर्मि बहुत खुश थी। कहीं न कहीं आज उसका आधा - अधूरा इन्तजार ख़त्म हुआ। और उधर सागर भी हर समय बस अपने बचपन की बातें याद करता अपने साथियों से अपने गाँव की बातें करता रहता। वह आज भी अपने गाँव को भूला नहीं पाया था। वह बहुत जल्द ही उर्मि से मिलने गाँव जाने वाला था। लेकिन उर्मि को सताने के लिए उसने झूठ बोला ,कि वह अभी नहीं आ सकता। अब सागर की शहर में भी एक लड़की मित्र थी "तान्या "। जिसे वह अक्सर अपने गाँव की बातें, अपने बचपन के किस्से बताया करता था। वह हमेशा उससे कहती थी ,कि आज के दौर में भला कौन शहर आकर गाँव वापस जाने की बात करता हैं। तो वह उससे हमेशा कहता कि उसे जाना ही होगा। क्योंकि उसका गाँव और गाँव में उसका कोई हर दिन इन्तजार कर रहा हैं।
और उधर उर्मि सागर की साल भर तक ना आने की बात सुनकर भी उसका इन्तजार करती ,रोज उसके आने की राह तकती।
एक दिन सागर अचानक से अपनी एक बड़ी - सी गाड़ी में अपने परिवार के साथ और अपनी उस शहरी दोस्त तान्या साथ गाँव आता हैं। लेकिन जैसे ही वह गाँव के भीतर वाली सड़क में प्रवेश करता हैं ,तो क्या देखता हैं कि एक सुन्दर सी लड़की किसी का इन्तजार कर रही हैं। वह अपनी गाड़ी का शीशा नीचे करके देखता हैं ,और उर्मि को पहचान लेता हैं। लेकिन उर्मि प्रतिदिन की तरह बेसुध होकर राह पर टकटकी लगाए राह निहार रही होती हैं। उसका ध्यान सागर की ओर जाता ही नहीं। यह देख सागर मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ जाता हैं। सागर के चेहरे पर ये अद्भुत और प्यारी - सी मुस्कान देख तान्या पूछती हैं। क्या बात हैं सागर ,इस खूबसूरत - सी मुस्कान का राज , इस पर पंडित जी कहते हैं ,वर्षों बाद अपने घर आ रहा हैं ,अपनों से मिलने की ख़ुशी तो चेहरे पर खिलेगी ही। ,सच कहूॅं तो आज मैं भी बहुत खुश हूँ। हाँ बाबा सही कहा आपने,किसी अपने से मिलने की ही ख़ुशी हैं। जो होठों पर झलक गयी। ऊपर से तो सागर खुश था ,पर अंदर ही अंदर कई सवाल बन - बिखर रहे थे। सवालों की इसी कश्मकश के साथ वह घर पहुॅंचता हैं। और उसकी आँखों से उर्मि का राह तकते रहने का दृश्य ओझल ही नहीं होता हैं। और शाम होते ही वह उर्मि से मिलने उसके घर जाता हैं। वहाँ सभी सागर से मिलकर बहुत खुश होते हैं। बातों - बातों में वहाँ सागर को उसके मन में उठ रहे हर सवाल का जवाब मिल जाता हैं। अब तो वह बहुत खुश होता हैं। मानो उसे पल - भर में सारे जहाँ की खुशियाँ मिल गयी हो। वहाँ से जाते वक़्त वह उर्मि को वहीं बचपन वाली जगह झरने के पास मिलने को बुलाता हैं।
लेकिन यह क्या सागर उर्मि से मिलने तान्या के साथ आता हैं। सागर को किसी और के साथ हँसता ,बोलता देख उर्मि को अच्छा नहीं लगता हैं। वह सागर से थोड़ा नाराज हो जाती हैं। और मन ही मन सोचती हैं कि इतने साल बाद भी मुझसे मिलने अकेले नहीं आया। कितना कुछ कहना था ,कितना कुछ सुनना था। शायद सागर अब पहले जैसा नहीं रहा। वह सच में बदल गया हैं।
(तभी सागर और तान्या उर्मि के करीब आ जाते हैं। सागर दोनों का परिचय कराता हैं - )
सागर - उर्मि इससे मिल, ये हैं मेरी दोस्त तान्या।
उर्मि - हमारे गाँव में तुम्हारा स्वागत हैं तान्या।
सागर - और तान्या ये हैं मेरी बचपन की सबसे अच्छी दोस्त उर्मि।
तान्या - हाय उर्मि, कैसी हो तुम, सागर हमेशा ही तुम्हारी बातें करता हैं।
उर्मि - अच्छा ,इतना याद करता हैं। ( कुछ रूठे से स्वर में )
सागर उर्मि का भाव समझ जाता हैं ,और यह सब देख खुश हो मन में मुस्कुराता हैं। और फिर सागर उर्मि के साथ तान्या को पूरा गाँव घूमाता हैं। अपना स्कूल ,झरना, मंदिर के पीछे की पहाड़ी ,खेत - खलिहान वह मंदिर जहाँ सागर के बाबा कभी पुजारी हुआ करते थे। यूँ ही तान्या के साथ सारा दिन बीत जाता हैं। और उर्मि सागर से दो पल ठीक से बात तक नहीं कर पाती हैं। उर्मि को बुरा लगता हैं। वह सोचती हैं ,कि तान्या सागर जैसी पढ़ी - लिखी ,शहरी लिबास में सुन्दर और मैं गाँव के सीधे - सादे पहनावे में, उर्मि को लगता हैं कि शायद अब वह सागर की दोस्त नहीं बन सकती। यही सोच उर्मि देर शाम होने का बहाना बनाकर, माँ इन्तजार करती होगी कहकर घर जाने को कहती हैं। वहीं सागर उर्मि की आँखों का हर भाव पढ़ रहा था। और मंद - मंद मुस्कुराता हुआ कल भी आने को कहता हैं। उर्मि वहाँ से घर को चली आती हैं। सागर आज उर्मि से मिलकर बहुत खुश हैं ,पर वहीं दूसरी ओर उर्मि कुछ नाराज -सी ,कुछ उदास - सी हैं। और इसी उदासी में वह ...
to be continue........................
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