( भाग - 10 )
धीरे - धीरे समय गुजर रहा था। और देखते - देखते प्रियंवदा के ऑपरेशन का दिन पास आ रहा था। लेकिन इस बीच प्रभात और प्रियंवदा जब कभी भी एक दूसरे सामने आए या मिलें, तो दोनों ने आंखों - आंखों में बहुत कुछ कहा। दोनों की आंखों में अलग - अलग भाव रहे। जहाॅं एक ओर प्रभात की आंखों में प्रियंवदा के साथ जीवन व्यतीत करने के सुहाने सपने थे। वहीं प्रियंवदा ने आंखों में तो प्रभात के कई सपने सजों रखे थे, पर कहीं ना कहीं उसके दिल की गहराइयों में कई सवाल, कई उलझनें थी। अब उनका प्यार प्रेम की उस पराकाष्ठा पर था, जहाॅं वे आंखों - आंखों में ही बहुत कुछ कह जाते थे, बहुत कुछ समझ जाते थे। उनके होठों की मुस्कुराहट कुछ अनकहें शब्दों की मधुर अभिव्यक्ति थी।
" ना प्रणय निवेदन, ना प्रेम की अभिव्यक्ति,
ना दो हृदयों ने खुद को बेकल किया।
एक निर्मल प्रेम की नई परिभाषा लिखी,
दो दिलों ने प्रेम की पराकाष्ठा को पा लिया।"
एक शाम को शास्त्री जी के घर पर अगली सुबह शहर जाने की पूरी तैयारियाॅं चल रही थी। क्योंकि सुबह होते ही उन्हें प्रियंवदा के ऑपरेशन के लिए शहर जाना था। प्रभात भी शास्त्री जी के साथ ही था। प्रियंवदा अकेले आंगन में खड़ी चाॅंद को देख रही थी। तभी प्रभात शास्त्री जी से मिलकर बाहर आता है। और प्रियंवदा के पास जाकर चाॅंद को देखते हुए कहता है।
प्रभात - क्या हुआ, घबरा रही हो।
प्रियंवदा - ( प्रभात की ओर देखते हुए इशारे से कहती हैं ) हाॅं शायद। पर ऑपरेशन से नहीं।
प्रभात - ( प्रियंवदा की आंखों में देखते हुए )
तो किस बात से।
प्रियंवदा - (आंखों में आंसू के साथ ) तुम नहीं समझोगे।
प्रभात - जो तुम समझ रही हो, मैं समझना भी नहीं चाहता प्रियम।
प्रियंवदा की आंखों से आंसू बहने लगते है। प्रभात उसके आंसू पोंछता है। और प्रियंवदा के हाथ अपने हाथों में लेकर कहता है।
प्रभात - प्रियम तुम मेरी आंखों में देखो और मेरी आंखों के सारे सपने अपनी पलकों पर सजा कर सो जाओ। आज हम दोनों अपने सपने साॅंझा करते हैं। आज से तुम्हारे पलकों के सपनों को मैं अपनी पलकों में सजाता हूॅं। तुम मेरे सपनों को अपनी आंखों में जगह दे दो। फिर देखना सारे डर, सारी चिंताएं खुद समाप्त ही जाएंगी। अब तुम अंदर जाकर आराम से सो जाओ। मैं भी चलता हूॅं।
प्रभात कुछ दूर चला जाता है। प्रियंवदा जैसे ही उसे रोक कर कुछ कहना चाहती हैं। वैसे ही प्रभात पीछे मुड़कर प्रियंवदा की ओर देखते हुए कहता हैं,
प्रभात - मैं कल तुम्हारे साथ ही आ रहा हूॅं।
प्रियंवदा मुस्कुराते हुए, अंदर की ओर चली जाती हैं।
सुबह होते ही प्रभात शास्त्री जी के घर आता है। प्रियंवदा प्रभात को चिंतित नजरों से देखती है। प्रभात उसे देख प्यार से अपनी पलकें बॅंद कर मैं तुम्हारे साथ हूॅं का दिलासा देता हैं। फिर सभी गाड़ी में बैठ कर शहर की ओर निकल पड़ते हैं। सारी राह दिल में कई उतार - चढ़ाव के साथ शाम ढलते - ढलते वे अस्पताल पहुॅंचते हैं। अस्पताल पहुॅंच कर प्रियंवदा को भर्ती कराया जाता हैं।
सुबह उसका ऑपरेशन होने वाला था। जैसे कैसे रात कटती है। सुबह होते ही प्रभात शास्त्री जी से कहता हैं।
प्रभात - शास्त्री जी, मैं आज ऑपरेशन शुरू होने के बाद माॅं को लेने घर चला जाऊॅंगा। माॅं का बड़ा मन हैं कि वह ऑपरेशन के दौरान यहाॅं मेरे साथ रहे। और वह आप सब से और खासकर प्रियंवदा से मिलने को बहुत उत्साहित हैं। अगर आप इजाजत दे तो क्या मैं चला जाऊॅं।
शास्त्री जी - बिल्कुल बेटा, तुम घर जाओ। पर माॅं को लेकर जल्दी लौटना।
प्रभात - जी जरूर। ऑपरेशन से उठते ही मैं प्रियंवदा को जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी देना चाहता हूॅं। जिसके लिए माॅं यहाॅं आना चाहती हैं। शास्त्री जी क्या मैं एक बार प्रियंवदा से मिल सकता हूॅं।
शास्त्री जी - जाओ बेटा मिल लो।
प्रभात अंदर कमरे में प्रियंवदा के पास जाता है।
प्रभात - कैसी हो प्रियम।
प्रियंवदा - पलकें झुकाती हुए ठीक होने का संकेत देती हैं।
प्रभात - ( मुस्कुराते हुए ) आज तुम्हारे ऑपरेशन के लिए जाने के बाद मैं घर जा रहा हूॅं। तुमसे मिलने माॅं आना चाहती हैं। तुम्हारे लिए सबसे बड़ी खुशी लेने जा रहा हूॅं। जल्दी वापस आ जाऊॅंगा। फिर इस चाॅंद से चेहरे पर कभी उदासी के बादल नहीं छाएंगे। अभी तुम ऑपरेशन के लिए चली जाओगी। और मैं घर को चला जाऊॅंगा। तुम जब बाहर आओगी, मैं तुम्हें नहीं मिलूॅंगा। इसीलिए अपना ख्याल रखना।
प्रभात जाने लगता हैं। तभी प्रियंवदा उसका हाथ पकड़ लेती हैं। और मासूम नजरों से प्रभात की ओर देखती हैं। प्रभात के कदम रुक जाते हैं। वह मुस्कुराता हुआ प्रियंवदा की ओर देखता हैं। और प्रियंवदा के सिर पर प्रेम से हाथ रखते हुए कहता है।
प्रभात - प्रियम बहुत जल्द आ रहा हूॅं तुम्हारे पास, तुमसे मिलने, तुम्हें हमेशा के लिए अपने साथ ले जाने। तुम मेरा इंतजार करना। और अगर मैं किसी कारण से जल्दी ना सका तो भी मेरा इंतजार करना। क्योंकि चाहे कोई भी हालात हो, कैसी भी परिस्थिति हो प्रभात अपनी प्रियम से मिलने आएगा जरूर। एक और बात अगर मुझे आने में देर हुई तो बस इतना समझना कि कोई तो वजह होगी जो समय लग रहा है। पर ये कभी मत सोचना कि अब नहीं आऊॅंगा। चाहें कुछ भी हो; आऊॅंगा जरूर, बस मेरे शरीर में साॅंसे होनी चाहिए। क्योंकि जब तक मुझमें साॅंस हैं, तब तक ये प्रभात तुम्हारा हैं। और अगर कभी नहीं आया तो सोच लेना अब प्रभात का सूरज जीवन सांझ में ढल चुका है। तुम्हारा प्रभात अब नहीं है।
प्रियंवदा अपना हाथ प्रभात के मुॅंह पर रखती हैं। और
प्रियंवदा - (इशारों में कहती हैं ) नहीं; ऐसा मत कहो।
प्रभात - (उसका हाथ अपने होंठों से हटाते हुए ) जब तक तुम्हारा विश्वास, तुम्हारा प्यार मेरे साथ हैं। मुझे कुछ नहीं हो सकता। मैं जल्दी ही तुम्हें माॅं से मिलवाने वाला हूॅं। माॅं अपनी बहू से मिलना चाहती हैं।
प्रियंवदा - (इशारों में कहती हैं ) मैं तुम्हारा इंतजार करूॅंगी। जल्दी आना। अगर मैं ठीक हुई तो मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना हैं।
प्रभात - वही जो अभी तुम्हारी खामोशी कह रही हैं।
प्रभात प्रियंवदा का हाथ थाम कर कहता है।
प्रभात - तुम्हें कुछ कहने आवश्यकता नहीं हैं। तुम्हारे हर एहसास को मैं महसूस करता हूॅं प्रियम। अब और कुछ नहीं तुम आराम करो। जितनी जल्दी जाऊॅंगा, उतनी ही जल्दी आऊॅंगा भी। अब मैं चलता हूॅं।
प्रियंवदा - (इशारों में कहती हैं ) नहीं, ऐसा नहीं कहते। कहो कि जल्दी आता हूॅं।
प्रभात - ( भावुक हो जाता हैं ) बहुत जल्द आता हूॅं प्रियम। मेरा इंतजार करना।
" दिल में ऐतबार रखना,
निगाहों में इंतजार रखना।
मेरी धड़कनें तुम्हारे लिए बेकल रहेंगी,
तुम अपनी धड़कनों को बेकरार रखना"
( कहते हुए प्रियंवदा का हाथ चूमता हैं )
प्रभात चला जाता है, तभी नर्स आकर प्रियंवदा को ऑपरेशन के लिए के जाती हैं। इधर प्रियंवदा का ऑपरेशन होता है। उधर प्रभात घर जाने के लिए एक लंबा सफर तय कर रहा होता हैं।.................

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