( भाग - 3 )
प्रभात बगीचे की ओर टहलने चला जाता है। बगीचे में प्रभात अपने कैमरे से फलों से लदे वृक्षों, सुंदर फूलों से महकती क्यारियों के, और फूलों पर उड़ती रंग - बिरंगी तितलियों के चित्र खींचने लगता है। तभी उसकी नज़र बगीचे के एक ओर लगे तुलसी के पौधे पर पड़ती है। जैसे ही वह तुलसी के पौधे की ओर बढ़ता है। उसी वक़्त वही लड़की हाथ में पूजा की थाली और जल का लोटा लेकर अंदर से बाहर आती हैं, और तुलसी पूजन करने लगती है। प्रभात थोड़ी दूर खड़ा उसे पूजा करते देख रहा होता है। वह पहले तुलसी को जल अर्पण करती हैं, फिर दीया जलाकर आरती कर तुलसी को तिलक लगाती हैं। और अंत में आंखे बंद कर हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करती हैं। जैसे ही वह पूजा करके अंदर जाने को मुड़ती हैं, तभी प्रभात सामने चला जाता हैं। और उससे बातें करने की कोशिश करता हुआ कहता है।
प्रभात - मुझे पहचाना, कल मैंने आपसे पता पूछा था, और आपकी एक सहेली ने मुझे पता बताकर मेरी मदद की थी।
लड़की - हां कहने के लिए सिर हिलाती हैं।
प्रभात - वो शायद कल मैं जल्दी में था तो अच्छे से धन्यवाद नहीं कह पाया था, तो सोचा आज एक बार फिर आपको धन्यवाद कह दूॅं। इसीलिए आपको रोका। तो एक बार फिर से आपका धन्यवाद। वैसे मैं प्रभात यहाॅं वनस्पतियों की खोज और उन पर शोध करने आया हूॅं। और आप.....
( तभी वह हल्का - सा मुस्कुराकर वहाॅं से चली जाती हैं। )
एक बार फिर से प्रभात के मन में कुछ पंक्तियाॅं अंकित होती हैं।
"पलकों पे अगर सपना ही बहार का हो तो,
पथरीली राहों पर भी कलियां खिल ही जाती हैं।
उसे मुस्कुराते देख ऐसा लगा कि शायद,"
गुलाब की पंखुड़ियां ऐसे ही मुस्कुराती है।
लेकिन पल भर में ही उसे बड़ा अजीब लगता है। कि बिना बोले, बिना जवाब दिए ही चली गई है। बड़ी अजीब लड़की हैं।
प्रभात - ( मन ही मन सोचता हैं।) कैसी लड़की हैं। जवाब ही नहीं देती हैं। कल भी मैंने इससे ही पता पूछा तब भी इसकी सहेली ने पता बताया। आज अभी थोड़ी देर पहले अंदर भी इशारों में नमस्ते कहकर चली आयी। और अब मैंने इतना कुछ कहा, धन्यवाद कहा, परिचय दिया तो भी कुछ नहीं कहा। ऐसा भी क्या, कि किसी से बात ही ना करो। बड़ी नकचड़ी हैं। लगता है इसे अपनी खूबसूरती पर घमंड हैं। तभी किसी से बात नहीं करती। घमंडी लड़की। पर ये हैं कौन ? शास्त्री जी के घर के अंदर से आयी तो हो सकता है उन्हीं की बेटी हो। शास्त्री जी इतने अच्छे और बेटी इतनी नकचड़ी। होने दो मुझे क्या। पर अभी तो मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि इसे देखते ही में शायर क्यों बन जाता हूॅं। पता नहीं क्या हो रहा है मेरे साथ। ( मन ही मन बातें करते हुए ही वह अंदर कमरे में पहुॅंच जाता हैं, जहाॅं शास्त्री जी और मुखिया जी बैठे होते हैं।)
शास्त्री जी - घूम आए बागीचा; कैसा लगा।
प्रभात - जी बहुत अच्छा। माफ़ कीजियेगा मुझसे रहा नहीं गया, और मैंने आपसे पूछे बिना ही कुछ फोटो खींच लिए आपके बगीचे के। आप तो जानते ही हैं मुझे कितना प्यार हैं पेड़ -पौधों और फूलों से।
शास्त्री जी - अरे इसमें पूछना क्या हैं। ये सब तो कुदरत की ही देन हैं। जब चाहो तब फोटो खींच सकते हों।
प्रभात - जी धन्यवाद। तो शास्त्री जी अब इजाजत दीजिए, मैं आज ही से अपना शोध कार्य शुरू करना चाहता हूॅं। इसके के लिए मुझे वनस्पति जगत की ओर कदम बढ़ाने होंगे। मेरा मतलब है कि वन - उपवन विहार करना होगा।
शास्त्री जी - ये वन मात्र वन नहीं है बेटा, ये अमूल्य जड़ी - बूटियों का खजाना हैं।
मुखिया जी - जी बिल्कुल सही कहा आपने शास्त्री जी।
प्रभात - जी बिल्कुल। तो मुखिया जी में अपने साथ गोपी को ले जाता हूॅं। वह मुझे थोड़ा यहाॅं के वन - उपवनों के रास्तों से परिचित करा देगा, तो कल से मेरे लिए सब आसान हो जाएगा।
मुखिया जी - जी बिल्कुल ले जाओ।
प्रभात - तो अभी मैं चलता हूॅं।
यह कहता हुआ प्रभात वहाॅं से चला जाता है। और फिर गोपी को साथ लेकर अपना कार्य शुरू करता हैं। गोपी से वह वहाॅं की कई जानकारियाॅं लेता है। गांव के बारे में जानता है। और भी बहुत कुछ। इसके बाद दोनों शाम को घर वापस लौटते हैं। घर लौटते हुए वह उसी रास्ते से आते हैं।
जहाॅं से कल रास्ता पूछा था। तभी प्रभात को वही लड़कियाॅं फिर से दिखाई देती हैं। पर आज उसके मन में उस खूबसूरत लड़की के लिए थोड़ा गुस्सा था। तो जैसे ही वह वहाॅं से निकलता हैं। तो उसे बातें सुनाता हुआ गोपी को कहता है।
प्रभात - वैसे तो यहाॅं तुम्हारा गांव सब बातों में अच्छा है गोपी, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं। जो किसी की बातों का जवाब ही नहीं देते हैं। पता नहीं क्या परेशानी हैं अरे और कुछ कहो ना कहो कम से कम अगर कोई तुमसे धन्यवाद कहें तो उसका जवाब तो दो।
गोपी - अरे नहीं सर जी, ऐसा कैसे हो सकता है। आप बताओ कौन हैं वो ? जिसने आपके साथ ऐसा किया। आप तो इतनी अच्छी बातें करते हो।
प्रभात - अरे गोपी नाम नहीं जानता मैं, नहीं तो तुम्हें बता देता कि ऐसा कौन हैं।( तिरछी निगाहों से उस लड़की को देखते हुए )
वह समझ जाती हैं कि यह मेरे बारे में कह रहा है। वह मन ही मन कहती हैं।
खूबसूरत लड़की - कैसा लड़का हैं। पहले तो जबरदस्ती किसी से भी बातें करने लगता है, और फिर अगर जवाब ना दो तो बिना वजह जाने कुछ भी बातें सुनता है। और मेरी ओर देख कर कह रहा है। मैंने क्या किया, मैंने मुस्कुराकर जवाब तो दिया ना। और क्या करती।
( वह अंदर ही अंदर गुस्सा कर घर जाने लगती है। और जाते हुए प्रभात को गुस्से से घूरती हुई आंखें दिखाती हैं )
प्रभात - ( मन ही मन ) कैसी नकचड़ी हैं। गुस्सा आ ही गया मेरी बात सुनकर तो कम से कम मुझसे लड़कर ही जाती। अरे कुछ बोलती तो सही, आंखें दिखा कर चली गई। नकचड़ी।
गोपी - क्या सर जी नाम नहीं जानते, कोई बात नहीं कभी फिर दिखे तो मुझे बताना। मैं सबको जानता हूॅं।
प्रभात - हाॅं भाई जरूर बताऊॅंगा,अभी जल्दी घर चलते हैं। बहुत थक गया हूॅं।
(घर पहुॅंच कर)
गोपी - सर जी आप हाथ - मुॅंह धोकर आराम कीजिए। तब तक मैं आपके लिए गरमा गरम चाय बनाता हूॅं।
प्रभात - हाॅं गोपी।
(प्रभात बरामदे में आराम कुर्सी में बैठा चाय पी रहा होता है। तभी गोपी आता है।)
गोपी - ये मिठाई लीजिए सर जी, शास्त्री जी ने खास आपके लिए भिजवायी हैं। दीदी आकर देकर गई है।
प्रभात - दीदी, कौन दीदी।
गोपी - शास्त्री जी बेटी।
प्रभात - अच्छा! वैसे ये तो बताओ शास्त्री के घर में और कौन - कौन हैं?
गोपी - शास्त्री जी, उनकी पत्नी, एक बेटा जो शहर में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है,
एक बेटी जो पढ़ाई पूरी करने के बाद से घर पर ही रहती हैं।
प्रभात - अच्छा। और मिठाई भी बहुत स्वादिष्ट हैं। अच्छा गोपी एक काम करना कल मुझे याद दिलाना मैं खुद ही ये टिफिन देने शास्त्री जी के घर जाऊॅंगा।
गोपी - जी सर जी।
रात में खाने के बाद प्रभात अपना काम करके सो जाता हैं। पर सोते - सोते वह वह शास्त्री जी की बेटी के बारे में ही सोचता है। तभी उसे एहसास होता है, कि कहीं वह अपने खुलकर बात करने के व्यवहार की वजह उसे परेशान तो नहीं कर रहा है। हर कोई मेरी तरह नहीं हो सकता। कहीं वो मेरे बारे में गलत ना सोच बैठे। कि मैं गलत लड़का हूॅं। नहीं यह सही नहीं होगा। अगर उसने मेरे बारे में किसी से कुछ गलत कह दिया तो सब क्या सोचेंगे। और वैसे भी आज मैंने उसे कुछ ज्यादा बातें सुना दी। कल अगर मुझे मिली तो सॉरी कह दूॅंगा। यहीं सही होगा। और वैसे भी मैं यहाॅं काम के लिए आया हूॅं, और कहाॅं मैं किसी के ख्यालों में खो रहा हूॅं।...............................
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