कुछ अनकहे, अनसुने शब्द (भाग - 6)

     ( भाग - 6 )
          
वह बड़े आश्चर्य से प्रभात को देखती हैं। और
प्रियंवदा - ( इशारे से पूछती हैं ) तुम यहाॅं।

प्रभात - तुम ही ने तो कहा था, शाम को बगीचे में मिलते हैं। अब तुम्हें इतना आश्चर्य क्यों हो रहा है।

प्रियंवदा - ( इशारों में ) जैसे ही कुछ पूछने लगी,

प्रभात - और कुछ मत पूछना, मैं जानता हूॅं तुम क्या कहने वाली हो। यहीं ना कि मुझे कैसे समझ आया, जो तुमने कहा। हम इतने समय से एक दूसरे को जानते हैं। मिलते है, बातें करते हैं, अब मैं तुम्हारी हर बात समझने लगा हूॅं। वो भी जो तुम मुझे समझा नहीं पाती, और वो भी; जो तुम कहना नहीं चाहती पर तुम्हारी आंखें कह जाती हैं।
                  खैर मेरी बात बाद में तुम इस वक़्त यहाॅं क्यों,

प्रियंवदा - ( इशारों में ही ) वो मुझे ऐसा लगा ही था। तुम मेरी बात समझ गए। इसीलिए तुमसे मिलने आई।

प्रभात - पहले ये बताओ प्रियंवदा तुमने मुझे यहाॅं क्यों आने को कहा ?

प्रियंवदा - ( इशारों में )  वो तुम्हें देखकर मुझे ना जाने ऐसा क्यों लगा जैसे तुम मुझे ही ढूॅंढ रहे थे, और शायद तुम्हें मुझसे कुछ कहना था। तुम्हारी आंखों में मैंने आज एक साथ दो भाव देखें। एक कुछ बताने की उत्सुकता, और दूसरी एक अजीब सी उलझन। इसीलिए मैंने तुम्हें यहाॅं बुलाया ताकि में पूछ सकूॅं, कि तुम्हें क्या हुआ हैं ? क्या बात है जो तुम्हें परेशान कर रही हैं। बताओ ना। क्या बात है ?

प्रभात - (कुछ पल उसकी ओर खामोशी से देखता ही रह जाता हैं।) कोई किसी को बिन कुछ कहे इतना अच्छे से कैसे समझ सकता है। कि उसके दिल की बात और मन की उलझन एक साथ पढ़ ले। जैसे मैं तुम्हारे अनकहे शब्दों को महसूस करने लगा हूॅं, वैसे ही तुम भी मेरी खामोशी को महसूस करती हो ना प्रियंवदा। तभी तो मेरी धड़कनों की आवाज तुम तक पहुॅंच गई।

प्रियंवदा - खामोशी से प्रभात को सुन रही थी।कभी पलकें उठाकर उसकी तरफ देखती तो कभी पलकें चुरा लेती।

प्रभात - ऐसे क्या देख रही हो, इतना सब कुछ पढ़ लिया मेरी आंखों में, और वो नहीं पढ़ पा रही हो जो मैं तुमसे कहना चाहता हूॅं, जो बात तुमसे कहने का मैं सुबह से इंतजार कर रहा हूॅं।

( वह सब समझ रही थी। प्रभात क्या कहना चाहता हैं। क्योंकि कहीं ना कहीं बहुत पहले से ही उसे प्रभात के साथ बातें करना, लड़ना - झगड़ना अच्छा लगने लगा था। जिस एहसास की बात प्रभात आज कह रहा था। वो तो प्रियंवदा बहुत पहले ही महसूस कर चुकी थी।)

 
प्रियंवदा - (मन ही मन कहती हैं।) मैं जानती हूॅं प्रभात, तुम क्या कहना चाहते हो। जिस एहसास की बात तुम कर रहे हो, वही एहसास मेरे दिल में तुम्हारे लिए ना जाने कब से हैं। पर मैं उन्हें अपनी जुबाॅं पर नहीं ला सकती। और ना ही उन्हें मैंने कभी अपनी आंखों पर आने दिया। वो तो बस मेरे दिल में तुम्हारा ख्वाब बन कर रहते हैं। पर पता नहीं कैसे मेरा वो एहसास तुम तक पहुॅंच गया।

प्रभात - मन ही मन क्या सोच रही हो। मैं कुछ पूछ रहा हूॅं। क्या तुम अब भी नहीं समझी, मैं क्या कहना चाहता हूॅं ?

प्रियंवदा - ( नजरें चुराती हुई इशारों से कहती हैं।) नहीं, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। तुम क्या कहना चाहते हो।

प्रभात - तो मेरी तरफ देखकर क्यों नहीं कहती । क्यों झूठ बोल रही हो ? जबकि मुझे मुझ से ज्यादा तुम समझती हो। तुम्हारी आंखों में साफ दिखता है कि तुम झूठ बोल रही हो " प्रियम "।

प्रियम नाम सुनते ही वह प्रभात की ओर मुड़ती हैं।

प्रभात - क्या हुआ ? नाम पसंद नहीं आया। आज से मैं तुम्हें इसी नाम से पुकारूॅंगा " प्रियम "। तुम सबके लिए प्रियंवदा, "प्रियम" मेरे लिए। प्रभात की प्रियम। और अगर इतना सब कहने के बाद भी कहती हो कि तुम नहीं समझी, तो मैं आज अभी तुम्हें बताता हूं कि मैं क्या कहने यहाॅं आया हूॅं।

प्रियंवदा नहीं चाहती थी। कि प्रभात कभी भी अपने प्यार का इजहार करें। क्योंकि उसे अपने ना बोलने की कमी का भी एहसास था।

प्रियंवदा - ( इशारे से कहती हैं ) पिताजी ने घर जल्दी आने को कहा हैं। बहुत शाम हो गई है मुझे जाना चाहिए। हम फिर मिलते हैं। और वैसे भी मैं पिताजी से झूठ बोल कर आयी थी। कि तुम मुझे फूलों के बारे में बताने वाले हो। कभी अगर पिताजी पूछे तो यहीं कहना। अभी में चलती हूॅं।

वह जल्दी - जल्दी में वहाॅं से जाने लगती हैं। प्रभात उसका हाथ पकड़कर कहता हैं।
प्रभात - रुको प्रियम, तुम मेरी बात सुने बिना नहीं जा सकती। मैं जानता हूॅं, तुम नहीं चाहती कि मैं तुमसे अपने दिल की बात कहूॅं। लेकिन अगर आज मैंने दिल की बात नहीं कही। तो सारी रात सो नहीं पाऊॅंगा। प्रियम मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूॅं। तुमसे शादी करना चाहता हूॅं। तुम्हें अपनी जिंदगी बनाना चाहता हूॅं। और मैं तुम्हारी जिंदगी में शामिल होकर तुम्हारे साथ पूरी जिंदगी जीना चाहता हूॅं। क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? क्या मुझे तुम्हारे दिल, तुम्हारी जिंदगी में थोड़ी - सी  जगह मिलेगी ?

प्रियंवदा हाथ छुड़ाकर दूर खड़ी हो जाती हैं। कुछ जवाब नहीं देती।

प्रभात - ये मत सोचना कि मैं तुमसे अब प्यार करने लगा हूॅं। एक अनजाना - सा एहसास तो तब भी था। जब तुम मुझसे नाराज रहती थी। जब मैं तुम्हें नकचड़ी कहता था। जब हम दोनों एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे। तब भी एक डोर ने मुझे हमेशा तुम्हारे ख्यालों से बांधे रखा। लेकिन उस अनजाने एहसास की प्यार के रूप में पहचान तब हुई, जब हम दोनों में दोस्ती हो गई। पर मैंने उस प्यार को कभी अपनी जुबाॅं पर, अपने व्यवहार पर नहीं आने दिया, क्योंकि मैं चाहता था कि जिस दिन इसी प्यार का एहसास मुझे तुम्हारी आंखों में नजर आएगा। जिस दिन तुम्हारी आंखों में मुझे मेरा अक्स दिखाई देगा। उसी रोज मैं तुमसे अपने प्यार का इजहार करूॅंगा। अपने दिल की बात कहूॅंगा। कुछ दिनों से मैंने तुम्हारी आंखों में अपने लिए वो भाव देखा है। मैंने महसूस किया है, कि तुम्हारी आंखें मेरी आंखों की जुबाॅं पढ़ने लगी हैं।

हमारे बीच एक ही एहसास अपनी जगह बना रहा है। और हम दोनों उस एहसास से बचने की, उस एहसास को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं। तभी मैंने आज अपने दिल की बात कही।

प्रियंवदा कुछ घबराई - सी, कुछ मन ही मन हर्षायी - सी, वो खुश थी मानो उसे प्रभात के प्यार के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई। घबराई इसीलिए थी क्योंकि उसकी एक कमी उसे प्रभात की ओर एक कदम बढ़ाने से रोक रही थी। वो बहुत कुछ  कहना चाहती थी उस पल, पर कुछ कहना नहीं चाहती थी। वो अपनी खुशी के, या शायद दर्द के आसूॅंओं को अपनी आंखों से बहने से पहले ही अपनी पलकों से पोछ लेती हैं।

प्रभात - प्रियम कुछ तो बोलो, जवाब दो।

प्रियंवदा - (मन ही मन) प्रभात यूॅं बार - बार मुझे प्रियम कहकर मत पुकारो। तुम्हारा प्यार से यूॅं प्रियम कहना मुझे कमजोर कर रहा है। इतने प्यार भरे नाम से मुझे आज तक किसी ने नहीं पुकारा। आज से ये प्रियंवदा तुम्हारी हो या ना हो। पर ये प्रियम सिर्फ तुम्हारी रहेंगी। पर मैं तुम्हारे प्यार का जवाब हाॅं में नहीं दे सकती।

प्रभात - प्रियम चुप क्यों हो ? क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती।

प्रियंवदा - (इशारों से कहती हैं ) प्रभात बस करो, तुम भावनाओं में बह रहे हो। तुम तो सब जानते हो ना। फिर मुझसे प्यार कैसे कर सकते हो।

प्रभात - क्यों, क्यों नहीं कर सकता। तुम्हें अच्छे से जानता हूॅं, तभी तो प्यार करता हूॅं। और वैसे भी प्यार किया नहीं जाता हैं। वो तो बस हो जाता है। और मैं भी नहीं जानता। कि कब तुम अपनी सी लगने लगी। कब आंखों को तुम्हें देखने की ख्वाहिश होने लगी। कब तुम्हारे साथ कुछ समय बातें कर दिल को सुकून मिलने लगा। ना जाने कब से दिल तुम्हरे बारे में सोचने लगा। कब से तुम सपनों में आने लगी। ना जाने कब से मैं तुम्हें याद कर चाॅंद से तुम्हारी बातें करने लगा। कब से तुमसे मिलने को बेकरार सुबह का इंतजार करने लगा। और ना जाने कब से तुम्हारी खामोशियों को पढ़ने लगा। तुमसे मिलना, बातें करना, तुम्हारे साथ हॅंसना, छोटी से छोटी खुशी बांटना अच्छा लगता हैं। बस ये पता नहीं था कि ये सब बातें, ये अनजाने एहसास प्यार हैं। इसी को प्यार कहते हैं।और जैसे ही पता चला। तुमसे प्यार का इजहार करने आ गया हूॅं। अब तुम्हीं बताओ, कैसे प्यार ना करता, कैसे प्यार ना होता, जब मेरे पल - पल के एहसास में तुम हो। दूर होकर भी मेरे पास तुम हो। तुम्हारे प्यार के एहसास से ही खुद को पूरा महसूस कर रहा हूॅं। मेरी हमसफर बन जाओ ना प्रियम, सच कहता हूॅं, तुम्हारे साथ से जिंदगी का सफर खूबसूरत हो जाएगा। 

प्रियंवदा - (इशारों में ) बस करो प्रभात। जरा सोचो, समझो, मैं बोल नहीं सकती हूॅं। तुम्हारी पूरी जिंदगी का सवाल है। चार दिन की दोस्ती अलग हैं। जिंदगी भर का साथ बहुत बड़ी बात हैं। मेरी एक कमी मुझे तुम्हारे बराबर खड़ा नहीं करती हैं। अभी ये सही वक़्त नहीं हैं इन बातों का, पहले तुम आराम से सोचो, समझो।

प्रभात - सोच, समझ कर प्यार नहीं होता प्रियम। सच कहूॅं तो सोच, समझकर साजिशें होती है प्यार नहीं। प्यार तो बस हो जाता हैं। और अगर मैं प्यार सोच, समझ कर भी करता तो भी तुमसे ही करता। तुम जानती भी नहीं तुम्हारे लिए मेरा प्यार आंखों की सुंदरता नहीं, दिल की गहराइयों के एहसास तक का नहीं, ये अंतर आत्मा की पवित्रता तक का हैं। मेरी रूह भी तुम्हें मुझमें महसूस करने लगी हैं। तुम्हें प्राप्त करना मेरा प्यार नहीं हैं प्रियम। तुम्हारी एक हाॅं, तुम्हारी आंखों में मेरे प्यार की एक झलक ही मुझे सम्पूर्ण कर देंगी।

प्रियंवदा - ( इशारों में ) तुम समझ नहीं रहे हो, मानती हूॅं ,प्यार हो जाता हैं। पर जरा सोचो मुझमें एक बहुत बड़ी कमी हैं। मेरे साथ तुम्हारी जिंदगी बर्बाद हो जाएंगी। मैं कैसे तुमसे प्यारी - प्यारी बातें करूॅंगी, कैसे तुम्हारी तबीयत पूछूॅंगी, यहाॅं तक कि मैं तुम्हारी प्यार भरी बातों का जवाब तक नहीं दे सकती।

प्रभात - प्रियम जहाॅं नुकसान और फायदा देखकर प्यार होता है ना। वहाॅं प्यार नहीं, प्यार के नाम पर सौदा होता है। और क्या कह रही हो, तुम बोल नहीं सकती। जहाॅं दो दिलों के बीच एहसास बोलते हैं। वहाॅं प्रेम अपनी पराकाष्ठा को प्राप्त करता है। क्योंकि वहाॅं कुछ भी कहने के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं होती। वहाॅं आंखों - आंखों में बातें होती हैं। वहाॅं आंखों से कहीं बातें सीधे दिल की धड़कनों तक पहुॅंचती है। वहाॅं एक का दिल दूसरे के दिल धड़कनों की लय पर धड़कता हैं। शायद तुम्हें प्यार का मतलब ही नहीं पता। जो तुम मेरी आंखों में अपना अक्स देखती हो वो प्यार हैं। जो तुम्हारी तन्हाई के हर पल में मैं होता हूॅं वो प्यार हैं, जो तुम बिन कहे मेरी बात समझ जाती हो, वो प्यार हैं, और हमें एक दूसरे से बात करने के लिए, एक - दूसरे की बात समझने के लिए लफ्जों की जरूरत कब से पड़ने लगी। जो तुम आज अपने पिताजी से झूठ बोल कर मुझसे मिलने आई वो प्यार ही हैं, जो तुम मेरे बारे में इतना सोच रही हो ना, वो भी तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार ही हैं। समझने की जरूरत तुम्हें हैं प्रियम, तुम समझो कब तक अपने दिल की नहीं सुनोगी। कभी तो अपने दिल की कहोगी ना तो आज क्यों नहीं।

  प्रियंवदा - (इशारों में ही ) बस प्रभात, तुम कुछ नहीं समझ रहे हो। अभी मुझे घर जाना हैं।

प्रभात - पर अभी तक तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।

प्रियंवदा - ( इशारों से ) मुझे किसी को कोई जवाब नहीं देना हैं।

प्रभात - कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूॅंगा। जब दिल करें जवाब देना जरूर। चलो बहुत देर हो गई है, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूॅं।

प्रियंवदा - ( इशारे से कहती है ) नहीं, मैं खुद ही चली जाऊॅंगी।

प्रभात - तुम भले ही मुझसे प्यार ना करो, पर दोस्त होने के नाते ही सही या शास्त्री जी का परिचित होने के नाते ही सही तुम्हें घर तक तो छोड़ ही सकता हूॅं। ये मेरा फर्ज बनता है। तुम मना नहीं कर सकती।
चलो।

प्रियंवदा प्रभात के साथ घर जाती हैं। रास्ते में प्रभात कहता है।

प्रभात - जब कभी अगर दिल करें तो मेरी बात का जवाब दे देना। मैं जिन्दगी के हर मोड़ पर तुम्हारे जवाब का इंतजार करूॅंगा। जिंदगी भर तुम्हारा इंतजार करूॅंगा। जब भी मेरी तरफ देखोगी तो मैं तुम्हें हमेशा तुम्हारे बिना अधूरा ही मिलूॅंगा। तुम्हारे साथ के बिना जिंदगी की राह पर अकेला मिलूॅंगा। जब भी आवाज दोगी मुझे अपने पास पाओगी।  मुझे एक बार प्यार होना था, सो तुमसे हो गया। अब किसी से कभी नहीं होगा। एक दिल हैं जिसमें अब तुम्हारी तस्वीर है। किसी और के लिए अब कोई जगह नहीं हैं। आज तक तुम्हारे लिए मन ही मन कुछ पंक्तियां उभरती रही, आज पहली बार तुम्हारे सामने तुम्हारे लिए कुछ पंक्तियां कहता हूॅं। आशा है मना नहीं करोगी।

" मुझे इश्क हैं तुमसे, मेरी जिंदगी तुम हो,
ये दिल ताउम्र इंजतार भी करेगा तो तुम्हारे ही लिए।
गर इस दिल के नसीब में तड़पना ही लिखा है तो गम नहीं,
ये आखिरी धड़कन तक तड़पेगा तुम्हारे लिए।"

प्रियंवदा सब सुन तो रही होती है। पर प्रभात की ओर नजर उठाकर देख नहीं पाती हैं। और वहीं प्रभात उसकी तरफ देख उसके प्यार को और उसके प्यार की मजबूरी दोनों को अपनी रूह तक महसूस करता है। दोनों घर पहुॅंच जाते हैं। उनकी पहली मुलाकात शास्त्री जी से होती है।

शास्त्री जी - आ गए आप दोनों, तो प्रभात आज तुमने प्रियंवदा को किन - किन फूलों के बारे में बताया। ये तो बहुत खुश होगी।

प्रभात - जी शास्त्री जी, खुश तो हैं पर अपनी खुशी जाहिर नहीं करती हैं। सच में बहुत जिद्दी हैं।

शास्त्री जी - मुस्कुराते हुए, ये तो सही कहा तुमने, तुम भी इसे जानने लगे हो।

प्रभात - जी बहुत अच्छे से, हम दोनों अच्छे दोस्त जो है। अच्छा शास्त्री जी अभी आज्ञा दे, मैं चलता हूॅं।

शास्त्री जी  - अभी तो आए हो, इतनी भी क्या जल्दी है।

प्रभात - जी ये तो मेरा घर जैसा ही है। यहाॅं तो आना - जाना लगा रहता है। जब भी घर याद आती हैं। यहीं चला आता हूॅं। पर अभी जाना होगा।

शास्त्री जी - अपना ही घर समझो बेटा, सच कहूॅं तो मुझे भी अच्छा लगता है, जब तुम आते तो, अब तुम घर के सदस्य ही लगते हो। प्रियंवदा; बेटा प्रभात को दरवाजे तक छोड़ आओ। प्रभात आते रहना बेटा।

प्रभात - जी।

प्रियंवदा प्रभात को दरवाजे तक छोड़ने जाती हैं। तभी दोनों एक दूसरे की आंखों में खामोशी से देखते हैं। मानो प्रभात की आंखें कह रही हो, कह क्यों नहीं देती तुम्हें भी मुझसे प्यार हैं। और प्रियंवदा की आंखें कह रही हो, काश कि मैं तुम्हें बता पाती कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूॅं,पर मेरी मजबूरी है। 

जाते - जाते प्रभातप्रियंवदा से कहता है।

प्रभात - चाहे तुम कुछ ना कहो, पर मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूॅं। बहुत जल्द तुम्हारी जिन्दगी में एक नव प्रभात होगा प्रियम। एक प्रभात प्रियम का।

इतना कहकर वह मुस्कुराते हुए चला जाता है। प्रियंवदा दूर जाने तक उसे देखती रहती हैं।.................

 

 

  

   



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