फागुन आयो रे

रुत बसंती लेकर देखो,
फागुन आयो रे, आयो रे, फागुन आयो रे। 
तेज हुए अब पवन के झोंके, 
आंचल उड़ - उड़ जाएं।      
चेहरे पर लट जब - जब बिखरे,
मन हिचकोले खाएं।     
बसंत ऋतु के आते ही देखो, 
नैना स्वपन सजाए रे।
फागुन आयो रे, आयो रे, फागुन आयो रे।
स्वर्ण मंजरियों से सजने लगी है,  
आम्र वृक्ष की डाली।
वन उपवन में कुहू - कुहू कूके,
काली कोयल मतवाली।
लहर - लहर डालियां झूमें, 
पीत - पात झर - झर जाएं रे।
फागुन आयो रे, आयो रे, फागुन आयो रे। 
रंग - बिरंगी तितलियां उड़ - उड़,
फूलों पर यूं मंडराएं।
श्यामल श्यामल प्रेमी अली,
बागों में गुन गुन गाए।
बसंत की बसंती छटा नित,
प्रकृति का कण-कण सजाएं रे
फागुन आयो रे आयो रे फागुन आयो रे
पीली - पीली सरसों फूलीं,
फलने लगी जौ, गेहूं की बाली।
कलियां खिल कर फूल बन गई,
फलों से लद गई हर डाली। 
फल - फूल की सुगंध से महकीं,
पवन तन और मन महकाएं रे,
फागुन आयो रे, आयो रे, फागुन आयो रे।

 हेमा आर्या "शिल्पी"

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