जीवन परिचय-
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि, उत्कृष्ट कहानीकार और गज़लकार दुष्यंत कुमार का जन्म 27 सितंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की तहसील नजीबाबाद के रामपुर नवादा नामक गांव में हुआ था। दुष्यंत कुमार के पिताजी का नाम भगवत सहाय और माताजी का नाम रामकिशोरी देवी था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव की ही पाठशाला में प्रसिद्ध गीतकार इंद्र देव भारती के पिता पं० चिरंजीलाल के सानिध्य में पूर्ण हुई। तथा माध्यमिक शिक्षा (हाई स्कूल) नहटौर और इंटरमीडिएट चंदौसी से हुई। दुष्यंत कुमार जी ने दसवीं कक्षा से ही कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था। तथा इंटरमीडिएट के दौरान उनका विवाह राजेश्वरी कौशिक से हो गया था। विवाह पश्चात् उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में बी.ए. और एम.ए. किया। इसी दौरान दुष्यंत कुमार जी को धीरेंद्र वर्मा और डॉ० रामकुमार वर्मा का सानिध्य प्राप्त हुआ। तथा साथ ही प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर जी, मार्कंडेय जी, धर्मवीर भारती जी तथा विजयदेव नारायण साही जी के संपर्क में आए। जहां से इन्हें एक नई दिशा मिली। अर्थात् उनके साहित्यिक अभिरुचि के नए आयाम खुले।
इसके बाद दुष्यंत कुमार जी ने मुरादाबाद से बी.एड. की उपाधि प्राप्त की। और 1958 में आकाशवाणी दिल्ली आ गए। फिर मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के अंतर्गत भाषा विभाग में रहे। यदा कदा विपत्ति काल में उनका कवि मन कभी व्यथित तो कभी आक्रोशित हो उठा। जिसकी अभिव्यक्ति कुछ गज़लों के रूप में हुई, जो कालजयी रही। जो आगे चलकर उनके गज़ल संग्रह "साये में धूप" का हिस्सा बनी। यह गजल संग्रह इनका 1975 में प्रकाशित हुआ। लेकिन विधाता ने विधान में कुछ और भी लिखा था। एक समय ऐसा भी आया जब सरकारी सेवा में रहते हुए सरकार विरोधी काव्य रचना करने के कारण उन्हें सरकार का कोपभाजन भी सहना पड़ा। और इसी प्रकार से जीवन का सफर तय करते हुए 30 दिसंबर 1975 की रात्रि में हृदयाघात होने से दुष्यंत कुमार जी ने मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में ही आकस्मिक मृत्यु हो गई।
रचनाएं-
दुष्यंत कुमार जी ने हिंदी साहित्य में अतुल्यनीय,अविस्मरणीय योगदान दिया। उन्होंने कविता, नाटक, उपन्यास, लघु कहानियां,ग़ज़ल लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। दुष्यंत कुमार जी की ग़ज़लों को इतनी लोकप्रियता मिली, कि उनके शेर; कहावतें और मुहावरों के रूप में लोगों द्वारा व्यावहारिक तौर पर कही जाने लगी। ऐसा कहा जाता है कि उनकी 52 ग़ज़लों की लघु पुस्तिका को यदि युवा मन की गीता कहा जाए तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।
उनके कुछ प्रमुख शेर इस प्रकार से हैं -
1- यहां दरख्तों के साए में धूप लगती है,
चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए।
2- कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
3-मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
4- एक जंगल है तेरी आंखों में
मैं जहां राह भूल जाता हूं
तू किसी रेल - सी गुजरती है
मैं किसी पुल - सा थरथराता हूं।
काव्य नाटक (1963)
एक कंठ विषपायी
नाटक -
और मसीहा मर गया
काव्य संग्रह-
सूर्य का स्वागत
आवाजों के घेरे
जलते हुए वन का बसंत
उपन्यास-
छोटे-छोटे सवाल
आंगन में एक वृक्ष
दुहरी जिंदगी
लघु कथाएं-
मन के कोण
गज़ल संग्रह-
साये में धूप
कविताएं-
कहाॅं तो तय था
कैसे मंजर
खंडहर बचे हुए हैं
जो शहतीर है
जिंदगानी का कोई मकसद
मुक्तक
आज सड़कों पर लिखे हैं
मत कहो
आकाश में
धूप के पांव
गुच्छे भरे
अमलतास
आग जलती रहे
एक आशीर्वाद
मापदंड बदलो
कहीं पे धूप की चादर
बाढ़ की संभावनाएं
इस नदी की धार में
हो गई है पीर पर्वत - सी
काव्यगत विशेषताएं
दुष्यंत कुमार जी के काव्य की सादगी भावात्मक गहराई उनकी शैली की प्रमुख विशेषता रही। उनके काव्य में प्रेम, लालसा,जागरूकता, विरोध, क्रोध और वेदना कई तरह की भावनाओं का समावेश दिखाई देता है। हिंदी साहित्य जगत में उन्हें नई कविता का अग्रदूत कहा जाता है। दुष्यंत कुमार जी का सृजन प्रेम,समकालीन सामाजिक मुद्दों, देशभक्ति और मानवीय व्यवहार की जटिलताओं को दर्शाता है। उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक परिवेश, भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता और जन सामान्य के दैनिक जीवन के संघर्ष पर चर्चा की है। कवि दुष्यंत कुमार जी के लेखन में गंभीर विषयों को सरल, सहज भाव में अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता थी। वह सामाजिक व्यवहार के परिपेक्ष में मानव के भीतर की गहन पीड़ा को भी खोज लेते थे। उनके लेखन में सरलता, सहजता, स्वाभाविकता, पारदर्शिता, ईमानदारी और प्रत्यक्षता की विशेषता थी। ऐसा लगता है मानो उनका लेखन सामान्य लोगों के जीवन से प्रेरित था। उनका लेखन वंचित स्वर की आवाज बना। तथा उनकी कविताएं भावी पीढ़ी के उभरते कवियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी। उनके लेखन में अंतर्निहित भावात्मक व्यापकता ने सदैव पाठकों के हृदय को स्पर्श किया। तभी तो उनकी कविताएं, उनकी गजलें आज भी पाठकों की जुबाॅं में रस घोलती हैं। दुष्यंत कुमार जी की कविताएं, उनकी गजलें सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करने का तथा अंतर्निहित दबे भावों को व्यक्त करने के लिए शब्द शक्ति की महत्ता बताती हैं। यह उनके काव्य के मुख्य विशेषता ही है, कि उनके लेखन ने साहित्य जगत में अपनी अमित छाप छोड़ी है।
भाषागत विशेषताएं
दुष्यंत जी एक कालजयी कवि थे। उन्होंने साहित्य क्षेत्र में काव्य, गीत, गजल, उपन्यास, नाटक, कहानी आदि लगभग सभी विधाओं में लेखन कार्य किया। और अपनी प्रत्येक विद्या की रचना उन्होंने सामान्य बोलचाल की भाषा में की। जो पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। पाठकों को वह रचना अपनी रचना प्रतीत होती है। वे अपनी रचना, अपने छंद और प्रासंगिकता के फलस्वरुप ही जन सामान्य के साथ प्रतिध्वनित होते थे। दुष्यंत जी ने गजलों को हिंदी भाषा की में लिखकर हिंदी साहित्य में एक नई बयार बहाई थी। उनकी भाषा की प्रेक्षणीयता और सामान्य जनता तक पहुंचने की क्षमता ने ही आज की कविता की भाषा को सीधी, सरल, सहज और बोधगम्य बनाया। कविता की भाषा में व्यक्तिक प्रयोग करने के बाद भी भाषा की आत्मीयता और अभिव्यक्ति की सरलता को सदैव ध्यान में रखा। उनकी भाषा आम आदमी की भाषा थी। इसलिए पाठकों के हृदय को स्पर्श करते हुए उन्हें पाठकों का सबसे प्रिय कवि बनाती है।
अतः निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं। कि आम आदमी की भाषा का कुशल प्रयोग, सफल भावाभिव्यक्ति, लेखन कौशल और संप्रेषणीयता ही दुष्यंत कुमार जी की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। हिंदी साहित्य और संगीत में उनका अविस्मरणीय योगदान जो साहित्य जगत में उनकी जीवित विरासत है। सदैव पाठकों के हृदय में स्थापित रहेगी।
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