जग के जो पालनहार, विष्णु जी के अवतार,
सृष्टि हित धरती पे जन्में जो बारंबार।
मोर मुकुट सिर, अधर पे मुरली धरें,
यमुना में कालिया के फन पे जो नृत्य करें।
ललित कलाओं वाले, केश घुंघराले वाले,
मुरली बजाकर युद्ध घमासान करने वाले।
गैया चराएं, माखन चुराएं,
प्रीत करे राधिका से, गोपी संग रास रचाएं।
द्वारकाधीश सखा दीन सुदामा के,
सारथी अर्जुन के काल कंस मामा के।
द्रोपदी को चीर दे, त्राण दिया पांडव को,
गोपियों से प्रेम का ज्ञान ज्ञानी उद्धव को।
प्रेम, साख्य, भक्ति भाव दिया इस सृष्टि को,
गीता ज्ञान, दृष्टिकोण दिया मनु दृष्टि को।
राधे - कृष्ण नेह है उद्धरण समर्पण का,
प्रीत में प्राप्ति से श्रेष्ठ भाव अर्पण का।
सखा कभी राजा नहीं, ना ही रंक होते हैं,
तभी कान्हा अश्रुओं से सखा चरण धोते हैं।
मीरा भई बावरी कृष्ण दरस आस में,
अमृत भया विष भी, भक्ति विश्वास में।
किंतु प्रभु प्रतिपल कैसा काल आ रहा है।
धैर्य धरी धरणी का धैर्य नित खो रहा है।
ब्रज रज सी प्रभु पावन चरण धूलि हो,
राम - घनश्याम सम कल्कि रूप चाहिए।
बाबा नंदलाल और यशोमती मैया का,
मटकी तोड़ने वाला गोपाला और चाहिए।
यदि युद्ध समाधान, भयावह है परिणाम,
तो फिर महाभारत जैसा एक युद्ध और चाहिए।
धर्म - अधर्म का अंतर और समाधान,
श्रीमद् भागवत गीता सम ज्ञान और चाहिए।
वृंदावन, मथुरा जैसा प्रभु धरती पर,
आपकी लीलाओं का एक धाम और चाहिए।
सीताराम - राधेश्याम तारणहार दोनों नाम।
इसी धुन पर एक नाम और चाहिए।
प्रेमार्पण राधा सा, सखा सुदामा सा।
आस, विश्वास, भक्ति मीरा जैसी चाहिए।
आपके ही भजनों में बीते प्रभु ऐसी अब,
भक्ति में डूबी हर शाम हमें चाहिए।
दरस को प्यासी प्रभु भक्तों की अंखियों को,
आपके दरसन की आस एक चाहिए।
अवतार ले के प्रभु धरती पे आओगे,
हम भक्तों को बस विश्वास यही चाहिए
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