माखनलाल चतुर्वेदी जी का जीवन परिचय



माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्याति प्राप्त कवि लेखक और पत्रकार थे। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी भारत के राष्ट्रवादी कवियों में सदैव अग्रणी माने जाते हैं। उन्हें हिंदी साहित्य जगत में एक "भारतीय आत्मा" के नाम से जाना जाता है।

 जीवन परिचय 
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म सन् 1889 ई० में मध्यप्रदेश के "होशंगाबाद" जिले के "बाबई" नामक गांव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था। जो गांव के प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। चतुर्वेदी जी ने अपनी जीविका की शुरुआत अध्यापन कार्य से की थी। और 16 वर्ष की आयु में ही वे शिक्षक बन गए थे। उस समय सामाजिक सुधार केेे अभियान गतिशील थे। ऐसे समय में सन् 1908 में "माधवराव सप्रे" जी के "हिंदी केसरी" में "राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार" विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। और इस प्रतियोगिता में खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी जी के निबंध को प्रथम स्थान पर चुना गया। अप्रैल 1913 में खंडवा के हिंदी सेवी "कालूराम गंगराड़े" ने मासिक पत्रिका "प्रभा" का प्रकाशन प्रारंभ करते हुए पत्रिका के संपादन का दायित्व माखनलाल चतुर्वेदी जी को सौंप दिया।  और फिर इसी वर्ष (1913) सितंबर माह में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी। और पूरी तरह से पत्रकारिता साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए अपने जीवन को समर्पित किया।  "प्रभा" पत्र के संपादन के दौरान सुप्रसिद्ध पत्रकार "गणेश शंकर विद्यार्थी" जी से मिले। गणेश शंकर विद्यार्थी जी के व्यक्तित्व और उनकी देशभक्ति का पंडित जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनसे प्रभावित होकर वे देश भक्ति की कविता लिखने वाले देश भक्त कवि तथा प्रखर पत्रकार बने, और कुछ समय पश्चात् वे "कर्मवीर" नामक पत्र के संपादक नियुक्त हुए। सन् 1921-22 में उन्होंने असहयोग आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तथा इसके चलते वे भी कारावास में भी रहे।   1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी जी गणेश विद्यार्थी जी के साथ "मैथिलीशरण गुप्त" और "महात्मा गांधी" जी से मिले। सन् 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में माखनलाल चतुर्वेदी जी ने ही पहली गिरफ्तारी दी। और सन् 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी का प्रथम सम्मान प्राप्त हुआ। गणेश शंकर विद्यार्थी के गिरफ्तार होने के बाद उनके पत्र "प्रताप" के संपादन का कार्यभार चतुर्वेदी जी ने ही संभाला। और 30 जनवरी 1968 को पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी ने यह संसार त्याग दिया।

रचनाएं 
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी ने कविता, नाटक, कहानी, निबंध तथा संस्मरण आदि सभी साहित्य विधाओं पर कार्य किया है।
चतुर्वेदी जी की रचनाएं कुछ इस प्रकार से हैं - 
हिमकिरीटिनी 
हिमतरंगिनी 
माता 
युगचरण 
समर्पण 
वेणु लो गूंजे धरा 
साहित्य देवता
इसके अतिरिक्त इनके भाषणों के "चिन्तक की लाचारी"  तथा "आत्म - दीक्षा" नामक संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। 

पुरस्कार व सम्मान 
माखनलाल चतुर्वेदी जी को "हिमकिरीटिनी" के लिए 1943 में हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा "देव पुरस्कार" दिया गया। 1954 में साहित्य अकादमी पुरस्कार की स्थापना होने पर हिंदी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार "हिमतरंगिनी" के लिए प्रदान किया गया। "पुष्प की अभिलाषा" और "अमर राष्ट्र" के लिए सागर विश्वविद्यालय ने 1949 में डी० लिट उपाधि से विभूषित किया। 1955 में "हिमतरंगिनी" के लिए उन्हें हिंदी "साहित्य अकादमी पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। 1963 में भारत सरकार ने "पद्मभूषण" से अलंकृत किया गया। जिसे 10 सितंबर 1967 को राष्ट्रभाषा हिंदी पर आघात करने वाले राज्य भाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरुद्ध विरोध प्रकट करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी जी ने यह अलंकरण लौटा दिया। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है।

काव्यगत विशेषताएं 
माखनलाल चतुर्वेदी जी का काव्य राष्ट्र आधारित अर्थात् देशभक्ति से ओतप्रोत है। उनकी रचनाओं में राष्ट्र चेतना, त्याग, बलिदान, राष्ट्रप्रेम, निर्भीकता, साहस, ईमानदारी, अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष का अदम्य साहस देखने को मिलता है। उनके काव्य में मानव प्रेम दिखता है। वह राष्ट्र प्रेमी तो थे। परंतु उनकी लेखनी ने कभी भी अन्य राष्ट्र का विरोध नहीं किया। और ना ही आलोचना की। उनके रचनाओं से स्वतंत्रता आंदोलन को बल मिला। पंडित जी वास्तव में देशभक्ति के कवि होने के साथ-साथ सच्चे राष्ट्र सेवक भी थे।

भाषागत विशेषताएं 
माखनलाल चतुर्वेदी जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक, खड़ी बोली, हिंदी है। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम, तद्भव शब्दों का समन्वय देखने को मिलता है। उनकी भाषा में अरबी, फारसी शब्दों का भी पर्याप्त मिश्रण होता है। माखनलाल चतुर्वेदी जी की भाषा सहज, सरल, स्वाभाविक है। जो कि रचनाकार के भावों को जनसामान्य तक पहुंचा कर उनके हृदय को स्पर्श करती है। और अलंकारों का प्रयोग सरसता हेतु किया गया है।   इनकी छंद योजना अद्भुत होती है। चतुर्वेदी जी की कविता में भाव पक्ष की कमी को कला पक्ष पूर्ण कर देता है।

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