ऐ गर्मी इतना ना सताओ,
तन से पसीना इतना ना बहाओ।
मन परेशां, तन थक गया,
मैं कहीं छांव में रुक गया।
छांव से भी ना राहत मिलती,
गर्म हवाएं तीखी चलती।
घर से पल भर बाहर जाना,
मुश्किल हो गया काम पर जाना।
पंखे, कूलर, ए सी हारे,
वो भी तपे गर्मी के मारे।
पेड़ - पौधे झुलस गए,
पंछी गरमी से तड़प गए।
नभ में बादल एक नहीं,
धरा धूप से दहक रही।
नदी, तालाब सब सूख गए,
पशु पानी को तरस गए।
आते - जाते स्कूल के बच्चे,
मासूम चेहरे, मन के सच्चे।
देख उन्हें यूं लगता मानो,
कोई कुम्हलाया पुष्प सा जानो।
जरा किसान पर दया करो,
बेघर गरीब पर दया करो।
तन बिन वस्त्र जल रहे,
पैरों पर छाले पड़ रहे।
काम पर जाना जरूरी है,
मजदूरी उनकी मजबूरी है।
गर ना धूप में जाएं तो,
दो जून रोटी ना कमाए तो।
बच्चों को कैसे समझाएंगे,
उन्हें भूखा कैसे सुलाएंगे।
सरदी, गरमी, बरसात में,
जीवन रुकता नहीं किसी हालात में।
सृष्टि पर थोड़ा रहम करो,
कठोर हृदय कुछ नरम को करो।
सूरज भैया कुछ सुस्ता लो,
बैठ छांव में ठंडी सांस लो।
माना अभी आपकी बारी है,
पर तुमसे दोस्ती भारी है।

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