साहित्य सम्मेलन और सम्मान


"साहित्य सम्मेलन और सम्मान"

साहित्य सम्मेलन और सम्मान दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। सबसे पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि साहित्य सम्मेलनों का उद्देश्य क्या है? साहित्य सम्मेलन क्यों किए जाते हैं? साहित्य सम्मेलन साहित्य जगत में उपलब्ध साहित्य को जनसाधारण तक पहुंचाने के उद्देश्य से, हिंदी भाषा का प्रचार - प्रसार करने के उद्देश्य से तथा साहित्य सृजन के माध्यम से समाज में, देश में, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने वाले कवियों, ग्रंथकारों, पत्र संपादकों, साहित्यकारों, समीक्षकों,आलोचकों, समालोचकों, लेखकों व प्रचारकों को पारितोषिक, प्रशस्ति पत्र,सम्मान पत्र, पदक,उपाधि तथा अन्य अनेक पुरस्कारों से अलंकृत करने हेतु आयोजित किए जाते हैं। तथा सम्मेलन में उपस्थित लब्धप्रतिष्ठित रचनाकारों, पदाधिकारियों,आयोजकों व आमंत्रित अतिथियों को काव्यानुभूति, काव्य की रसानुभूति तथा उस रसानुभूति से प्राप्त आनन्दानुभूति कराने के लिए काव्य पाठ  किया जाता हैं। परंतु मेरा मानना है कि काव्य सम्मेलन मात्र काव्य की रसानुभूति कराने के लिए आयोजित नहीं किए जाने चाहिए। उसमें समाज की वर्तमान स्थिति की एक झलक अवश्य होनी चाहिए। जैसा कि हम सभी जानते हैं। कि एक कलमकार समाज का दर्पण होता हैं। उसे एक पारदर्शी दृष्टा और वक्ता होना चाहिए। एक कलमकार के विचारों में तीर की भांति तीव्र गति, उसके शब्दों में तलवार की धार और उसकी कलम में सदैव निष्पक्षता होती हैं। एक कलमकार की लेखनी समाज को नई दिशा देती हैं। वह समाज में एक बड़े स्तर पर वैचारिक परिवर्तन लाती हैं। एक लेखक शब्द क्रांति का नायक होता हैं। इसलिए हमें समय - समय पर आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों में सामाजिक संदर्भ में रचित रचनाओं को भी आगे लाना चाहिए।  उन तमाम सामाजिक समस्याओं पर विविध विधाओं में चर्चा करनी चाहिए। श्रृंगार रस में डूबी रचनाएं, प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन यह तो प्रत्येक कवि के भीतर समाहित हैं। साहित्य सम्मेलन के माध्यम से हम समाज के परिवेश पर विचार प्रकट कर जन साधारण का ध्यान समाज के विकास की ओर आकर्षित कर सकते हैं। यदि साहित्य सम्मेलन मात्र सम्मान समारोह ना बनकर समाज का पथ प्रदर्शक बन अपनी महनीय भूमिका निभाएं तो बहुत अच्छा है।
           अब हम आगे बढ़ कर बात करते हैं सम्मान की। जब भी किसी सम्मेलन में किसी को सम्मान प्रदान किया जाता हैं। तो वह उसकी योग्यता पर आधारित होता हैं। किसी भी सम्मान की निर्णायक मंडली कुछ मानकों के आधार पर ही योग्यतानुसार विजेता का चयन करती हैं। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं। हां लेकिन मात्र सम्मान प्राप्त करना ही हमारा एकमेव उद्देश्य नहीं होना चाहिए। आज हम कई साहित्य समूहों से जुड़े हैं।  आए दिन सभी लेखकों को सम्मान पत्र प्राप्त होते ही रहते हैं। सभी कलमकार अपने आप में श्रेष्ठ हैं। लेखनी का सबका अपना - अपना दृष्टिकोण हैं। किसी को चांद में प्रिय दिखाई देता हैं। तो किसी को चांद की चांदनी; विरहन को डसती नागिन। सबका अलग अलग नजरिया है। लेकिन किसी भी रचनाकार का मूल्यांकन उसे प्राप्त सम्मान पत्रों या पारितोषिक के आधार पर नहीं करना चाहिए। कई बार कलमकार नया होता हैं परन्तु उसकी लेखनी सारगर्भित होती हैं। उसकी रचना में गहन भाव होते हैं। किसी को भी सम्मान के बाद स्थान नहीं अपितु कार्य के बाद सम्मान प्राप्त होता हैं। गणना कौशल की होनी चाहिए सम्मान पत्रों की नहीं। नवांकुरों को पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए। सम्मान पत्र लेखकों को और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करते है। 
                साहित्य सम्मेलन और सम्मान रचनाकारों में ऊर्जा का संचार करते हैं।  उन्हें उनके हुनर से, उनकी महती भूमिका से अवगत कराते हैं। सम्मान के बिना सम्मेलन अधूरे लगेंगे और सम्मेलन के बिना सम्मान की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। दोनों ही एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हैं। यदि मैं संक्षेप में कहूं तो किसी की लब्धप्रतिष्ठित रचनाकार में उसे उसके कार्यक्षेत्र में अविचल,अविराम कार्य करने की ऊर्जा का संचार करने हेतु, भावी पीढ़ी को एक नया इतिहास देने हेतु, सामाजिक समालोचना व आलोचना हेतु, स्थिर मौन प्रलय से प्रयत्नशील सृजन की ओर गतिमान रहने हेतु, समस्त कलमकारों को उनके कार्य में सहयोग व उत्साहवर्धन हेतु साहित्य सम्मेलन और सम्मान स्थान, कार्य, भूमिका एक सुन्दर समन्वय हैं तथा यह अति आवश्यक है। 
 धन्यवाद🙏🙏

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