उपसर्ग
सर्वप्रथम हम उपसर्ग के शाब्दिक अर्थ की ओर दृष्टि डालेंगे। उपसर्ग शब्द दो शब्दों के योग से बना हैं, उप तथा सर्ग। अर्थात उपसर्ग = उप + सर्ग, जिसमें "उप"का अर्थ "समीप",और "सर्ग"का अर्थ "रचना" या "निर्माण" करना हैं, अर्थात समीप आकर रचना करना। इसलिए हम कह सकते हैं कि उपसर्ग वे शब्दांश होते हैं जो किसी शब्द के पूर्व समीप आकर एक नव शब्द का निर्माण कर उसका अर्थ परिवर्तित कर देते हैं। उपसर्ग एक प्रकार के शब्दांश होते हैं जिनका स्वतंत्र अपना कोई अर्थ नहीं होता हैं। परन्तु ये शब्दांश किसी न किसी प्रकार का भाव सूचक अर्थ अवश्य प्रस्तुत करते हैं। जैसे - (१ ) अध का तात्पर्य आधा होता हैं, (२ ) सु का तात्पर्य अच्छा, (३ ) कु का तात्पर्य बुरा, ( ४ ) नि तात्पर्य कमी, ( ५ ) भर का तात्पर्य पूरा से हैं। ये सभी शब्दांश एक प्रकार से भाव स्पष्ट करते हैं। किसी एक ही शब्द के पूर्व में भिन्न - भिन्न उपसर्ग जुड़कर उस एक शब्द के भिन्न - भिन्न अर्थ प्रकट करते हैं।
जैसे - यहाँ पर हम भाव और ग्रह शब्द लेंगे। और भाव व ग्रह में अलग - अलग उपसर्ग जोड़कर लिखेंगे। और देखेंगे कि किस तरह से सदैव एक ही अर्थ रखने वाले शब्दों के विभिन्न उपसर्ग जुड़ने से अर्थ परिवर्तित होते हैं।
उपसर्ग - शब्द - निर्मित शब्द - अर्थ
भाव = भावना
अ + भाव = अभाव - कमी
प्र + भाव = प्रभाव - असर
स्व + भाव = स्वभाव - प्रकृति
सम + भाव = समभाव - समान
ग्रह = - आकाशीय पिंड
आ + ग्रह = आग्रह - निवेदन
प्रति + ग्रह = प्रतिग्रह - लेना
परि + ग्रह = परिग्रह - दान देना
उप + ग्रह = उपग्रह - छोटा ग्रह
सं + ग्रह = संग्रह - जमा करना
अनु + ग्रह = अनुग्रह - कृपा करना
उपरोक्त दिए गए उदाहरणों में देखा जा सकता हैं कि किसी एक ही शब्द के पूर्व में जुड़कर विभिन्न उपसर्ग किस तरह से सामान्य अर्थ को विभिन्न विशेष अर्थ में परिवर्तित करते हैं।
उपसर्ग की परिभाषा -
वे शब्दाँश जो किसी शब्द के आरम्भ में जुड़कर नए शब्द का निर्माण कर उसके अर्थ को परिवर्तित कर देते हैं या शब्द को विशेष अर्थ में प्रयुक्त करते हैं, वे उपसर्ग कहलाते हैं।
जैसे - अप, उप, दुर, निष्, आ, परि, बे, उन, नि, पर, बिन, अव आदि।
उपसर्ग - शब्द = निर्मित शब्द
अप + यश = अपयश
उप + कार = उपकार
बे + कार = बेकार
अव + गुण = अवगुण
आ + जन्म = आजन्म इत्यादि।
उपसर्ग एक प्रकार से भाव सूचक अर्थ में प्रयुक्त किये जाते हैं। जैसे -"प्र" का तात्पर्य
"आधिक्य" से हैं। "बल"अर्थात "ताकत", और यदि बल में प्र उपसर्ग जोड़ दे तो बनेगा " प्रबल " अर्थात "अत्यधिक बलशाली"। "प्र " उपसर्ग ने यहाँ अधिकता का भाव प्रकट किया। इस आधार पर हम उपसर्गों को भाव सूचक शब्दांश भी कह सकते हैं। जो शब्द के पूर्व में जुड़कर नव शब्दार्थ की रचना करते हैं।
उपसर्ग के प्रकार -
सामान्यतः हिंदी में प्रयोग किये जाने वाले उपसर्ग तीन प्रकार के हैं।
(१ ) संस्कृत के उपसर्ग
(२ ) हिंदी के उपसर्ग
(३ ) उर्दू, फ़ारसी के उपसर्ग
(१ ) संस्कृत के उपसर्ग -
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उपसर्ग - अर्थ - रचित शब्द
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- आ - पर्यन्त - आजन्म, आकार, आसक्त, आजीवन, आदान, आगमन,आचरण, आकर्षण, आकृति, आकाश, आरम्भ, आराम, आभार, आचार।
- अव - नीचे, हीन - अवगुण, अवतार, अवकाश, अवरोध, अवतरण, अवस्था, अवरूद्ध, अवगत, अवसान, अवनत, अवतीर्ण।
- अप - अनुचित, पीछे - अपमान, अपकार, अपशब्द, अपराध, अपभ्रंश, अपकीर्ति, अपयश, अपहरण, अपसव्य, अपकर्ष।
- अनु - पीछे, बाद में - अनुसार, अनुप्रयोग, अनुमोदन, अनुज, अनुक्रम, अनुपात, अनुराग, अनुताप, अनुकरण, अनुस्वार अनुचित, अनुरूप, अनुचर।
- अभि - पास या समीप - अभिमुख, अभिमत, अभिसार, अभिमान, अभियुक्त, अभिभावक, अभिनय,अभिलाषा, अभिशाप, अभ्युदय, अभ्यास, अभिनन्दन।
- अधि - ऊपर या अधिक - अधिकार, अधिकतम, अधिकरण, अध्ययन, अधिपति, अध्यक्ष, अधिकृत, अध्यापन, अध्यात्म, अधिकारी।
- अति - अधिक - अत्यधिक, अतिशय, अत्युपयुक्त, अतिक्रमण, अतिरिक्त, अत्यन्त, अत्याचार, अत्यावश्यक।
- उत् - ऊँचा, श्रेष्ठ - उत्कृष्ट, उत्तम, उत्तीर्ण, उत्कर्ष, उत्थान, उत्पन्न, उत्पात, उत्पादन, उत्पादित।
- उप - निकट, छोटा - उपकूल, उपग्रह, उपयुक्त, उपनिषद, उपागम, उपमा, उपकार, उपरोक्त, उपभेद, उपसागर, उपयोग, उपमान, उपदेश,।
- नि - भीतर, नीचे - निरूपण, निकाय, निकास, निराश, निषेध, निरोग, निपात, निपट, निबंध, निमग्न, निदर्शन, निवेश, निस्तब्ध, निहित, निशांत।
- निर - अभाव, बाहर - निर्दिष्ट, निर्विरोध, निर्दोष, निर्बल, निर्धन, निर्वाह, निकृष्ट, निर्भय, निर्मम, निर्देश, निर्जन, निर्जीव, निर्जल, निर्मोही, निरपराध।
- निस - बाहर, निषेध - निश्छल, निष्काम, निःसंदेह, निष्पति, निष्फल, निःशेष, निःस्पृहा, निश्चिन्त, निष्प्राण, निष्कर्ष, निःश्वाश, निःस्वार्थ।
- प्र - आगे, अधिक - प्रकाश, प्रहार, प्रमाण, प्रहास, प्रभात, प्रख्यात, प्रखर, प्रबल, प्रकोप, प्रचार, प्रहस्त, प्रथम, प्रकार, प्रवक्ता, प्रभाव
- प्रति - विरुद्ध,सामने - प्रतिकूल, प्रतिवर्ष, प्रतिदिन, प्रतिमाह, , प्रत्युत्तर, प्रतिपल , एक एक प्रतिवाद, प्रत्यक्ष, प्रतिवेदन, प्रतियोगिता, प्रतिक्षण, प्रतिभाग, प्रत्येक।
- पुरा - पुराना समय - पुरातन, पुराकाल, पुरातत्व, पुरावशेष, पुराण, पुराना, पुरावृत्त।
- परि - आस -पास - परिभ्रमण, परिवर्तन, पर्यावरण, परिजन, परिवार, परिणाम,परिमाप, चारों ओर परिधान, परित्याग, परिधि, परिसंधान, परिक्रम, परिपूर्ण,परिश्रम ।
- परा - विपरीत, कतार - पराक्रम, पराजय, परामर्श, पराभव, परास्त,
- प्राक - पहले का - प्राक्कथन, प्रागैतिहासिक,
- वि - भिन्न, विशेष, - विशेष, विकास, विकीर्ण, विनियम, विफल, विनय, विलक्षण, अभाव विद्रोह, विभेद, विश्वास, विनायक, विधायक, विधान, विलग, विदेश ।
- सम - अच्छा, सह - संकल्प, संगति, संगम, संयोग, संकीर्ण, संयम,, संचार, सम्मान, सम्मोहित, समक्ष, संस्कृत, संस्कार, सम्मोहन, संशोधन।
- सु - अच्छा - सुरक्षा, सुलेख, सुलभ, सुसंगति, सुदेश, सुप्रभात, सुयोग्य, सुनिधि सुदर्शन, सुकुमारी, सुगम, सुबोध, सुमति, सुलक्षणा, सुमन, सुपुत्र, ।
- दुर - बुरा - दुर्व्यवहार, दुर्गम, दुर्लभ, दुर्दशा, दुर्गति, दुराचार, दुर्वासा, दुरुपयोग, दुरुक्ति।
( २ ) हिन्दी के उपसर्ग -
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उपसर्ग - अर्थ - रचित शब्द
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- अ - अभाव, निषेध - अज्ञान, अविराम, अप्रतिम, अथाह, अछूत, अटल, अचल,
- अलौकिक, अखिल, अधर्म, अमोघ, अमिट, अपूर्ण, अहित।
- अन - बिना - अनपढ़, अनकही, अनसुनी, अनबन, अनहोनी, अनजान,
- अनमोल, अनगिनत, अंदेशा, अनदेखा, अनशन।
- अध - आधा - अधखिला, अधपका, अधकच्चा, अधलिखा, अधसेर।
- उन - एक कम - उनसठ, उनतालीस, उनतीस, उन्नति, उन्मुख, उनचास।
- औ - हीन - औसर, औघर, औगुन, औढर, औजार, औसत, औरत।
- क - बुरा - कपोत, कचोट, कपूत, कपट, कमाल, कथन, कपूर, कठोर।
- कु - हीनता - कुप्रभाव, कुसंगति, कुकर्म, कुपात्र, कुरूप, कुचक्र, कुख्यात।
- दु - कम, बुरा - दुबला, दुधारू, दुलारा, दुगना, दुदुंभी, दुकान।
- नि - रहित, अभाव - निकास, निखार, निडर, निकाल, निहत्था, निशब्द, निगम। बिन - बिना, रहित - बिन ब्याहा, बिन पानी, बिन बादल, बिनसर, बिन बात।
- भर - पूरा - भरकम, भरमार, भरपूर, भरपेट, भरसक।
- स - साथ, सहित - सहित, सगोत्र, सरस, सजल, समान, सन्दर्भ, सघोष।
- सु - सुन्दर, शुभ - सुडौल, सुजान, सुसभ्य, सुकृति, सुमन, सुशील, सुप्रिया।
- पर - दूसरा - परसर्ग, परहित, परोपकार, परमार, परलोक, परतंत्र, परजीव।
( ३ ) उर्दू उपसर्ग -
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उपसर्ग - अर्थ - रचित शब्द
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- ब - और, अनुसार - बनाम, बतौर, बदौलत, बदस्तूर, बगैर।
- बा - सहित - बाकायदा, बादस्तूर, बाइज्जत, बाअदब, बादिक्कत।
- बे - बिना - बेईमान, बेखबर, बेअदब, बेअसर, बेकसूर, बेक़रार, बेहाल।
- बद - बुरा - बदसलूकी, बदहाल, बदनाम, बदमाश, बदकिस्मत।
- ला - रहित - लापरवाह, लाचार, लावारिस, लाजवाब, लालत, लाइलाज।
- ना - अभाव - नापसंद, नासमझ, नालायक, नाराज, नादान, नाउम्मीद।
- सर - मुख्य - सरताज, सरहद, सरकस, सरकार, सरपंच, सरबराह।
- हम - समान - हमराज, हमउम्र, हमदम, हमदर्द, हमसफ़र, हमराह।
- कम - थोड़ा - कमजोर, कमअक्ल, कमबख्त।
- खुश - अच्छा - खुशनसीब, खुशहाल, खुशखबरी, खुशनुमा, खुशदिल।
- गैर - निषेध - गैरजिम्मेदार, गैरहाजिरी, गैरकानूनी, गैरमुल्क, गैरसरकारी।
- हर - प्रत्येक - हरदम, हरदिन, हरसाल, हरएक, हरबार।
- दर - में - दरअसल, दरखास्त, दरबार, दरबान, दरकिनार, दरमियाँ।
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कुछ अन्य उपसर्ग -
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उपसर्ग - अर्थ - रचित शब्द
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उपरोक्त हमने संस्कृत, हिंदी, उर्दू व अन्य उपसर्गों का अध्ययन किया हैं, जिसमें हमने प्रत्येक उपसर्ग के यथा संभव उदाहरण व प्रयोग प्रस्तुत करने का प्रयास किया हैं। तथा हमने जाना कि यदि एक सामान्य अर्थ वाले एक शब्द में हम भिन्न - भिन्न उपसर्ग जोडते हैं तो वह एक अर्थ का शब्द कई अलग -अलग अर्थ प्रकट करता हैं। तथा उसका मूल भाव विभिन्न विशिष्ट अर्थ में दृष्टव्य होता हैं। और वहीँ यदि हम एक ही भाव प्रस्तुत करने वाले उपसर्ग को अलग - अलग शब्दों के आगे जोड़कर लिखते हैं तो वह एक उपसर्ग सभी अलग - अलग शब्दों को अपने भावानुसार नव शब्दों में परिवर्तित कर समान भाव प्रकट करता हैं। यहीं उपसर्गों की विशेषता कहलाती हैं।
कुछ अन्य उपसर्ग -
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उपसर्ग - अर्थ - रचित शब्द
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- अंतः - बीच - अंतःकरण, अंतःशुद्धि, अंतःसलिला।
- अंतर् - भीतर - अंतर्निहित, अंतर्देशीय, अंतर्राष्ट्रीय।
- अधो - नीचे, तले - अधोगति, अधोमुख, अधोहस्ताक्षर।
- अन्य - भिन्न - अन्योक्ति, अन्यचित, अन्योन्य।
- आत्म - अपना - आत्मविश्वास, आत्मघात, आत्मनिर्भर।
- तत - वह - तत्कालीन, तत्सामयिक, तत्काल।
- चिर - बहुत समय - चिरकाल, चिरजीवी, चिरायु।
- यथा - अनुसार - यथाशक्ति, यथासमय, यथाधर्म।
- दूर - अनिकट - दूरगामी, दूरदर्शी, दूरदृष्टि।
- नाना - अनेक - नानाविधि, नानारूप, नानावर्ण।
- पुनः - फिर से - पुनर्विवाह, पुनर्जन्म, पुनःप्राप्ति।
- बहु - अनेक - बहुभाषी, बहुमत, बहुमूल्य।
- बहिः - बाहर - बहिष्कार, बहिर्मुखी, बहिर्गामी।
- मिथ्या - झूठ - मिथ्याभाषण, मिथ्याभिशाप, मिथ्यावाद।
- सह - साथ - सहचर, सहपाठी, सहगामी।
- स्व - निजी - स्वदेश, स्वभाव, स्वरुप। स्वयं - खुद - स्वयंभू, स्वयंवर, स्वयंमेव।
- सर्व - सभी प्रकार से - सर्वविदित, सर्वप्रथम, सर्वश्रेष्ठ।
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उपरोक्त हमने संस्कृत, हिंदी, उर्दू व अन्य उपसर्गों का अध्ययन किया हैं, जिसमें हमने प्रत्येक उपसर्ग के यथा संभव उदाहरण व प्रयोग प्रस्तुत करने का प्रयास किया हैं। तथा हमने जाना कि यदि एक सामान्य अर्थ वाले एक शब्द में हम भिन्न - भिन्न उपसर्ग जोडते हैं तो वह एक अर्थ का शब्द कई अलग -अलग अर्थ प्रकट करता हैं। तथा उसका मूल भाव विभिन्न विशिष्ट अर्थ में दृष्टव्य होता हैं। और वहीँ यदि हम एक ही भाव प्रस्तुत करने वाले उपसर्ग को अलग - अलग शब्दों के आगे जोड़कर लिखते हैं तो वह एक उपसर्ग सभी अलग - अलग शब्दों को अपने भावानुसार नव शब्दों में परिवर्तित कर समान भाव प्रकट करता हैं। यहीं उपसर्गों की विशेषता कहलाती हैं।
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