तू ही मेरी धरा थी,
तू ही मेरा जहां।
आसमाँ था मेरा आँचल,
वो खो गया कहाँ।
अंश रूप में माँ,
तू अंग - अंग में हैं।
हर साँस में हैं मेरी,
धड़कन के संग में हैं।
कैसे कहूँ ये जग से,
तू त्याग जग चली अब।
जब तक हूँ मैं जिंदा,
तू मुझमें में हैं माँ अब।
तेरे जिस्म का मैं टुकड़ा,
तूने रक्त से था सींच।
देकर के अपनी साँसें,
तूने बिम्ब चित्र खींचा।
सहकर के पीड़ा मुझको,
तू ही तो जग में लाई।
गोदी में पालकर फिर,
तूने ही की विदाई।
यह कैसा मोल माँगा,
माँ कुछ समझ न आया।
पलकें मूँद कर क्यों,
सिर से हटाया साया।
पीड़ा प्रसव से बढ़कर,
दृग नीर भी वही थे।
पर थी विदाई तेरी ,
पल वश में वो नहीं थे।
हाथों से अपने तुझको ,
तैयार जब किया था।
मर - मर के लम्हा -लम्हा,
हम सब ने वो जियां था।
प्राणांश खींचता अनुभव,
कर रहें थे गात सारे।
बन वक़्त की कठपुतली,
हम बेबस विधि से हारे।
क्यों पल में छोड़ तू ,
ऐसे चली गयी हैं।
किससे कहेंगे माँ अब,
तू तो चली गयी हैं।
वो सिर पे हाथ तेरा,
वो बाँहों में भरना।
कब आएगी दोबारा,
जाते हुए ये कहना।
भूँलूँ मैं कैसे तुझको,
यह भी बता के जाती।
रह गए सपन अधूरे,
पलकों पर ना सजाती।
तेरी विदाई से माँ,
दर आस का हैं छूटा।
इस वक़्त की आंधी से,
माँ का घरौंदा टूटा।
0 Comments