रघुकुल भानु राघव राम,
सिया संग जो पधारे हैं।
हुई पावन धरा फिर से,
सजे धरती पे तारे हैं।
हुई बिरहन अयोध्या थी,
प्रभु तुमसे बिछड़ कर के।
हुए नीरस सभी नैना,
सियावर राह तक - तक के।
किया श्रृंगार बिरहन ने,
प्रतीक्षा पल भी हारे हैं।
हुई पावन धरा फिर से,
सजे धरती पर तारे हैं।
कहो रघुवर करूं कैसे,
कमल चरणों का में वंदन।
नहीं मैं धीर सबरी सी,
मेरे व्याकुल है तन और मन।
करूं कैसे तेरे दर्शन,
सभी प्रयास हारे हैं।
हुई पावन धरा फिर से,
सजे धरती पर तारे हैं।
अहिल्या बन के एक दिन मैं,
प्रभु पत्थर में बन जाऊं।
प्रभु चरणों से जो छू दे,
मैं भवसागर से तर जाऊं।
मेरे जीवन के दिन - रैना,
प्रभु के ही सहारे हैं।
हुई पावन धरा फिर से,
सजे धरती पर तारे हैं।
रघुकुल भानु राघव राम,
सिया संग जो पधारे हैं।
जलाकर दीपमाला मैं,
सजाऊं आज घर आंगन।
पधारो संग लखन सिया - राम,
अयोध्या हो पुनः पावन,
तुम्हारे आगमन से ही,
प्रभु रोशन अंधेरे हैं।
हुई पावन धरा फिर से,
सजे धरती पर तारे हैं।
रघुकुल भानु राघव राम,
सिया संग जो पधारे हैं।

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