मेरी पतंग हैं रंग -बिरंगी ,
दूर गगन मेँ उड़ती हैं।
बिना पंख ही उड़ती रहती ,
हवा के संग बातें करती हैं।
मैं खड़ा हूँ हरी धरा में ,
ये नील गगन में टहल रही।
मेरे हाथ हैं इसकी डोर ,
ये बादल के संग झूम रही।
काश मैं भी पतंग के जैसे ,
आसमान में उड़ पाता।
उड़ता रहता बाहें फैलाकर ,
चाँद और सूरज से बातें करता।
कहता चंदा मामा क्यों ,
तुम रात ही में आते हो।
दिन -भर चलकर सूरज भैय्या आप ,
साँझ ढले कहाँ जाते हो।
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