कुछ अनकहे, अनसुने शब्द (भाग - 8 )

                  ( भाग - 8 )

प्रियंवदा ने खत में लिखा होता है।

प्रभात
       तुम ऐसा क्यों कर रहे हो। मेरी बात समझते क्यों नहीं। मुझसे हाॅं की आशा मत रखो। तुम बहुत अच्छे हो, पर शायद मैं नहीं। तुम अपने भविष्य के बारे में कुछ भी नहीं सोच रहे हों। और मेरी बात समझ लो कि तुम पिताजी से कोई बात नहीं करोगे। अभी तुम सिर्फ भावनाओं में बह रहे हों, लेकिन जिंदगी के फैसले भावनाओं में बह कर नहीं लिए जाते हैं। कभी सोचा है तुमने मुझसे शादी करके क्या होगा। तुम एक संपन्न लड़के हो। कोई कमी नहीं है तुम में, लेकिन मुझमें एक बहुत बड़ी कमी हैं। जिसे शायद तुम्हारे घर वाले कभी स्वीकार नहीं करेंगे। कोई भी माता - पिता अपनी बेटी के लिए तुम जैसा लड़का चाहेंगे, पर कोई माता - पिता अपने बेटे के लिए मुझ जैसी लड़की कभी नहीं चाहेंगे। दूसरा अगर तुम शादी जिद से कर भी लो, तो सोचा है हमें साथ देख कर लोग क्या कहेंगे। कि देखो प्रभात की पत्नी बेचारी बोल नहीं सकती। तब तुम्हें और मुझे कैसा लगेगा। मुझसे शादी करके तुम मेरे जीवन की कमी को अपने जीवन का हिस्सा बना पाओगे ? मैं कभी भी दो पल तुम्हारे साथ बैठकर अपने दिल की बात नहीं कर सकती। दो पल गुनगुना नहीं सकती। तुम्हारी बातों का जवाब नहीं दे सकती। आखिर कब तक तुम मेरी बातों को इशारों में समझते रहोगे। प्रभात ये सब आज बहुत सरल लग रहा है तुम्हें, लेकिन कल बहुत मुश्किल होगा। जब एक ना बोल सकने वाली लड़की के साथ जिंदगी का पल - पल गुजरना पड़ेगा। मैं बात तक तो तुम्हें ठीक से समझा नहीं पाती। जिंदगी का लंबा सफर कैसे तय कर पाऊॅंगी। इसलिए कहती हूॅं। ये जिद छोड़ दो। हम बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोस्त ही रहने दो प्लीज़। मैं एक खामोश दोस्त तो बन सकती हूॅं, लेकिन एक हमसफ़र नहीं। उम्मीद करती हूॅं मेरी बात समझोगे, और मेरे मन को कल कोई आहत ना हो। इसलिए इस बारे में कोई बात नहीं करोगे। अगर अभी भी तुम्हें जिद हैं तो सुनो, तुम्हें मेरा जवाब चाहिए था। तो मेरा जवाब हैं मैं तुमसे प्यार नहीं करती हूॅं। ना ही शादी करना चाहती हूॅं। एक बात और अब तुम ना मुझसे मिलने की कोशिश करोगे, ना ही मेरे घर आओगे। प्रियम को भूलकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो प्रभात। बस ये याद रखो, कभी कोई प्रियम थी ही नहीं। और जो प्रियंवदा है वो कभी तुम्हारी हो नहीं सकती।

            ( प्रभात खत पढ़कर मुस्कुराने लगता है। और खत को देखते हुए कहता है। ) क्या कहूॅं मैं तुम्हें प्रियम, तुम्हें खुद को नहीं पता तुम कितनी भोली हो। कहने को तो तुमने खत में लिखे एक - एक शब्द से मुझे साफ़ - साफ इंकार कर दिया है। पर वहीं इन्हीं शब्दों के पीछे छिपा तुम्हारा एक - एक भाव मुझसे तुम्हारे प्यार का इजहार कर रहा है। कि तुम्हारे दिल में मेरी क्या जगह हैं। तुम्हारे शब्दों में, मैं भले ही कितना ही संपन्न क्यों ना हूॅं। पर तुम्हारे बिना इस प्रभात के जीवन की हर प्रभात अधूरी होगी। और उसे अब तुम पूरा करोगी। तुम्हारे जैसी जीवनसंगिनी कोई हो ही नहीं सकती। मन से तुम्हें भुला भी दूॅं तो क्या, इन हाथों की लकीरों पर लिखे तुम्हारे नाम को कैसे मिटाऊॅं। ये प्रभात तो सिर्फ प्रियम का ही होगा बस।

            इसके बाद प्रभात स्वादिष्ट हलवा खाता है। और टिफिन की ओर देखकर कहता हैं। यार मेरी प्रेम कहानी में तेरी भी मुख्य भूमिका है। 

            कुछ देर तक प्रभात सोचता रह जाता हैं, कि वह अब क्या करें। क्योंकि कुछ समय बाद उसे शहर, अपने घर वापस लौटना था। क्योंकि उसका कार्य अब लगभग पूरा हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था। कि अपने दिल की बात वह किससे कहें। तभी प्रभात को याद आता है कि जीवन में माॅं से अच्छा दोस्त कोई नहीं होता। और घर से आने के बाद माॅं ही तो हैं, जिससे वो हर रोज अपने दिल की बात कहता हैं। वह अपनी माॅं को फोन करता हैं। और उन्हें अपनी सारी बात बताता हैं।

प्रभात - माॅं कैसी हो आप।

माॅं - रोज ही तो पूछता हैं। और रोज में यहीं कहती हूॅं, मैं ठीक हूॅं‌। मेरी चिंता मत किया कर। तू बता तू कैसा हैं।

प्रभात - मैं अच्छा हूं माॅं।

माॅं - और वो तेरी दोस्त प्रियंवदा कैसी हैं।

प्रभात - अच्छी हैं माॅं। मुझे आपको एक बात बतानी हैं। पता नहीं आपको कैसा लगेगा।

माॅं - पहले बता तो सही क्या बात हैं। हो सकता है मैं पहले से ही जानती हूॅं।

प्रभात - वो कैसे। तुम नहीं जानती। वो क्या हैं ना माॅं, मैं एक लड़की को पसंद करता हूॅं। उससे प्यार करता हूॅं। और शादी करना चाहता हूॅं।

माॅं - ( मुस्कुराते हुए ) मैंने कहा ना शायद मुझे पता है। मैं तो पहले से ही जानती थी। कि तू प्रियंवदा से प्यार करने लगा है। 

प्रभात - ये क्या कह रही हो माॅं, मैंने तो आपको नहीं बताया कभी।

माॅं - माॅं हूॅं तेरी, सब जानती हूॅं। तुझसे पहले तेरी दिल की बात जान लेती हूॅं मैं। जो तू हर रोज फोन पर खुद से ज्यादा प्रियंवदा की बात करता था। उसकी बात करते वक़्त तेरी आवाज में जो खुशी, जो अपनत्व झलकता था ना, मुझे तभी पता चल गया था। कि मन ही मन तू प्रियंवदा को चाहने लगा हैं, और मुझे इसी दिन का इंतजार था। जब तू खुद सामने से मुझे बताए, कि तूने उससे अपने दिल की बात कह दी है।

प्रभात - माॅं आप को ये भी पता है। कि मैंने उसे बता दिया है। माॅं आप कितनी अच्छी हो।

माॅं - अब तू ये बता उसने क्या जवाब दिया। क्या वह भी तुझसे इतना ही प्यार करती हैं। जितना तू उससे प्यार करता है।

प्रभात - वहीं तो माॅं। मैंने तो उससे अपने दिल की बात कह दी। वो प्यार तो करती हैं। पर मुझसे कहती हैं। कि मैं उसे भूल जाऊॅं। वो मुझसे शादी नहीं कर सकती। मुझसे दूर रहने की कोशिश करती हैं। मुझे अनदेखा करती हैं। पर मैं जानता हूॅं, वो भी मुझे चाहती हैं। बस अपने ना बोलने की वजह मुझसे दूर जाना चाहती हैं। आज उसने मुझे खत लिखा है। ये सुनो वो क्या लिखती हैं।

प्रभात माॅं को खत पढ़कर सुनाता है। प्रियंवदा का खत सुनकर माॅं हँसने लगती हैं।

प्रभात - क्या माॅं आप हँस रही हो। बताओ ना माॅं मैं उसे कैसे समझाऊॅं। माॅं एक बात पूछूॅं,  प्रियंवदा बोल नहीं सकती हैं। तो क्या आप भी उसे मेरे लिए पसंद नहीं करोगी।

माॅं - किसने कहा ऐसा, कि मैं उसे पसन्द नहीं करूॅंगी। जो लड़की मेरे बेटे को पसंद है, वो मुझे भी पसंद हैं। जिसकी बात करते हुए मेरा बेटा दुनिया की सबसे बड़ी खुशी महसूस करता है। उसे अपने बेटे की जिंदगी में लाकर मैं भी खुश होना चाहती हूॅं। जब तुम दोनों को एक दूसरे को समझने के लिए किसी शब्द की जरूरत ही नहीं है, तो वहाॅं प्यार कितना पवित्र होगा। जहाॅं दो दिल एक दूसरे की खामोशी को पढ़ना जानते हैं। जहाॅं बातें शब्दों में नहीं आंखों में होती हो। वहाॅं क्या फर्क पड़ता है कि दोनों में से कौन बोल सकता है, कौन नहीं। प्रभात बेटा उसका ये खत उसके दिल में तेरे लिए प्यार और उसकी जिंदगी में तेरी जगह दोनों बताता है। ये खत से पता चलता है कि वो तुझे चाहती भी हैं। और उसे तेरी खुशियों का  पूरा ख्याल भी हैं। बेटा ऐसी जीवनसाथी नसीब से मिलती हैं। मैं बहुत खुश हूॅं तेरे लिए। तू कहें तो मैं आ जाऊॅं वहाॅं, अपनी होने वाली बहू का हाथ माॅंगने।

प्रभात - सच माॅं, आपको कोई ऐतराज नहीं है। आपको प्रियंवदा पसंद है।

माॅं -  हाॅं, मुझे प्रियंवदा तेरे लिए पसंद हैं। कह देना उसे जाकर, वो मेरी बहू बनने को तैयार हो जाएं। 

प्रभात - माॅं अभी आप मत आना। मैं खुद आपको लेने आऊॅंगा। आपने तो मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी दे दी। मैं सोच रहा था ना जाने आप क्या कहोगी। पर आपको तो पहले से ही सब पता था।

माॅं - अच्छा अब सो जा। बहुत रात हो गई है। और हाॅं एक बात हमेशा याद रख, तेरी ये दोस्त हमेशा तेरे साथ हैं। बस मुझसे कभी कुछ छुपाना नहीं। मैं तेरी माॅं होने के साथ - साथ तेरी दोस्त भी हूॅं।

प्रभात - जी माॅं, मेरी सबसे अच्छी दोस्त और दुनिया की सबसे अच्छी माॅं। शुभरात्रि।

माॅं से बात करके प्रभात आज बहुत खुश था। वो खत अभी भी उसके हाथ में ही था। वह मुस्कुराते हुए कहता हैं।

" ना लिखते - लिखते हर लफ्ज़ में हाॅं लिख गई,
इंकार करना ना आया इश्क - ए - इजहार कर गई।
खत तो लिखा था उसने मेरा दिल तोड़ने के लिए,
पर उसे भी नहीं पता वो अपना हाल - ए - दिल बयाॅं कर गई।"

  (अगली सुबह प्रभात फिर से टिफिन लौटाने के लिए शास्त्री जी के घर जाता हैं। वहाॅं शास्त्री जी से पहले उसकी मुलाकात आंगन में ही प्रियंवदा से होती है। उसे देखते ही प्रियंवदा उसे अनदेखा करने की कोशिश करती हैं। तभी प्रभात उसके पास आता हैं और कहता हैं।)

प्रभात - कैसी हो प्रियम। वैसे हलवा बहुत स्वादिष्ट था। लेकिन तुम्हारा खत हलवे से भी अच्छा था। ये लो टिफिन। तुमने मुझे इनकार करने के लिए खत लिखा था। पर पूरे खत के हर लफ्ज़ में मेरा जिक्र और मेरी फिक्र मुझे बता रहा थी, कि तुम्हें मेरा कितना ख्याल है। ना लिखते - लिखते तुम वो कह गई जो कहना नहीं चाहती थी। प्रियम तुम चाहें जितनी नाराजगी दिखाओ, लेकिन तुम्हारे खत का हर शब्द तुम्हारे दिल का हाल बता रहा था। कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो। 
       वैसे शास्त्री जी आ गए क्या। मैं उनसे मिलकर आया हूॅं।

प्रभात शास्त्री जी से मिलने जाता  है। प्रियंवदा वहीं खड़ी प्रभात को देखती रह जाती हैं। और सोचती हैं, कोई किसी को इतना प्यार कैसे कर सकता है। प्रभात तुम मुझे कितना चाहते हो। एक मैं हूॅं, जो तुम्हारा दिल तोड़ने की हर संभव कोशिश करती हूॅं। और एक तुम हो जो मेरी खामोशी भी पढ़ लेते हो। कितनी खुशनसीब हूॅं मैं, जो मुझे तुम जैसा प्यार करने वाला मिला, और कितने बदनसीब हो तुम कि तुम्हें प्यार भी हुआ तो मुझ जैसी ना बोलने वाली लड़की से। काश कि मैं सामान्य लड़कियों जैसी होती। काश कि मैं बोल पाती, तो बताती तुम्हें, मैं तुमसे कितना प्यार करती हूॅं। पर ना बताकर भी क्या हुआ। तुम तो मेरे भाव, मेरी आहट, मेरी खामोशी, मेरी मजबूरी, मेरा प्यार सब तो पढ़ लेते हो, अब करूॅं भी तो क्या। ( वह मन में कुछ पंक्तियाॅं पढ़ती हैं।)

" तुमसे ज्यादा ना चाहा है किसी ने कभी, 
तुमसे ज्यादा हमें कौन चाहेगा ऐसे।
जो इनकार के पीछे मेरे इजहार को पढ़ ले,
उससे अपनी मोहब्बत मैं छुपाऊॅं भी तो कैसे।"

प्रभात जाते - जाते मुस्कुराते हुए पीछे मुड़कर प्रियंवदा की ओर देखता हैं। और तभी ख्यालों में खोई प्रियंवदा के होठों पर भी उसे मुस्कुराते देख मुस्कान खिल जाती हैं। दोनों के चेहरे पर खिलती मुस्कुराहट मानो प्रेम की सहमति की ओर पहला कदम था।............................
        

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