सुमित्रानंदन पंत जी हिंदी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में से एक है। पंत जी ने प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी रचनाओं में अति सृजनात्मक व काव्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है।
जीवन परिचय
सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई सन् 1900 को हुआ था। पंत जी के जन्म के 6 घंटे बाद इनके माता जी का देहांत हो गया। पंत जी का लालन-पालन उनकी दादी ने किया। पंत जी के पिताजी का नाम "गंगादत्त" था। तथा सुमित्रानंदन पंत जी के बचपन का नाम "गोसाईं दत्त" था। जब पंत जी 1910 में शिक्षा प्राप्त करने के लिए "गवर्नमेंट हाई स्कूल अल्मोड़ा" गए, तब वहीं उन्होंने अपना नाम बदलकर "सुमित्रानंदन पंत" रखा। सन् 1918 में भाई के साथ काशी चले गए। तथा वहां से "क्वींस कालेज" से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर "म्योर कालेज" से आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद चले गए। लेकिन 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी जी द्वारा भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, न्यायालयों व अन्य सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के आह्वान से प्रभावित होकर सुमित्रानंदन पंत जी ने महाविद्यालय छोड़ दिया। तथा घर पर ही रहकर हिन्दी, संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी, भाषा- साहित्य का गहन अध्ययन किया। इलाहाबाद में रहने के दौरान ही उनके भीतर काव्य चेतना का विकास हुआ। इसके कई वर्षों पश्चात् उनके परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। तथा इस आर्थिक संकट के बीच उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के बाद पंत जी को आर्थिक संकट से उबरने के लिए जमीन बेचनी पड़ी। 1931 में कुंवर सुरेश सिंह जी द्वारा "कालाकांकर" प्रतापगढ़ चले गए। और अगले कई वर्षों तक वहीं रहे। और 1938 में पंत जी ने प्रगतिशील मासिक पत्रिका "रूपाभ" का संपादन किया। 1950 से 1957 तक आकाशवाणी के परामर्शदाता रहे। 1958 में "युगवाणी" से "वाणी" काव्य संग्रह की कविताओं का संकलन " चिदम्बरा" प्रकाशित हुआ। जिसके लिए उन्हें 1968 में "भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार" प्राप्त हुआ। 1960 में "कला और बूढ़ा चांद" काव्य संग्रह के लिए "साहित्य अकादमी पुरस्कार" मिला। 1961 में पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित किया गया। 1964 में विशाल महाकाव्य "लोकायतन" का प्रकाशन हुआ। अविवाहित पंत जी के अंतस्थल में जीवन भर नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौन्दर्यपरक भाव रहे। इसके बाद 28 दिसंबर 1970 को पंत जी ने यह संसार त्याग दिया। उनका देहांत हो गया।
साहित्यिक सृजन
पंत जी ने 7 वर्ष की उम्र में ही जब की जब भी चौथी कक्षा में पढ़ते थे, तब से ही कविता लिखना शुरु कर दिया था। उस समय कि उनकी कविताएं वीणा में संकलित हैं। 1926 उनका प्रसिद्ध काव्य संकलन "पल्लव" प्रकाशित हुआ।1938 में उन्होंने "रूपाभ" नामक प्रगतिशील मासिक पत्र निकाला। और तत्पश्चात् शमशेर व रघुपति सहाय आदि के साथ में प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े।
1950 से 1957 तक आकाशवाणी से जुड़े रहे। और निर्माता पद पर कार्यरत रहे। "स्वर्णकिरण" और "स्वर्णधूलि" में स्पष्ट रूप से उनकी विचारधारा के दर्शन होते हैं। "वाणी" और "पल्लव" में संकलित उनके लघु गीत उनके विराट प्राकृतिक सौंदर्य की पवित्रता से परिपूर्ण है। "युगांत" की रचनाओं में के लेखन में उनकी प्रगतिशील विचारधारा द्रष्टव्य होती हैं। "युगांत" से "ग्राम्या" तक की उनकी काव्य यात्रा प्रगतिवादी स्वर की उद्घोषणा करती है।
रचनाएं
छायावाद के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी 77 साल के जीवन काल में कई पुस्तकें लिखी। जिनमें उपन्यास कविता, निबंध, पद्य नाटक आदि शामिल है।
उनकी रचनाएं है -
मुक्ति यज्ञ
युगपथ
स्वर्णकिरण
पल्लव
स्वर्णधूलि
युगांत
गुंजन
ग्रंथि
युगवाणी
मानसी
उत्तरा
तारापथ
अतिमा
गीत हंस
चिदंबरा
अनुभूति
मोह
सांध्य वंदना
वायु के प्रति - सुमित्रानंदन पंत
चंचल पग दीप-शिखा- से
लहरों का गीत
यह धरती कितना देती है
मछुए का गीत
चांदनी
काले बादल
तप रे!
आजाद
गंगा
नौका-विहार
धरती का आंगन इठलाता
बांध दिए क्यों प्राण
चींटी
बापू
दो लड़के
गीत विहग
कला और बूढ़ा चांद
उच्छावास
मधु ज्वाला
मानसी
वाणी
सत्यकाम
पतझड़
अवकुंठित
अतिमा
सौवर्ण
लोकायतन
कविता संग्रह
मेघनाथ वध
कहानियां
पांच कहानियां
उपन्यास
हार
नाटक
शिल्पी
रजत शिखर
ज्योत्सना
आत्मकथात्मक संस्मरण
साठ वर्ष: एक रेखांकन 1963
पुरस्कार व सम्मान
हिंदी साहित्य सेवा के लिए सुमित्रानंदन पंत जी को 1961 में पद्म भूषण
1968 में ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
काव्यगत विशेषताएं
सुमित्रानंदन पंत जी प्रकृति, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम और कोमलता के कवि थे। पंत जी छायावादी कवि थे।
कल्पना शक्ति, रहस्यानुभूति,मानवतावादी दृष्टिकोण पंत जी के काव्य कि मुख्य विशेषताएं रही हैं। पंत जी की रचनाओं में प्रकृति चित्रण सजीव और मनोहारी होता है। झरना, शीतल पवन, भंवरों का गुंजन, सूर्य किरण, उषा, किरण, तारों की चुनरी, लताएं, संध्या आदि सभी पंत जी के काव्य के मुख्य उपादान बने हैं। प्रतीक बिम्ब उनके काव्य की मुख्य विशेषताएं हैं। सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी रचनाओं में ना केवल प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन किया है, इसके अतिरिक्त प्रकृति के माध्यम से मनुष्य के जीवन को एक नई दिशा देने का सफल प्रयास भी किया है। सुमित्रानंदन पंत जी मानव सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के प्राकृतिक सौंदर्य के कुशल एवं सुप्रसिद्ध कवि माने जाते है। वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने लेखन के जादू से कई कविताएं लिखी हैं। जिनमें सुमित्रानंदन पंत जी ने दार्शनिक और सांस्कृतिक विचारधारा का मिलाजुला स्वरूप प्रस्तुत किया है। पंत जी के काव्य में हमें ग्रामीण परिवेश की संवेदना और सामान्य जन की भावनाओं का स्वर भी देखने को मिलता है।
भाषा शैली
पंत जी एक सफल शब्द शिल्पी थे। उनके शब्दों में पाठकों के अंतर्मन में गहरी अमिट छाप छोड़ने का सामर्थ्य था। पंत जी की भाषा में जहां संस्कृत भाषा के शब्दों की अधिकता दिखाई देती है। वहीं दूसरी और पंत जी भाषागत कोमलता को भी साथ लेकर चलते हैं। पंत जी भावों को कोमलता व मधुरता से प्रकट करने में निपुण थे। भावपूर्ण शब्दों का प्रयोग बड़ी सहजता और सरलता से करने में वे कुशल कवि थे। उनके काव्य में अनुप्रास, रूपक, उपमा अलंकार का प्रयोग होता है। सुमित्रानंदन पंत जी की रचनाएं ऐसे अनमोल रत्न हैं,जो हमें सदा - सर्वदा आनंदित करते रहेंगे। पंत जी की भाषा शैली अत्यंत सरल एवं मधुर है। हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण पंत जी ने काव्य में गीतात्मक शैली का प्रयोग किया। मधुरता, संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, व कोमलता उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएं हैं।
स्मृति विशेष
उत्तराखंड की खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बसे कौसानी गांव में जहां सुमित्रानंदन पंत जी का पूरा बचपन व्यतीत हुआ है। उनका वही घर "सुमित्रानंदन पंत साहित्य वीथिका" के नाम से संग्रहालय बनाया गया है। इस संग्रहालय में सुमित्रानंदन पंत जी की आवश्यक वस्तुएं जैसे कपड़े, चश्मा, कलम, आदि से तथा साथ ही इस संग्रहालय में सुमित्रानंदन पंत को प्राप्त ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति का प्रशस्ति पत्र से सुशोभित किया है। और यहां पर उनकी रचनाओं की पांडुलिपियां तथा हरिवंशराय बच्चन और कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह जी के साथ किए गए पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां भी सुरक्षित रखी गयी है। प्रत्येक वर्ष यहां "पंत व्याख्यान माला" का आयोजन किया जाता है। उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम सुमित्रानंदन बाल उद्यान कर दिया गया है।

0 Comments