"मैं नीर तेरे नैनो का"
मैं नीर तेरे नैनो का,
मैं एहसासों में पलता हूं।
भाव व्यथित होने पर,
अश्रु बन आंखों से ढलता हूं।
मैं मानव की वह मौन अभिव्यक्ति हूं,
जो अक्सर आंखों से होती।
मुझे बिन दोनों नैना सुने,
मैं पलकों की सीप का मोती।
अति हर्ष पर जब उधर मुस्काए,
मैं पलकें नम कर जाता हूं।
दुख की काली घनघोर घटाओं में,
मैं नैनों से बरस जाता हूं।
पलकों से ढल कर जब मैं,
हृदय सिक्त करता हूं।
कहीं मेरा तिरस्कार न कर दे,
मैं मानव प्रवृत्ति से डरता हूं।
मैं आंसू प्रतीक हूं तेरे जिंदा होने का,
क्योंकि लाशों के आंसू नहीं बहते हैं।
उस हर व्यथा, दर्द को व्यक्त करता हूं,
जिन्हें कभी शब्दों में नहीं कहते हैं।
मैं दिल के हर उस जख्म का मरहम हूं,
जिन्हें दुनिया को दिखाया नहीं करते हैं,
मैं अक्सर उनकी तनहाइयों में रहता हूं,
जो जमाने को अपना दर्द जताया नहीं करते हैं।
अपने भीतर तूफान को थाम तू,
मुझे बहा अक्सर रो लेता है।
मुझसे पूछ मैं सुख - दुख का परिचायक,
तुझसे पलकर, तुझसे ढलकर, बिछड़ने का दर्द कैसा होता है।

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