कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला"
जीवन परिचय
गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म के विषय में काफी विवाद है। कई विद्वानों का मानना है, कि तुलसीदास जी का जन्म सोरों शूकर क्षेत्र कासगंज उत्तर प्रदेश में हुआ था।वहीं दूसरी ओर कई अन्य विद्वानों का मानना है, कि तुलसीदास जी का जन्म राजापुर जिला बांदा उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनमें से अधिकांश विद्वानों का मत है कि तुलसीदास जी का जन्म राजापुर जिला बांदा में हुआ। जनश्रुति के अनुसार उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के अंतर्गत स्थित एक गांव में आत्माराम दुबे और हुलसी देवी नामक एक दंपति रहते थे। आत्माराम दुबे एक सम्मानित ब्राह्मण थे। संवत् 1554 में श्रावण मास में शुक्ल सप्तमी के दिन मूल नक्षत्र में आत्माराम दुबे हुलसी देवी के घर तुलसीदास जी का जन्म हुआ। बेनीमाधवदास की रचना में तुलसीदास जी की जन्मतिथि का उल्लेख भी है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा भी प्रसिद्ध है-
पन्द्रह सौ चौवन बिसे, कालिंदी के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर् तो सरीर।।
मूल नक्षत्र शुभ नहीं माना जाता था। और प्रचलित जनश्रुति के अनुसार जहां एक सामान्य शिशु नौ महीने जन्म लेता है। वही तुलसीदास जी 12 माह अपनी माता हुलसी देवी के गर्भ में रहे। तथा 12 महीने बाद उन्होंने जन्म लिया। इसलिए वे सामान्य शिशु से अधिक हष्ट पुष्ट थे। कहा जाता है कि तुलसीदास जी जन्म लेते समय रोए नहीं, अपितु उन्होंने जन्म लेते ही "राम" कहा। तथा साथ ही जन्म के समय तुलसीदास जी के मुख में दांत भी थे। यह सभी लक्षण पिता आत्माराम दुबे व माता हुलसी देवी ने किसी अमंगल की आशंका से भयभीत होकर बालक तुलसीदास पर कोई संकट ना आए यह सोचकर बालक को अपनी दासी चुनियां को सौंपते हुए उसे उसके ससुराल भेज दिया। और अगले ही दिवस माता हुलसी देवी गोलोक वासी हो गई। चुनियां ने बालक तुलसीदास का लालन-पालन बड़े प्रेम से किया। किंतु वह भी लगभग साढे़ 5 वर्ष तक ही तुलसीदास का पालन पोषण कर सकी। और तुलसीदास जी के साढ़े 5 वर्ष के होते ही चुनियां ने भी अपना शरीर त्याग दिया। तुलसीदास जी अनाथ हो गए थे। और अब वे अनाथ बालक द्वार - द्वार भटकने लगे। तुलसीदास जी का बचपन अनेकानेक कष्टों के मध्य व्यतीत हुआ।
कहा जाता है कि प्रसिद्ध संत बाबा नरहरिदास जी भगवान शंकर से प्रेरणा प्राप्त कर तुलसीदास जी को ढूंढते हुए उनके पास पहुंचे। और उन्हें अपने साथ अयोध्या ले गए नरहरी दास जी ने ही जन्म लेते ही राम शब्द बोलने के कारण उनका नाम राम बुला रखा वहां वहां अयोध्या में वहां उनका यज्ञोपवित संस्कार कराया तथा इन्हें ज्ञान और भक्ति की शिक्षा प्रदान की इन्हीं की कृपा से तुलसीदास जी वेद वेदांग दर्शन शास्त्र इतिहास पुराण आदि में निपुण हुए वहीं गुरुजनों की आज्ञा पाकर पंडित दीन बंधु पाठक की सुपुत्री रत्नावली से तुलसीदास जी का विवाह हुआ तुलसीदास जी अपनी पत्नी की सुंदरता के प्रति हत्या सकते थे इस पर एक बार उनकी पत्नी ने तुलसीदास जी की भर्त्सना करते हुए कहा-
लाज लागत आपको, दौरे आयहु साथ।
धिक् - धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ।।
अस्थि - चर्ममय देह मम, तामे ऐसी प्रीति।
ऐसी जो श्रीराम मँह, होत न तौ भवभीति।।
पत्नी के वचन सुन तुलसीदास जी सांसारिक मोह माया और सांसारिक सा भोगों से विरक्त हो गए। इसके बाद उनके हृदय में राम भक्ति जाग उठी। अपना घर त्याग कर तुलसीदास जी काशी चले गए। और तीर्थाटन करने लगे। तीर्थाटन करते हुए इनकी भेंट काकभुशुण्डि से हुई। काकभुशुण्डि से हनुमान जी का पता प्राप्त कर वे हनुमान जी से मिले। और हनुमान जी से श्रीराम दर्शन की लालसा व्यक्त की। हनुमान जी ने कहा कि "श्री राम" के दर्शन आपको चित्रकूट में होंगे। हनुमान जी से आशीष पाकर वे चित्रकूट जाकर राजघाट में एक स्थान पर प्रभु के दर्शन की अभिलाषा से साधना रत हो गए।
कहा जाता है कि वहीं इन्हें "श्रीराम" के दर्शन हो गए। तत्पश्चात उन्होंने अयोध्या जाकर "श्रीरामचरितमानस" की रचना की। यह रचना 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन में पूर्ण हुई। तुलसीदास जी ने अपना शेष समय "श्रीराम" कथा का गान करके काशी में व्यतीत किया।
और संवत् 1680 को अस्सी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने "श्रीराम" का नाम जपते हुए अपना शरीर त्याग दिया। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है-
संवत् सोलह सौ असी, असी गंगा के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो सरीर।।
साहित्यिक परिचय
तुलसीदास जी उत्कृष्ट कोटि के कवि थे। तथा "श्रीराम" के परम भक्त थे। तुलसीदास जी द्वारा रचित ग्रंथ "श्रीरामचरितमानस" विश्व साहित्य के ग्रंथों में श्रेष्ठ ग्रन्थ हैं। इस पवित्र ग्रंथ के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम भक्ति की धारा प्रवाहित की। भाषा, भाव, कथावस्तु, उद्देश्य, संवाद और चरित्र - चित्रण की दृष्टि से भी यह अद्वितीय ग्रंथ है। "श्रीरामचरितमानस" के माध्यम से तुलसीदास जी ने "श्रीराम" के आदर्श चरित्र का भावपूर्ण व यथार्थ चित्रण किया है। जो अनंत काल तक संपूर्ण मानव जाति का पथ प्रदर्शन करता रहेगा। "गोस्वामी तुलसीदास जी" ने अपना संपूर्ण जीवन "श्रीराम" की भक्ति में लगा दिया। एक अन्य रचना "विनयपत्रिका" में भक्ति भावना देखने को मिलती है। इन्होंने सगुण - निर्गुण, ज्ञान -भक्ति आदि अनेक भावों की अभिव्यक्ति की है। अपने काव्य में तुलसीदास जी ने जनमानस के मंगल की कामना की है।
रचनाएं
तुलसीदास जी की 12 रचनाओं का उल्लेख मिलता है।
रामलला नछहू - नछहू ग्रंथ की रचना सोहर शैली में की गई है। इसकी भाषा पूर्वी अवधी है।
वैराग्य संदीपनी - यह रचना दोहों में लिखी गई है। इसमें सदाचार, सत्संग, वैराग्य के माध्यम से भक्ति मार्ग बताया है।
बरवै रामायण - इसमें राम कथा संक्षेप में लिखी गई है। यह सात कांडों में विभाजित है।
पार्वती मंगल - यह मंगल काव्य है। पार्वती मंगल में शिव - पार्वती के विवाह का वर्णन है।
जानकी मंगल - इस रचना में "श्रीराम" वह "जानकी" के विवाहोत्सव का वर्णन मिलता है।
गीतावली - इसमें 250 पद संकलित है। जिनमें "श्रीराम" के चरित्र का वर्णन किया गया है। यह सात कांडों में विभाजित है।
दोहावली - इसकी भाषा अवधी है। समाज, धर्म, भक्ति, राजनीति, ज्योतिष, आचार, व्यवहार, राज्य आदर्श आदि विषयों पर दोहे रचे गए हैं।
कवितावली - इसमें कवित्त, घनाक्षरी, छप्पय, सवैया आदि छंदों का समावेश है। इसकी भाषा ब्रजभाषा है। इसमें सात कांड हैं।
श्रीकृष्ण गीतावली - यह बृज भाषा में है। इसमें "श्रीकृष्ण" के जीवन में संबंधित पद है।
विनयपत्रिका - विनयपत्रिका में भक्ति भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। यह गीतिकाव्य है।
श्रीरामचरितमानस - यह सात कांडों में विभक्त है। इसमें दोहा, सोरठा, चौपाई तथा विभिन्न मात्रिक में वर्णिक छंदों का उपयोग किया गया है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम "श्रीराम" के चरित्र की व्यापकता का वर्णन किया गया है।
रामाज्ञा प्रश्न - यह ग्रंथ सात सर्गो में है। इसमें राम कथा का वर्णन है।
तुलसीदास जी की इन रचनाओं में मर्यादा पुरुषोत्तम "श्री राम" के चरित्र की व्यापकता तथा श्रेष्ठता का वर्णन किया गया है। यह सभी भाव पक्ष और कला पक्ष की दृष्टि से श्रेष्ठ है।
ऐसा माना जाता है कि कवि गोस्वामी तुलसीदास जी महर्षि बाल्मीकि के अवतार थे।
काव्य शैली
तुलसीदास जी ने "श्रीरामचरितमानस" में प्रबंध शैली का, "विनयपत्रिका" में मुक्तक शैली का और "दोहावली" में साखी शैली का प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त भी तुलसीदास जी ने अन्य सभी तत्कालीन शैलियों का प्रयोग किया है। तुलसीदास जी हिंदी भारतीय तथा विश्व साहित्य के महान कवि थे।


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