
कुछ बेक़रार - सी तन्हाई का एहसास हैं आजकल, ना जाने क्यों,
अक्सर उसके ख्यालों में खोई रहती हूँ।
रात की खमोशी में तेरी यादों से बेकल नहीं होना चाहती, पर ना जाने क्यों,
चाॅंद चुपके से तेरे प्यार का पैगाम दे, दिल में ख्वाहिश रखती हूँ।
हर सुबह उसका चेहरा देखकर मुस्कुराना तो चाहती हूँ, पर ना जाने क्यों,
यहाँ तन्हाई में खुद से ही शिकवे - शिकायतें किया करती हूँ।
सिमट जाना चाहती हूँ उसकी बाहों में, पर ना जाने क्यों,
उसकी नजरों की उस नाराजगी के ख्याल से भी डरती हूँ।
मैं जानती हूँ वो मुझसे मिलने नहीं आएंगा, पर ना जाने क्यों,
अक्सर दरवाजे पर खड़ी होकर उसकी राह देखा करती हूँ।
आज हर कोई तो अपना साथ हैं मेरे, पर ना जाने क्यों,
अक्सर आईने के सामने बैठकर खुद में तेरा अक्स देखा करती हूँ।
ऐसा नहीं कि मैं खिलखिला कर मुस्कुराती नहीं अब, पर ना जाने क्यों,
शायद तूने मेरा नाम पुकारा ये सोच कर तेरी और दौड़ी चली आती हूँ।
मैं नहीं चाहती तू मेरे ख्वाबों में भी आये, पर ना जाने क्यों,
अक्सर अपनी तरफ बढ़ते तेरे कदमों की आहट महसूस कर बेक़रार हो जाती हूँ।
मर जाना चाहती हूँ पीकर दो घूँट जहर के, पर ना जाने क्यों,
उसके साथ जिन्दगी जीने की ख्वाहिश लिए बस यूँ ही जिए जाती हूँ।
यादों की मीठी चुभन से बचने को, मैं पलकों पर ख्वाब सजाकर सोना चाहती हूँ, पर ना जाने क्यों,
अक्सर अपने तकिये के नीचे तेरी तस्वीर रखकर सोया करती हूँ।
हर पल तुझे याद ना करने की कोशिश तो करती हूँ मैं, पर ना जाने क्यों,
तुझे भूल जाने की कोशिश में पल - पल बस तुझे ही याद करती हूँ।
डायरी के पन्नों पर लिख देना चाहती हूँ दिल का हर अरमान, पर ना जाने क्यों,
दास्तान - ए - गम हो या मोहब्बत दोनों पर तेरा ही नाम लिखा करती हूँ।
माना ये कहकर आयी थी कि मुझे याद ना करना कभी, पर ना जाने क्यों,
तब से बस तुझे ही याद कर अकेले में अश्क बहाया करती हूँ।
वैसे तो मीलों के फासले हैं आज तेरे मेरे दरमियाँ ,पर ना जाने क्यों,
कैसे कहूँ तुझे, तेरी जुदाई में अब तक मेरी आँखें नम हैं।
तुझसे कभी हाल - ए - दिल बयां ना कर सकीं, पर ना जाने क्यों,
आकर मेरे दिल की धड़कनों को महसूस तो कर, इस दिल में आज सिर्फ तेरी बिछुड़न का गम हैं।

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