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उन दिनों पुजारी जी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। और जैसे - जैसे सागर बड़ी कक्षा की ओर कदम बढ़ा रहा था, पुजारी जी की चिन्ता भी बढ़ती ही जा रही थी। वह अधिकांश रात को अकेले चिंता में डूबे हुए आँगन में टहला करते थे। सागर पढ़ने में बहुत होशियार था ,वह विद्यालय का मेधावी छात्र था। सभी को उससे बहुत सारी उम्मीदें थी ,कि वो आगे चलकर जरूर गाँव का नाम रोशन करेंगा। एक दिन की बात हैं ,विद्यालय की ओर से एक प्रतियोगी परीक्षा के लिए सागर का चयन होता हैं। पर अपना नाम सुनते ही सागर उदास सा हो जाता हैं। उर्मि उसके चहरे की उदासी देख लेती है। और स्कूल के बाद घर लौटते समय उससे पूछती हैं ,
उर्मि - सागर तू उदास क्यों हैं ?
सागर - नहीं तो , कुछ नहीं।
उर्मि - तेरा इतनी बड़ी प्रतियोगिता के लिए चयन हुआ हैं। तू खुश नहीं हैं।
सागर - इसी बात से तो परेशान हूँ।
उर्मि - मतलब
सागर - तू तो सब जानती हैं उर्मि, हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी हैं। मैंने बाबा को अधिकांश मेरे भविष्य की चिंता में डूबे रात में घंटों अकेले बाहर टहलते देखा हैं। और ऐसे में इस परीक्षा की तैयारी के लिए मुझे एक किताब चाहिए ,जो बहुत महँगी आएगी। और मुझे बाबा से पैसों की माँग करने में दुःख होता हैं। मुझे उन पर बोझ डालना अच्छा नहीं लगता।
( सागर की बातें सुनकर पल भर को उर्मि भी उदास हो जाती हैं। फिर दूसरे ही पल खुद को सॅंभालते हुए सागर को समझाते हुए कहती हैं। .....)
उर्मि - सागर तू इतनी फ़िक्र क्यों करता हैं। ईश्वर हैं ना ,वो सब ठीक करेंगे। तू अभी जल्दी घर जा, माँ - बाबा राह देख रहे होंगे।
फिर दोनों घर की ओर चल पड़ते हैं। एक दूसरे को देख मुस्कुराते रहते हैं। पर अंदर ही अंदर दोनों किसी गहरी सोच में डूबे हुए थे। सागर रात भर इसी कश्मकश में था। कि बाबा से कहूॅं या नहीं। और उधर उर्मि रात भर यहीं सोचती रही कि वह कैसे सागर की परेशानी दूर करे। दोनों तरफ, दोनों एक ही समस्या को सुलझाने के लिए बैचेन थे। आखिरकार उर्मि सागर की समस्या का समाधान खोज ही लेती हैं, अब तो उसे बस सुबह होने का इन्तजार था। कि जब वो सागर के होठों पर मुस्कान लाएगी। लेकिन कहीं उसके मन में एक संशय भी था। कि क्या सागर उसके इस प्रयास को स्वीकार करेंगा।
to be continue..................
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