राष्ट्र निर्माता शिक्षक
मां शारदे के पावन प्रांगण में,
बन ज्ञान पुंज चहुंओर आभा बिखेरता है।
शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार खेलते जिसके अंक में,
राष्ट्र निर्माता वह शिक्षक कहलाता है।
शिक्षक बिना शिक्षा अधूरी,
बिन शिक्षक अधूरा ज्ञान।
ज्ञान दीप, शिक्षा बाती है,
शिक्षक दोनों का प्रतिमान।
कच्ची माटी सरीखे सारे शिष्य,
ज्ञान चाक और शिक्षक कुम्हार होता है।
अनुभव रूपी दो कर मध्य तब,
एक सच्चे विद्यार्थी का निर्माण होता है।
जीवन रूपी बगिया का शिक्षक,
मानो कुशल, स्नेही माली होता है।
अनुशासन की खाद और परिश्रम की निराई से,
शिक्षक कठोर मन पर शिक्षा का बीज बोता है।
अपने ज्ञान की रसधार से सिंचित कर विद्यार्थी को,
नव कोंपलों से पल्लवित कर पुष्प बनाता है।
चहुंमुखी विकास को चरितार्थ करता जो प्रतिपल,
शिक्षक विद्यार्थी को लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।
वट वृक्ष सा विशाल व्यक्तित्व और,
शीतल छांव सा व्यवहार होता है।
वाणी में सदा मां सरस्वती विराजै जिसकी,
शिक्षक साक्षात ज्ञान का भंडार होता है।
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